Edited By ,Updated: 27 Jun, 2016 03:54 PM
मैसूर के महाराज यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वडियार सोमवार को राजस्थान के डूंगरपुर की राजकुमारी त्रिशिका कुमारी सिंह के साथ परिणय सूत्र में बंध गए।
बेंगलुरु: मैसूर के महाराज यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वडियार सोमवार को राजस्थान के डूंगरपुर की राजकुमारी त्रिशिका कुमारी सिंह के साथ परिणय सूत्र में बंध गए। मैसूर के राजमहल में करीब 40 साल बाद शादी की शहनाई बजी। इससे पहले अम्बा विलास राजमहल मे दिवंगत महाराज श्रीकांतदत्त नरसिम्हराज वडियार ने 1976 में प्रमोदा देवी से शादी की थी। उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। इसलिए रानी प्रमोदा देवी ने अपने पति की बड़ी बहन के बेटे यदुवीर को गोद लिया और वाडियार राजघराने का वारिस बना दिया।
यह पहली बार नहीं हुआ जब वाडियर राजघराने में दत्तक पुत्र को राजा बनाया गया हो। पिछले 400 सालों से इस राजघराने में राजा-रानी को बेटा नहीं हुआ। यानी राज परंपरा आगे बढ़ाने के लिए राजा-रानी 400 सालों से परिवार के किसी दूसरे सदस्य के पुत्र को गोद लेते आए हैं। इसकी वजह है एक श्राप। दरअसल, मैसूर राजघराने को लेकर मान्यता है कि 1612 में दक्षिण के सबसे शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद वाडियार राजा के आदेश पर विजयनगर की अकूत धन संपत्ति लूटी गई थी।
उस समय विजयनगर की तत्कालीन महारानी अलमेलम्मा के पास काफी सोने, चांदी और हीरे-जवाहरात थे। वाडियार ने गहने लेने के लिए दूत भेजा, लेकिन अलमेलम्मा के इंकार करने पर शाही फौज ने जबरदस्ती खजाने पर कब्जे की कोशिश की। इससे दुखी होकर महारानी अलमेलम्मा ने कथित तौर पर श्राप दिया कि जिस तरह तुम लोगों ने मेरा घर उजाड़ा है उसी तरह इस वंश के राजा-रानी की गोद हमेशा सूनी रहे। इसके बाद अलमेलम्मा ने कावेरी नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। तब से अबतक लगभग 400 सालों से वाडियार राजवंश में किसी भी राजा को पुत्र नहीं हुआ।