ऑफ द रिकॉर्डः मोदी ने शिवसेना के साथ अपना व्यवहार अब सुधारा

Edited By Seema Sharma,Updated: 28 Jun, 2018 08:28 AM

modi rectified his behavior with shiv sena

2019 के लोकसभा चुनावों में स्थिति गड़बड़ होने की आशंका महसूस करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिवसेना के साथ अपना व्यवहार सुधारा है। यह कोई रहस्य नहीं है कि मोदी पहले दिन से ही शिवसेना के साथ किसी तरह का संबंध रखने के पक्ष में नहीं। इसके बहुत...

नेशनल डेस्कः 2019 के लोकसभा चुनावों में स्थिति गड़बड़ होने की आशंका महसूस करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिवसेना के साथ अपना व्यवहार सुधारा है। यह कोई रहस्य नहीं है कि मोदी पहले दिन से ही शिवसेना के साथ किसी तरह का संबंध रखने के पक्ष में नहीं। इसके बहुत से कारण हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि शिवसेना ने 2013 में प्रधानमंत्री पद के लिए सुषमा स्वराज के नाम का प्रस्ताव रखा था लेकिन मोदी शिवसेना के साथ संबंध तोडऩा नहीं चाहते और उन्होंने अपने इस विरोध को नजरअंदाज कर दिया। शिवसेना उनकी सरकार की कार्यशैली को लेकर लगातार हमले कर रही  है  मगर  मोदी  ने  कभी भी जवाबी हमला नहीं किया और न ही पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता को जवाबी प्रहार करने की अनुमति दी है लेकिन वह चाहते हैं कि शिवसेना 2019 के लोकसभा चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़े।
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आर.एस.एस. भाजपा के प्रमुख सहयोगी दल के साथ संबंध विच्छेद करने के पक्ष में नहीं जो कि हिन्दू विचारधारा की कट्टर समर्थक है। आर.एस.एस. चाहता है कि शिवसेना को गठबंधन में बनाए रखा जाए और सुझाव दिया कि अमित शाह को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात कर मामले को सुलझाना चाहिए। ऐसी अटकलें हैं कि मोदी ने किसी और ढंग से काम करने का फैसला किया है और शाह को इस बात की अनुमति दी है कि वह जिस ढंग से मामला निपटाना चाहें वह अपनाएं। अमित शाह और उद्धव ठाकरे के बीच हुई सीधी वार्ता में क्या चर्चा हुई, इसको अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया और इस पर अभी पर्दा है तथा किसी को भी दोनों के बीच हुए फार्मूले की जानकारी नहीं मगर भीतरी सूत्रों का कहना है कि शिवसेना की यह शर्त है कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ करवाए जाएं।
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स्पष्ट है कि शिवसेना मुख्यमंत्री का पद बारी-बारी प्रक्रिया के जरिए या अन्य रूप से चाहती है मगर भाजपा फिर से शिवसेना की सर्वोच्चता स्वीकार नहीं करना चाहती और न ही वह महाराष्ट्र में लोकसभा सीटें हारने का नुक्सान वहन करना चाहती है। महाराष्ट्र की 48 संसदीय सीटों में से भाजपा ने 23 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं। ऐसी चर्चा है कि आर.एस.एस. अब शिवसेना नेतृत्व से बात कर रहा है कि वह स्वीकार्य सत्ता सांझेदारी फार्मूला तैयार करे।

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