2019 में जीत के लिए 10 कार्ड खेल सकते हैं मोदी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Mar, 2018 06:11 PM

modi can play 10 cards to win in 2019

नरेंद्र मोदी को 2019 में जीत प्राप्त करने तथा फिर से प्रधानमंत्री बनने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि एन.डी.ए. के सहयोग के साथ भाजपा को 230 से अधिक सीटें मिलें। 230 से कम सीटें हासिल होने पर भाजपा में अंदरूनी संघर्ष हो सकता है...

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी को 2019 में जीत प्राप्त करने तथा फिर से प्रधानमंत्री बनने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि एन.डी.ए. के सहयोग के साथ भाजपा को 230 से अधिक सीटें मिलें। 230 से कम सीटें हासिल होने पर भाजपा में अंदरूनी संघर्ष हो सकता है जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने खराब प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेदारी लेने की आवश्यकता होगी। भाजपा को 272 के जादुई आंकड़े को हासिल करने के लिए कई तरह के शृंखलाबद्ध कार्यों को अंजाम देना होगा। इसे हासिल करने के लिए भाजपा क्या करेगी। कुल 10 कार्ड हैं जिन्हें मोदी अगले चुनाव में खेल सकते हैं।

करिश्मा कार्ड
राजनीतिक गलियारों में नरेंद्र मोदी एकमात्र राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रसिद्ध हैं। प्रधानमंत्री अपने समर्थकों के बीच एक पंथ की तरह जाने जाते हैं। हालांकि लोगों में असंतोष की भावना अधिक है लेकिन इतना गुस्सा नहीं है कि आम जनता किसी और को चुने। सवाल यह है कि क्या करिश्मे के आधार पर 2014 की तरह अधिक से अधिक लोगों को भाजपा को वोट देने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा या वह घर पर ही रहेंगे?

भ्रष्टाचार कार्ड
कांग्रेस को लक्ष्य बनाने के साथ-साथ पिछले कुछ सालों में भाजपा सरकार ने एक धारणा बनाई है कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं। भाजपा इस मुद्दे पर कड़ी मेहनत करेगी। भ्रष्टाचार के लिए कुछ बड़े राजनेताओं और व्यापारियों को जेल कराकर अपना ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा रखेगी। जैसा कि हाल ही की कुछ घटनाओं में देखने को मिला है।

कांग्रेस कार्ड
भारत में अधिकतर मतदाताओं के लिए यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच रहता है इसलिए भाजपा को मतदाताओं की नजर में अच्छे बने रहना है और यह याद दिलाना है कि कांग्रेस भारत के लिए किस तरह खराब रही है।

गठबंधन का कार्ड
चुनाव पूर्व गठबंधन पर मुहर लगाना महत्वपूर्ण है। 2004 के अनुभव के आधार पर यह बात भाजपा से अच्छी तरह कोई नहीं जानता। महाराष्ट्र में शिवसेना, बिहार में जे.डी.यू., आंध्र प्रदेश में टी.डी.पी. और पंजाब में शिरोमणि अकाली दल द्वारा समर्थन देना जारी रहेगा या नहीं। इसलिए चुनाव के पहले यह धारणा बना लेना सही नहीं होगा कि भाजपा ही अगले चुनाव की एकमात्र विजेता है।

वोट कटिंग कार्ड
चुनाव का छोटा-सा ज्ञात तथ्य है वोट कटर्स का महत्व और स्थानीय मौन गठबंधन। हर चुनाव में कई उम्मीदवार और पार्टियां होती हैं। उनका एकमात्र काम होता है मतों को बांटना जिससे मुख्य पार्टी के उम्मीदवारों के जीतने की संख्या कम हो जाए। हाल ही में गुजरात विधानसभा चुनावों में एन.सी.पी. और बसपा जैसे दलों ने बहुत अच्छी तरह से इस काम को अंजाम दिया और कुछ सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों को आगे बढऩे में सहायता की।

उम्मीदवारों का कार्ड
जीत हासिल करने के अलावा एक तकनीक है किसी अन्य पार्टी के विशिष्ट सीटों से उम्मीदवारों को खरीदना। भाजपा के मानकों के आधार पर उनकी राष्ट्रीय दावेदार कांग्रेस है। इसलिए भाजपा राज्य स्तर पर कांग्रेस को कमजोर करने का हर प्रयास करेगी और उन कांग्रेस की सीटों का भाजपा में विलय करेगी जिन पर उनके जीतने की संभावना कम है।

अमीर-गरीब का कार्ड
अमीर के खिलाफ गरीबों का दाव लगाने की पुरानी तकनीक है। हमारे राजनेता इस कार्ड को खेलने में दक्ष हैं। नोटबंदी के समय काले धन को लेकर भी यही धारणा बनाई गई थी। भाजपा ने बड़ी ही चतुराई से अपना वोट बैंक अमीर वर्ग और मध्यम वर्ग से परिवर्तित कर गरीब वर्ग कर लिया है।

पैसों का कार्ड
बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना और न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषणाओं के साथ राज्य स्तर पर कृषि ऋण में छूट का मुख्य उद्देश्य देश के गरीब और किसानों के हाथों में अधिक से अधिक पैसे उपलब्ध कराना है। इसे मुफत में उपहार मत कहिए लेकिन वास्तव में यह किसान से वोट हासिल करने का झांसा है। किसानों की खुशहाली के लिए अमीर, मध्यम वर्ग और व्यवसायियों पर अधिक से अधिक करों को थोपा जाएगा।

समुदाय का कार्ड
भाजपा को इस बात का एहसास है कि सिर्फ जाति स्तर पर एकत्रीकरण मुकाबला करने के लिए पर्याप्त नहीं है। उन्हें जाति से ऊपर उठकर अधिक संख्या में ध्रुवीकरण और मतदाताओं को एकजुट करने की आवश्यकता है। अयोध्या राम मंदिर का निर्णय इस दिशा में उन्हें बढऩे के लिए सही मौका देगा। इसके अलावा ट्रिपल तलाक पर ध्यान केंद्रित कर भाजपा ने मुस्लिम वोट बैंक को भी विभाजित करने की दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया है।

देश का कार्ड
भारत-पाक सीमा विवाद पर एक साल पहले तक काफी बातें कही गईं। यह मुद्दा चीन के आक्रामक प्रवेश के कारण बदल गया है। चीन भारत में वैसा ही कर सकता है जैसा कि रशिया ने अमरीका में किया था। डोकलाम सिर्फ  पहला कदम है, असल में पाकिस्तान के पास अब चीन का कवच है। इसलिए सीमा के जरिए भाजपा राष्ट्रवादी भावनाओं को उभार सकती है।
 

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