Edited By Tanuja,Updated: 31 Jul, 2020 04:26 PM
म्यांमार ने एक बड़े प्रोजैक्ट में चीन को करारा झटका दिया है । म्यांमार ने चीन की सबसे महत्वकांशी व प्रमुख बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI ) के हिस्सा यांगून मेगा ...
इंटरनेशनल डेस्कः म्यांमार ने एक बड़े प्रोजैक्ट में चीन को करारा झटका दिया है । म्यांमार ने चीन की सबसे महत्वकांशी व प्रमुख बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के हिस्सा यांगून मेगा सिटी प्रोजेक्ट में अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों को शामिल करने का फैसला किया है। म्यांमार के इस निर्णय को चीन के खिलाफ बड़ा कदम बताया जा रहा है। म्यांमार सरकार ने यांगून मेगा सिटी प्रोजेक्ट चीन संचार निर्माण कंपनी (CCCC) के अलावा अन्य विदेशी फर्मों के लिए परियोजना के द्वार खोलने का ऐलान कर दुनिया को चौंका दिया है ।
जानकारी के अनुसार म्यांमार का मानना है कि चीन इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में उत्सुकता नहीं दिखा रहा है । हालांकि इस साल की शुरुआत में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की म्यांमार यात्रा के दौरान, दोनों पक्षों ने यांगून शहर के विकास और इस मेगा प्रोजेक्ट को लेकर एक पत्र पर हस्ताक्षर भी किए थे । खास बात यह है कि न्यू यांगून सिटी परियोजना चीन म्यांमार आर्थिक गलियारा शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी बेल्ड एंड रोड अभियान का ही अंग है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस प्रोजेक्ट में काम कर रही चीनी राज्य के स्वामित्व वाली CCCC कंपनी पर अफ्रीका और एशिया में कम से कम 10 देशों में विकास सौदों से संबंधित भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है। इसके अलावा मलेशिया में पूर्व प्रधान मंत्री के बड़े भ्रष्टाचार घोटाले में इस कंपनी के शामिल होने का आरोप लगाया गया है। बता दें कि शी जिनपिंग दोनों देशों के राजनयिक रिश्तों की 70वीं वर्षगांठ पर म्यांमार आए थे और इस दौरान म्यांमार की शीर्ष नेता आंग सान सू ची के साथ मिलकर चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे के तहत कई परियोजनाओं को शुरू करने पर सहमति जताई थी।
शी जिनपिंग के दौरे से पहले चीन के उप विदेश मंत्री लाउ शाहुई ने पत्रकारों से कहा था कि राष्ट्रपति की इस यात्रा का मक़सद दोनों देशों के रिश्तों को मज़बूत करना और बेल्ट एंड रोड अभियान के तहत आपसी सहयोग बढ़ाना है। उन्होंने कहा था कि इस दौरे का तीसरा लक्ष्य है 'चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे को मूर्त रूप देना। ' गोरतलब है कि चीन के इसी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को भारत सशंकित निगाहों से देखता रहा है क्योंकि उसका मानना है कि इस अभियान के तहत चीन दक्षिण एशियाई देशों में अपना प्रभाव और पहुंच बढ़ाने की कोशिशों में जुटा है।