Edited By Anil dev,Updated: 08 Jan, 2019 11:57 AM
मोदी लहर पर सवार भाजपा 2014 में जब अभूतपूर्व बहुमत से केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई तो उस वक्त पार्टी की इस प्रचंड जीत में हिंदी पट्टी के राज्यों का किरदार बहुत ही अहम रहा था। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान जैसे राज्यों में तो मोदी लहर सुनामी में...
जालन्धर(महिन्द्र ठाकुर): मोदी लहर पर सवार भाजपा 2014 में जब अभूतपूर्व बहुमत से केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई तो उस वक्त पार्टी की इस प्रचंड जीत में हिंदी पट्टी के राज्यों का किरदार बहुत ही अहम रहा था। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान जैसे राज्यों में तो मोदी लहर सुनामी में तबदील हो गई थी। उसकी रफ्तार इतनी प्रचंड थी कि इन तीनों राज्यों की 65 सीटों में से 63 सीटें भाजपा की झोली में गिरीं। उसके बाद 2016 के आते-आते भाजपा को यह अहसास बाखूबी हो गया था कि इन राज्यों में जीत की इस पराकाष्ठा को दोहरा पाना असंभव ही नहीं बल्कि पूरी तरह से नामुमकिन है।
लिहाजा भाजपा के चाणक्य और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने हिंदी भाषी राज्यों के इस नुक्सान की भरपाई के लिए पूरे देश की उन 123 सीटों को चिन्हित कर उन्हें जीतने का खाका खींचा जिन पर भाजपा 2014 में दूसरे स्थान पर रही थी। जिस रफ्तार से देश में भाजपा फैल रही थी उससे शुरूआत में तो शाह का यह मिशन पूरा होता दिख रहा था लेकिन हाल ही में आए 3 राज्यों के चुनावी परिणामों ने शाह के सारे सियासी समीकरणों को उलझा दिया है। इन परिणामों ने शाह के मिशन 123 की राह में अब इतने अवरोध पैदा कर दिए हैं जिन्हें फिलवक्त तो हटाना उनके बूते की बात नहीं लग रही।
ये हैं मिशन की मुश्किलें
1. कमजोर संगठन
शाह ने जो 123 सीटें चिन्हित की हैं उनमें ज्यादातर सीटें उन राज्यों में हैं जहां भाजपा का सांगठनिक ढांचा मजबूत नहीं है। इन राज्यों में ओडिशा, पश्चिमी बंगाल, असम व पूर्वोत्तर के राज्य शामिल हैं। 2014 में इन राज्यों की 77 सीटों में से भाजपा केवल 10 सीटें ही जीत पाई थी।
2. हार-जीत का अधिक अंतर
भाजपा जिन सीटों पर पिछला लोकसभा चुनाव हार कर दूसरे नंबर पर रही उनमें करीब 82 सीटें ऐसी हैं जहां उसे विजेता उम्मीदवार की तुलना में करीब 20 फीसदी मत कम मिले हैं। अब इतने वोटों को पलटना किसी भी सूरत में आसान नहीं है।
3. फीका पड़ा मोदी मैजिक
2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक जनता के सिर चढ़कर बोला था लेकिन अब हालात पहले जैसे नहीं हैं। अब मोदी मैजिक में पहले जैसा मादा नहीं बचा है। इसका ट्रेलर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में दिख चुका है।
4. एकजुट विपक्ष
पिछले लोकसभा चुनाव में समूचा विपक्ष बिखरा हुआ था। सभी विपक्षी पाॢटयां अपने वजूद के दम पर चुनावी समर में उतरी थीं लेकिन 2019 में ऐसा होता दिख नहीं रहा है। मौजूदा दौर में जिस तरह की संभावनाएं बन रही हैं अगर वे हकीकत में तबदील हो गईं तो फिर शाह के मिशन को ग्रहण लग सकता है।
5. उत्साह से लबरेज कांग्रेस
हार-दर-हार से टूट चुकी कांग्रेस के लिए पिछले साल 3 राज्यों में मिली जीत से पार्टी में नए उत्साह का संचार तो हुआ ही है साथ ही वह रणनीतिक लिहाज से भी पहले से ज्यादा आक्रामक दिख रही है। ऐसे में शाह के लिए अपने मिशन को अंजाम तक पहुंचाना बेहद मुश्किल दिख रहा है।
मिशन 123
70-80 सीटों के नुक्सान की आशंका है भाजपा नेतृत्व को असम, ओडिशा, प. बंगाल, केरल व पूर्वोत्तर से भरपाई की उम्मीद
20 राज्यों में हैं ये 123 सीटें
यह है शाह की रणनीति
- पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इन सीटों को 25 क्लस्टर में बांटा है।
- हर क्लस्टर एक-एक प्रभारी के हवाले।
- 100 दिन में मोदी इन 20 राज्यों में बने 25 क्लस्टर तक सीधे पहुंच कर कार्यकत्र्ताओं को एक्टिव कर माहौल बनाएंगे।
- 3 राज्यों में हार के बाद इन सीटों पर बूथों की मजबूती पर अधिक जोर, साथ ही पन्ना प्रमुखों की भी तैनाती।