महंगाई के मोर्चे पर कटघरे में मोदी सरकार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Apr, 2018 02:00 AM

modi government in front of price hike

केन्द्र में मोदी सरकार का चौथा साल चल रहा है। 8-9 महीनों बाद लोकसभा चुनावों की रणभेरी भी बज जाएगी। वर्ष 2014 में हिमाचल प्रदेश में आयोजित रैली में नरेन्द्र मोदी ने महंगाई का तराना छेड़ा था और अच्छे दिनों की धुन सुनाने का भरोसा दिलाया था।

नेशनल डेस्कः केन्द्र में मोदी सरकार का चौथा साल चल रहा है। 8-9 महीनों बाद लोकसभा चुनावों की रणभेरी भी बज जाएगी। वर्ष 2014 में हिमाचल प्रदेश में आयोजित रैली में नरेन्द्र मोदी ने महंगाई का तराना छेड़ा था और अच्छे दिनों की धुन सुनाने का भरोसा दिलाया था। यहां तक कह दिया था कि विदेशों से काला धन वापस ला कर हर देशवासी के बैंक खाते में 15-15 लाख रुपए डाल दिए जाएंगे और गरीब आदमी को भरपेट रोटी नसीब हो सकेगी।

दावा तो यहां तक किया गया था कि केन्द्र में उनकी सरकार आएगी तो किसान को आत्महत्या नहीं करनी पड़ेगी। इसके अलावा देशभर में जगह-जगह की गई रैलियों में  उन्होंने  पैट्रोल व डीजल के दामों को लेकर  कांग्रेस को कटघरे में भी खड़ा किया था। लोगों को भरोसा होने लगा था कि महंगाई से मुक्ति अब मिलने ही वाली है और सचमुच अच्छे दिन आने वाले हैं। उस दौरान भाजपा ने देश की जनता को एक लोकप्रिय नारा भी दिया था- ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार’।

रसोई गैस भी लगातार ऊंचाई छू रही है
लेकिन महंगाई के चाबुक से बचने और अच्छे दिनों की धुन सुनने के इंतजार में देश की जनता ने 4 साल गुजार दिए हैं। पैट्रोल व डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं और अगर यही क्रम जारी रहा तो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों तक पैट्रोल 100 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच जाएगा। रसोई गैस के दाम भी कम होने की बजाय लगातार बढ़े ही हैं। खाद्य वस्तुओं के दामों में भी इन 4 सालों में लगातार बढ़ौतरी हुई है। किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला भी नहीं रुका है। कुल मिलाकर महंगाई के मोर्चे पर मोदी सरकार कटघरे में ही खड़ी हुई है। जनता के सपनों पर वज्रपात हुआ है। यू.पी.ए. सरकार के समय जब पैट्रोल की कीमतें 50 से 55 रुपए प्रति लीटर थीं,  तब भाजपा नेता कांग्रेस को कोसते नहीं थकते थे लेकिन अब  पैट्रोल के लगातार बढ़ते दामों पर भाजपा नेतृत्व ने चुप्पी साध ली है।

देश की जनता यह देखकर हत्प्रभ है कि पिछले लोकसभा चुनाव से पहले सड़कों पर अधनंगे होकर प्रदर्शन करने वाले, गले में सब्जियों की मालाएं पहन कर ढोल पीटने वाले और खाली गैस सिलैंडर सामने रखकर मीडिया के सामने पोज देने वाले कई भाजपा नेता आज मंत्री, सांसद व विधायक बन जाने के बाद महंगाई के मोर्चे पर अपनी जुबान खोलने की बजाय महंगाई बढऩे के पीछे तरह-तरह के तर्क देकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं ।

भाजपा के घोषणापत्र, जिसे भाजपा ने अपना संकल्प पत्र बताया था, में देश की जनता से जो वायदे किए गए थे, उनमें महंगाई पर लगाम लगाने के अलावा हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार, किसानों को उनकी उपज का समर्थन मूल्य लागत से दोगुना देना, कर नीति में जनता को राहत देने वाले सुधार व गंगा को प्रदूषण मुक्त करना भी शामिल था लेकिन वस्तुस्थिति किसी से छिपी नहीं है।

भाजापा के मजबूत किले हुए ध्वस्त
भाषण और जुमलों से वस्तुस्थिति को नहीं बदला जा सकता। न भाषणों और आंकड़ों से बेरोजगारों के दर्द को कम किया जा सकता है। भाजपा के संकल्प पत्र के बरअक्स मोदी सरकार के कामकाज की समीक्षा करें तो आम आदमी के हिस्से आज भी निराशा ही है। नोटबंदी व जी.एस.टी.ने कारोबारियों की कमर तोड़ी, कई छोटे-मोटे उद्योग बंद हो गए और उद्योगों में काम करने वाले कामगारों की छंटनी होने से कई परिवार रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहे हैं। हाल ही में लोकसभा की विभिन्न राज्यों में रिक्त हुई सीटों पर हुए उपचुनाव में जिस तरह लोगों ने भाजपा के खिलाफ अपना गुस्सा जताया है और भाजपा के कई मजबूत किले ध्वस्त हो गए हैं, उससे साफ हो गया है कि वायदे पूरे न किए जाने से जनता के भीतर दबा आक्रोश अब तूफान का रूप ले रहा है।

मंहगाई से उपभोक्ता पर बढ़ता है बोझ
इसमें कोई दो राय नहीं कि महंगाई के लिए भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियां काफी हद तक जिम्मेदार हैं। भाजपा सरकार ने शासन में आने के बाद कच्चे तेल की कीमतें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कम होने के बावजूद अनेकों बार पैट्रोल व डीजल की कीमतों को बढ़ाया तथा एक्साइज ड्यूटी व वैट लगाकर उसे और भी महंगा कर दिया। इस साल भी कई बार तेल पदार्थों की कीमतें बढ़ाई गई हैं। जब-जब पैट्रो पदार्थों की कीमतों में वृद्धि होती है, तब ट्रांसपोर्टेशन महंगा हो जाता है जिससे वस्तुओं की कीमतें स्वत: बढ़ जाती हैं। इसी प्रकार ऊर्जा क्षेत्र में दरों की वृद्धि से भी उत्पादन महंगा होने के साथ ही आम उपभोक्ता पर अनावश्यक आर्थिक भार पड़ता है। पहले नोटबंदी व अब अनियंत्रित महंगाई ने भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि के योगदान को भी बुरी तरह प्रभावित किया है तथा जनता की बचत को कालाधन बताकर महिलाओं व गरीबों के हितों पर कुठाराघात किया गया है।

महंगाई के मोर्चे पर सरकार लगातार आंकड़ों का खेल खेल रही है लेकिन आंकड़ों से आम आदमी का पेट नहीं भर सकता। महंगाई लोगों को गुपचुप तरीके से मार रही है। महंगाई रोकने के लिए सरकार ने जो राजकोषीय, मौद्रिक एवं बाजार हस्तक्षेप के उपाय किए हैं, वे पूरी तरह से विफल रहे हैं।

सरकार को अब लोगों के धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। महंगाई को लेकर ‘लोग रो रहे हैं और सरकार सो रही है।’ इस समस्या को काबू करने के लिए सरकार के पास दूरदॢशता,  कार्ययोजना व इच्छाशक्ति का पूरी तरह अभाव है और इसकी सजा देश की जनता भुगत रही है। - राजेन्द्र राणा

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