MP विधानसभा उपचुनाव: हार के बाद भी बढ़ा BJP का वोट बैंक

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Mar, 2018 12:16 PM

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और वरिष्ठ कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बने मध्यप्रदेश के कोलारस और मुंगावली विधानसभा उपचुनाव में कांटे की टक्कर के बीच आखिरकार विजय का परचम कांग्रेस को ही नसीब हुआ और तमाम कोशिशों के...

भोपालः मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और वरिष्ठ कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बने मध्यप्रदेश के कोलारस और मुंगावली विधानसभा उपचुनाव में कांटे की टक्कर के बीच आखिरकार विजय का परचम कांग्रेस को ही नसीब हुआ और तमाम कोशिशों के बावजूद ‘कमल’ नहीं खिल सका। कोलारस में कांग्रेस प्रत्याशी महेंद्र यादव ने भाजपा के देवेंद्र जैन को आठ हजार से अधिक मतों से पराजित किया और पार्टी का कब्जा बरकरार रखा। हालांकि पिछले चुनाव की तुलना में कांग्रेस की जीत के अंतर गिरावट आई है। पिछली बार कांग्रेस यहां से लगभग पच्चीस हजार मतों से विजयी हुई थी।

पड़ोसी अशोकनगर जिले के मुंगावली विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह यादव ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा की बाईसाहब यादव को दो हजार एक सौ से अधिक मतों से शिकस्त दी। यहां भी कांग्रेस की जीत का अंतर पिछली बार की तुलना में काफी कम रह गया है। भले ही भाजपा दोनों सीटों पर जीत का परचम यहां नहीं लहरा सकी लेकिन पिछले साल के मुकाबले उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है। इसे भाजपा के लिए अच्छा भी माना जा रहा है। कांग्रेस के खाते में जहां बीएसपी के अधिक वोट पड़े वहीं भाजपा को आदिवासी वोटरों का साथ नहीं मिलने से उसे नुकसान हुआ।

सिंधिया के आगे फीकी पड़ी चौहान की चमक
सिंधिया के गढ़ माने जाने वाले इन क्षेत्रों में सेंध लगाने के लिए राज्य सरकार के लगभग डेढ़ दर्जन मंत्री, संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी, सांसद, विधायक और हजारों कार्यकर्ता कई दिनों तक चुनावी क्षेत्र में जमे रहे। इसके बावजूद भाजपा, कांग्रेस से सीट छीनने में सफल नहीं रही।  इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के कारण इन दो उपचुनावों को सत्ता के गलियारों में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा था। इसके पहले चित्रकूट और अटेर विधानसभा उपचुनाव में भी भाजपा को कांग्रेस के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा है। इन लगातार चार पराजयों से जहां भाजपा के प्रदेश नेतृत्व और शिवराज सिंह चौहान सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं, वहीं अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस को मानो संजीवनी भी मिलना प्रारंभ हो गई हो।

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