ऑफ द रिकॉर्डः कोयला और स्पैक्ट्रम की नीलामी पर मोदी की कलाबाजी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Apr, 2018 09:21 AM

modi s acrobatics on coal and spectrum auction

क्या मोदी सरकार प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी की बहु-प्रचलित नीति को खटाई में डालने की योजना बना रही है? अगर कोयला सचिव सुशील कुमार और नीति आयोग के वाइस चांसलर राजीव कुमार के बयान कोई संकेत हैं तो नीलामी नीति अतीत की बात हो सकती है। सुशील कुमार का...

नेशनल डेस्कः क्या मोदी सरकार प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी की बहु-प्रचलित नीति को खटाई में डालने की योजना बना रही है? अगर कोयला सचिव सुशील कुमार और नीति आयोग के वाइस चांसलर राजीव कुमार के बयान कोई संकेत हैं तो नीलामी नीति अतीत की बात हो सकती है। सुशील कुमार का कहना है कि कोई भी व्यक्ति कर वसूली राजस्व के रूप में हमेशा नहीं सोच सकता और उसके दिल में व्यापक लक्ष्य होते हैं। नीति आयोग के वाइस चेयरमैन ने भी एक बंद कमरे की कांफ्रैंस में इसी तरह की भावनाएं व्यक्त की हैं।

औद्योगिक नेताओं के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार स्पैक्ट्रम नीलामी के अपने नजरिए पर फिर से विचार कर रही है। यह प्रक्रिया की शुरूआत है। यहां आप सरकार के अधिकतम राजस्व की बात नहीं कर सकते। आप अपने नागरिकों को अधिक लाभ पहुंचाने के लिए अधिकतम विकास चाहते हैं या फिर प्राइवेट सैक्टर को लाभ पहुंचाना।
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उन्होंने आगे कहा कि हमने वित्तीय वर्ष के दौरान प्रसिद्ध स्पैक्ट्रम की बिक्री नहीं की और सरकार इस पर फिर से विचार कर रही है। राजस्व बढ़ाने की बजाय सरकार अधिक विकास करना चाहती है ताकि लोगों को अधिक लाभ पहुंच सके। ये बयान हैरान करने वाले हैं क्योंकि यू.पी.ए.-1 की कोयला और स्पैक्ट्रम की नीतियों ने मनमोहन सिंह सरकार का पतन करवाया था जिसके तहत ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर स्पैक्ट्रम और कोयला खानों की अलॉटमैंट की गई थी। कैग ने तब सरकार पर राष्ट्रीय खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुक्सान पहुंचाने का आरोप लगाया था क्योंकि स्पैक्ट्रम की नीलामी नहीं की गई थी।
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इसी तरह के आरोप पिछली सरकार द्वारा कोयला खानों के आबंटन के संबंध में लगाए गए थे जिसे कोयला स्कैंडल बताया गया था। इस कलाबाजी से यह संकेत मिलता है कि मोदी सरकार में भाषणबाजी की जगह वास्तविकता ले रही है। प्राइवेट सैक्टर नुक्सान के खिलाफ रोष व्यक्त कर रहे हैं और वे अपना विस्तार करने में विफल रहे हैं इसलिए वे भारी ऋणों की वापसी करने में अक्षम हैं जो उन्होंने बैंक से लिए थे जिसके परिणामस्वरूप बैंकों की गैर-निष्पादित पूंजी (एन.पी.ए.) बढ़ गई और बैंक दिवालिएपन के कगार पर पहुंच गए।

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