ऑफ द रिकॉर्डः ‘कभी सत्ताधीशों को उंगलियों पर नचाने वाले बाबुओं को मोदी ने कराए गुमनामी के दर्शन’

Edited By Pardeep,Updated: 20 Feb, 2021 05:31 AM

modi gave anonymity to babus who used to fingertip the ruling officers

2014 वह साल है जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली में सत्ता की बागडोर संभालने पहुंचे थे। मोदी के आने से पहले तक राजधानी के सत्ता के गलियारों में सत्ताधीशों को अपनी उंगलियों पर नचाने वाले बाबुओं (नौकरशाहों) का बोलबाला था। इन बाबुओं के सामने...

नई दिल्लीः 2014 वह साल है जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली में सत्ता की बागडोर संभालने पहुंचे थे। मोदी के आने से पहले तक राजधानी के सत्ता के गलियारों में सत्ताधीशों को अपनी उंगलियों पर नचाने वाले बाबुओं (नौकरशाहों) का बोलबाला था। इन बाबुओं के सामने मंत्रियों की कम ही चलती थी और ये बाबू उनके आदेशों का जो थोड़ा-बहुत पालन कर देते थे, वह मंत्रियों की खुशनसीबी समझी जाती थी। 

मोदी के दिल्ली आने से पहले तक ये बाबू 5-सितारा होटलों में पार्टी करते थे, गोल्फ खेलते थे, मन हुआ तो दफ्तर आते थे, नहीं हुआ तो घर पर आराम फरमाते थे। इतना ही नहीं, ये बाबू इतने ताकतवर थे कि वे सरकार की नीतियां निर्धारित करते थे और मंत्रियों व निजी कंपनियों के बीच सौदेबाजी कराने में दलाल की भूमिका निभाकर मोटी कमाई करते थे। और तो और जनहित याचिका के नाम पर कौन-से मुद्दे अदालतों में उठाने हैं, यह भी ये बाबू ही तय करते थे। प्रधानमंत्री बनने पर मोदी ने जब दिल्ली में कदम रखा था तो उन्होंने इसे ‘लुटियंस दिल्ली की संस्कृति’ का नाम दिया था। वो दिन थे और आज के दिन हैं। 

मोदी ने जब इन बाबुओं के पेंच कसे तो ये चुपचाप गुमनामी में अपने काम करने लगे हैं। लुटियंस दिल्ली वाले यह तो जान गए थे कि नृपेंद्र मिश्रा प्रधानमंत्री मोदी के प्रधान सचिव थे लेकिन उनके बाद आने वाले प्रधान सचिव पी.के. मिश्रा को कोई नहीं पहचानता है, यहां तक कि वह सुबह लोधी गार्डन में सैर करके घर भी लौट जाते हैं और वहां लोगों को उनके बारे में जानकारी ही नहीं होती है। मोदी चाहते हैं कि कारोबारियों से बाबुओं का आपस में कोई संपर्क नहीं हो तथा इसके लिए उन्होंने कारोबारियों की समस्याओं का समाधान बिना शोर-शराबे के करवाने की व्यवस्था की हुई है। इन बाबुओं को सार्वजनिक रूप से कभी आड़े हाथों नहीं लिया गया। मोदी ने पिछले दिनों लोकसभा में इन बाबुओं को खरी-खरी सुनाई। 

उन्होंने कहा-‘बाबू हर चीज के उस्ताद तो नहीं हैं कि वे हवाई जहाज उड़ाएं, कैमिकल फैक्ट्रियां चलाएं, स्टील कंपनियों को संचालित करें, यानि कुछ भी करें। नहीं, वे देश की हर मशीनरी को नहीं चला सकते।’ आज से पहले किसी प्रधानमंत्री ने इन बाबुओं की क्षमता पर सवाल नहीं उठाए थे। परंतु यह तो मोदी हैं। प्रधानमंत्री इस बात से भी नाराज दिखाई दिए कि ये बाबू उनकी योजनाएं लागू करने के रास्ते में अड़ंगे लगा रहे हैं। वह इस बात से विशेष रूप से खफा हैंकि बड़े विनिवेश करके इस साल 2 लाख करोड़ के स्रोत जुटाने की उनकी योजना को पलीता लगाने में ये बाबू लोग लगे हुए हैं। सरकार सार्वजनिक उपक्रम के खरीदारों को आकर्षित करने में नाकाम हो रही है और मोदी समझते हैं कि इसके लिए बाबुओं की तिकड़मबाजी जिम्मेदार है। बस इसी बात की भड़ास मोदी ने बाबुओं पर निकाली। 

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!