Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Apr, 2018 10:44 AM
.पी.ए. सरकार के कार्यकाल के दौरान 80:20 सोना आयात योजना लागू होने पर मोदी सरकार अब पी. चिदंबरम (पी.सी.) के पीछे पड़ गई है। सी.बी.आई. आर.बी.आई. के डिप्टी गवर्नर (सेवानिवृत्त) इस मामले की जांच कर रहे हैं कि चिदम्बरम ने जल्दबाजी में इस योजना को कैसे...
नेशनल डेस्कः यू.पी.ए. सरकार के कार्यकाल के दौरान 80:20 सोना आयात योजना लागू होने पर मोदी सरकार अब पी. चिदंबरम (पी.सी.) के पीछे पड़ गई है। सी.बी.आई. आर.बी.आई. के डिप्टी गवर्नर (सेवानिवृत्त) इस मामले की जांच कर रहे हैं कि चिदम्बरम ने जल्दबाजी में इस योजना को कैसे मंजूरी दी जबकि सरकार का कार्यकाल अंतिम चरण में था मगर जांच के दौरान हाल ही में तथ्य सामने आए हैं कि सोने का आयात प्रणव मुखर्जी के वित्त मंत्री रहते समय नई ऊंचाई को छू गया था। मुखर्जी को 2008 में चिदम्बरम को गृह मंत्रालय का कार्यभार सौंपे जाने के बाद वित्त मंत्री बनाया गया था। वह 2012 तक इस पद पर बने रहे मगर मुखर्जी के कार्यकाल के दौरान ही सोने का आयात 2010 के बाद खतरनाक स्थिति पर पहुंच गया था।
यह मुखर्जी ही थे जिन्होंने वित्त मंत्री बनने के बाद सोने के आयात को खोला। उनके कार्यकाल के पहले वर्ष में सोने का आयात 1100 मीट्रिक टन तक पहुंच गया था। चिदम्बरम ने खुली आयात नीति को बंद कर दिया और उसकी जगह 80:20 की नीति को शुरू किया। इससे आयात आधा रह गया, जो 553 टन तक गिर गया। एन.डी.ए. सरकार ने सत्ता में आने के बाद 6 महीनों में नवम्बर, 2014 में इस नीति को खारिज कर दिया।
पी. चिदम्बरम ने एस.टी.सी./एम.एम.टी.सी. प्रमुख निर्यात घरानों और प्राइवेट कम्पनियों को सोने के आयात की अनुमति दी। अब प्रश्न यह है कि मोदी सरकार चिदम्बरम के पीछे क्यों लगी हुई है क्योंकि उसे अभी तक कांग्रेस के प्रमुख नेताओं के खिलाफ कुछ नहीं मिला। अब यह चर्चा है कि वित्त मंत्री अरुण जेतली का यह विचार है कि एजैंसियों को अपने पैर पीछे खींच लेने चाहिएं क्योंकि इससे कोई अच्छा संकेत नहीं मिलेगा।