इनके नाम पर मनाया जाता है ‘इंजीनियर्स डे’, PM मोदी और उपराष्ट्रपति ने भी दी बधाई

Edited By Seema Sharma,Updated: 15 Sep, 2019 02:30 PM

naidu and modi congratulate engineers on engineers day

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को इंजीनियर्स दिवस पर इंजीनियरों को बधाई दी और उन्हें परिश्रम तथा दृढ़ संकल्प का पर्यायवाची बताया। इंजीनियर्स दिवस प्रसिद्ध सिविल इंजीनियर एम विश्वेश्वरय्या के जन्मदिवस

नई दिल्लीः उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को इंजीनियर्स दिवस पर इंजीनियरों को बधाई दी और उन्हें परिश्रम तथा दृढ़ संकल्प का पर्यायवाची बताया। इंजीनियर्स दिवस प्रसिद्ध सिविल इंजीनियर एम विश्वेश्वरय्या के जन्मदिवस के मौके पर मनाया जाता है। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया कि इंजीनियर परिश्रम और दृढ़ता के पर्यायवाची हैं। उनके कुछ नया करने की चाहत के बिना मानव की उन्नति अधूरी रहेगी।'' ‘मेहनती इंजीनियरों' को बधाई देते हुए मोदी ने विश्वेश्वरय्या को श्रद्धाजंलि भी दी। नायडू ने विश्वेश्वरय्या को उत्कृष्ट सिविल इंजीनियर बताया जिन्होंने बांधों के जरिए भारत के जल संसाधन का सही इस्तेमाल किया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह दूरंदेश थे। उनके अमूल्य योगदान के लिए राष्ट्र हमेशा कृतज्ञ रहेगा।

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कौन थे विश्वेश्वरय्या
हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर डे मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन महान इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म हुआ था। उनकी याद में ही इंजीनियर डे दिवस मनाया जाता है। उनका जन्म साल 15 सितंबर 1861 में मैसूर में हुआ जो अब कर्नाटक में है। वे बहुत गरीब परिवार से थे और उनका बचपन काफी आर्थिक संकट में गुजरा। जब सालों पहले भारत में न तो बेहतर इंजीनियरिंग सुविधाएं थीं और न ही तकनीक थी, तब ऐसे समय में विश्वेश्वरैया ने विशाल बांध का निर्माण पूरा करवाया जो भारत में एक मिसाल के तौर पर आज भी याद किए जाते हैं।

 

शुरुआती पढ़ाई मैसूर में करने के बाद उन्होंने बेंगलुरु में 'सेंट्रल कॉलेज' में दाखिला लिया लेकिन उनके पास कॉलेज में देने के लिए फीस नहीं थी जिसके बाद उन्होंने ट्यूशन लेना शुरू किया और अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने 1881 में बीए की पढ़ाई के बाद स्थानीय सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के 'साइंस कॉलेज' में दाखिला लिया. 1883 की एल.सी.ई. व एफ.सी.ई. (वर्तमान समय की बीई उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया। उनकी योग्यता को देखते महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया। जिस समय उन्होंने इंजीनियरिंग में अपने करियर की शुरुआत की, तब भारत में ब्रिटिश शासन था।

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विश्वेश्वरैया ने अपनी योग्यता से बड़े बड़े अंग्रेज़ इंजीनियरों को अपनी योग्यता और प्रतिभा का लोहा मनवाया। प्राकृतिक जल स्रोत्रों से घर-घर में पानी पहुंचाने की व्यवस्था और गंदे पानी की निकासी के लिए नाली-नालों की समुचित व्यवस्था उन्होंने ही की। 1932 में 'कृष्ण राजा सागर' बांध के निर्माण परियोजना में वो चीफ इंजीनियर की भूमिका में थे। 'कृष्ण राज सागर' बांध का निर्माण आसान नहीं था क्योंकि तब देश में सीमेंट तैयार नहीं होता था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और इंजीनियर्स के साथ मिलकर 'मोर्टार' तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। उन्होंने बांध बनवाया और आज भी यह बांध कर्नाटक में मौजूद है। यह बांध उस समय का एशिया का सबसे बड़ा बांध कहा जाता था। इस बांध से कावेरी, हेमावती और लक्ष्मण तीर्थ नदियां आपस में मिलती है। 1955 में विश्वेश्वरैया को सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था।

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