Edited By vasudha,Updated: 20 Sep, 2018 03:31 PM
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन दिवसीय सम्मेलन के आखिरी दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विभिन्न विवादास्पद विषयों पर प्रश्नों के उत्तर दिए। इसमें अंतरजातीय विवाह, शिक्षा नीति, महिलाओं के खिलाफ अपराध, गोरक्षा जैसे मुद्दे शामिल रहे...
नेशनल डेस्क: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन दिवसीय सम्मेलन के आखिरी दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विभिन्न विवादास्पद विषयों पर प्रश्नों के उत्तर दिए। इसमें अंतरजातीय विवाह, शिक्षा नीति, महिलाओं के खिलाफ अपराध, गोरक्षा जैसे मुद्दे शामिल रहे। भागवत ने खुलकर अपने विचारों को पेश किया, लेकिन उनके भाषण से आरएसएस संगठन के गुरु रहे एम एस गोलवलकर का नाम गायब रहा।
भागवत ने साफ कहा कि आरएसएस संगठन के गुरु रहे एम एस गोलवलकर के कुछ विचारों से सहमति नहीं रखता है और खुद में बदलाव ला रहा है। उन्होंने कहा कि संघ ने गुरु गोलवलकर के भाषणों के संग्रह की किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' के कुछ हिस्सों को त्याग दिया है, क्योंकि ये वक्त की मांग है।
भागवत ने कहा कि गुरु गोलवलकर की पुस्तक के उन शब्दों को भी भूल जाइए, जिनसे भय उत्पन्न होता था। कुछ बातें देश काल के हिसाब से बोली जाती हैं, गुरुजी के विजन और मिशन पर लिखी गई पुस्तक में ऐसी कोई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि संघ बंद संगठन नहीं है, समय बदलता है, हमारी सोच बदलती है। बदलने की परमिशन डॉ. केशव बलिराम हेडेगवार से मिलती है, जिन्होंने कहा कि हम समय के साथ संगठन में बदलाव करने के लिए स्वतंत्र हैं।
आरएसएस प्रमुख ने इस समारोह ने ऐसे मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी, जिन पर आरएसएस का दृष्टिकोण संकीर्ण माना जाता है। साथ ही, उन्होंने संघ की बदलती हुई छवि को भी पेश करने की कोशिश की। अन्य मुद्दों पर पूछे गए सवालों के उत्तर में उन्होंने जम्मू-कश्मीर का भी उल्लेख किया। भागवत ने कहा कि आरएसएस संविधान के अनुच्छेद 370 एवं 35 ए को स्वीकार नहीं करता। संविधान का अनुच्छेद 370 राज्य की स्वायत्तता के बारे में है, जबकि अनुच्छेद 35 ए राज्य विधानसभा को यह अनुमति देता है कि वह राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करे।