भारत के दिलोदिमाग में ताजा हैं मुंबई हमले की भयावह तस्वीरें: राष्ट्रपति

Edited By Anil dev,Updated: 26 Nov, 2018 06:16 PM

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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को कहा कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले की ‘‘भयावह तस्वीरें’’ आज भी भारत के दिलोदिमाग में ताजा हैं और हम पर पीड़ितों को न्याय दिलाने की ‘‘नैतिक जिम्मेदारी’’ है। यहां आयोजित ‘संविधान दिवस समारोह’ में...

नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को कहा कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले की ‘‘भयावह तस्वीरें’’ आज भी भारत के दिलोदिमाग में ताजा हैं और हम पर पीड़ितों को न्याय दिलाने की ‘‘नैतिक जिम्मेदारी’’ है। यहां आयोजित ‘संविधान दिवस समारोह’ में कोविंद ने मुंबई की इस घटना जैसे आतंकी हमलों से उत्पन्न चुनौतियों के बारे में अन्य गणमान्य लोगों की ङ्क्षचताओं को साझा किया। कोविंद ने कहा, ‘‘मैं आज के दिन मुंबई में हुए आतंकी हमले का जिक्र करना चाहता हूं, ठीक दस साल बाद। वे भयावह तस्वीरें अब भी भारत के दिलोदिमाग में ताजा हैं। राष्ट्र और समाज के तौर पर, हम पर नैतिक जिम्मेदारी है कि हम पीड़ित लोगों और उनके परिवारों को न्याय दिलाएं।’’ 

राष्ट्रपति ने ये टिप्पणियां उस समय कीं जब उच्चतम न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, केन्द्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद और उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) के प्रमुख विकास सिंह ने मुंबई में हुए आतंकी हमले का जिक्र किया। इस हमले में बड़ी संख्या में लोगों की जान गई थी। न्यायमूर्ति लोकूर ने अपने भाषण में कहा कि देश ने 26 नवंबर 2008 को आतंकवादियों द्वारा पेश बड़ी चुनौती का सामना किया था ‘‘जब देश की वित्तीय राजधानी में असामान्य रूप से बड़ी संख्या में पुरुष, महिलाएं और बच्चे आतंकी हमले के शिकार हुए और इसमें 250 से अधिक लोगों की मौत हुई।’’ उन्होंने कहा, ‘‘आज भी, कुछ ताकतों द्वारा इस तरह की चुनौतियां पेश की जा रही हैं और हमें एकजुट होकर उनका सामना सतर्कता से करना चाहिए। हमारे संविधान की अखंडता हमारे लिए सबसे बड़ी ङ्क्षचता का विषय होनी चाहिए और हमें याद रखना चाहिए कि मिलकर हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।’’     

विधि मंत्री ने कहा कि आतंकवादी और कुछ अन्य लोग आतंकवादियों के मानवाधिकारों की बातें करते हैं लेकिन इस तरह के हमलों के शिकार लोगों के मानवाधिकारों का क्या होगा। उन्होंने कहा, ‘‘हमें समझना चाहिए कि आतंकवादी बहुत घातक हथियारों से लैस हैं। वे मानवाधिकार और निष्पक्ष सुनवाई की भी मांग करते हैं जो हमें देना चाहिए लेकिन अर्थहीन हमलों के पीड़ितों के मानवाधिकारों का क्या होगा, दोनों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए, हमें इस पर चर्चा और बहस करनी चाहिए।’’ प्रसाद ने कहा, ‘‘आतंकवादी मानवाधिकार मांगते हैं क्योंकि हमारा संविधान इन्हें देता है लेकिन आतंकी हमलों के शिकार लोगों के मानवाधिकारों का क्या होगा? इस बारे में हमें चर्चा और बहस करनी चाहिए।’’     

एससीबीए प्रमुख विकास सिंह ने कहा कि ‘‘आतंकवादियों को पछाडऩे के लिए’’ हमें एक कानून की जरूरत है। कानून के द्वारा, मीडिया को आतंकी हमलों के साजिशकर्ताओं और संगठन के नामों को प्रकाशित करने से रोका जाना चाहिए क्योंकि इस तरह के हमले का मुख्य उद्देश्य लोकप्रियता हासिल करना होता है। गौरतलब है कि मुंबई में 26 नवंबर 2008 को पाकिस्तान से आए हथियारों से लैस दस आतंकवादियों ने देश के इतिहास के सबसे क्रूर आतंकी हमले में 166 लोगों की हत्या की थी और हमले में 300 से अधिक लोग घायल हुए थे।     

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