Edited By Anil dev,Updated: 02 Jan, 2019 12:03 PM
साल के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 90 मिनट का साक्षात्कार आपने देख ही लिया होगा। अब इसपर चर्चा शुरू हो गई है। सभी लोग अपने अपने ढंग से इसका आकलन कर रहे हैं। बीजेपी का मीडिया प्रकोष्ठ इसे अपने ढंग से भुनाने में तुरंत प्रभाव से जुट गया...
नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): साल के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 90 मिनट का साक्षात्कार आपने देख ही लिया होगा। अब इसपर चर्चा शुरू हो गई है। सभी लोग अपने अपने ढंग से इसका आकलन कर रहे हैं। बीजेपी का मीडिया प्रकोष्ठ इसे अपने ढंग से भुनाने में तुरंत प्रभाव से जुट गया है तो विपक्ष ने इसे अभी तक नजरअंदाज कर रखा है। हालांकि कोई प्रतिक्रिया न हो यह संभव नहीं है क्योंकि उन परिस्थितियों में न्यूटन का नियम भी बदलना पड़ जाएगा। खैर सबके अपने-अपने आकलन हैं। हमारी नजर में यह साक्षात्कार था ही नहीं। यह महज सफाई थी। देश लम्बे अरसे से प्रधानमंत्री के मुख से कुछ सवालों के जवाब चाह रहा था। रफाल, राम मंदिर, नोटबंदी,जीएसटी, कर्जमाफी, अगस्टा आदि तमाम मसलों पर।
विपक्ष ने भी कहना शुरू कर दिया था कि मोदी मीडिया का सामना करने से डर रहे हैं। मध्यप्रदेश के चुनावों के दौरान सड़क किनारे मीडिया से बात करते राहुल गांधी का वो ब्यान आपको याद ही होगा कि जैसे मैं (राहुल गांधी ) सरेआम मीडिया से बात कर रहा हूं मोदी जी क्यों नहीं प्रेस कांफ्रेंस करते। तो यह सब उन्हीं बातों पर मोदी की सफाई थी। इसमें भी बड़ी सफाई से उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस न करके एक मीडिया एजेंसी को चुना। जाहिर है प्रेस कांफ्रेंस होती तो पचास लोग सवाल करते ,जबकि ऐसे साक्षात्कार में सामने सिर्फ एक ही पत्रकार सामने था। अब इतने चतुर सुजान तो मोदी हैं ही। इसलिए उन्होंने इस साक्षात्कार के जरिए यह तो तय कर ही लिया कि ज्यादा ग्रिल्लिंग न हो। लेकिन इसके बावजूद इस इंटरव्यू में मोदी के वो हाव,भाव और ताव नजर नहीं आए। निश्चित तौर पर यह मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हुई हार का असर था। और असर कितना ज्यादा था इसका अंदाजा यहीं से लगा लीजिए कि मुख्यमंत्री हारने को मोदी हरियाणा में नगर निगम के मेयर के साथ कम्पनसेट करते नजर आए। यह तुलना निश्चित तौर पर चौंकाने वाली थी?
दो बड़ी स्वीकारोक्तियां
इंटरव्यू के दौरान जो दो बड़ी बातें मोदी ने कहीं या स्वीकारीं वे भी काम महत्वपूर्ण नहीं हैं। उन्होंने पहलीबार माना कि जीएसटी जल्दबाजी भरा कदम था। उन्होंने कहा कि इससे थोड़ा नुकसान हुआ और यही वजह रही की इसमें बदलाव करना पड़ा। दूसरा बड़ा ब्यान वह था जब उनसे अगस्टा मामले पर सवाल पूछा गया कि भारत लाये गए मिचेल ने सोनिया गांधी या इटली की बेटी जैसे कुछ खुलासे किये हैं ? मोदी ने कहा कि - मीडिया में ऐसी बातें आई हैं। यानी उनके पास बतौर प्रधानमंत्री कोई आधिकारिक सूचना नहीं है। यह बड़ी बात है। खासकर तब जब वे इसी इंटरव्यू में अपनी कुछ योजनाओं की आलोचना को मीडिया जनित बताते हुए दिखे।
राम मंदिर, रफाल पर कन्नी काटी
राममंदिर के निर्माण को लेकर मोदी ने साफ़ कर दिया कि वे अध्यादेश नहीं लाएंगे बल्कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। इसके पक्ष में उन्होंने तीन तलाक का उद्धारहण दिया। लेकिन यह तो साफ़ हो ही गया कि इस मसले पर मोदी पीछे हट रहे हैं। क्यों? यह साफ होने में अभी समय लग सकता है। हो सकता है उन्हें तीन तलाक पर मुस्लिम महिलाओं के समर्थन से इस मसले के नुक्सान की भरपाई का विश्वास हो। यह फिर वे जानते हैं कि मामला फिर से राजयसभा में फंसेगा। यही नहीं उन्होंने इस सारे मामले को अब विपक्ष पर ही मढऩे के भी संकेत दिए हैं। दिलचस्प ढंग से राम मंदिर पर संघ अध्यादेश चाह रहा है। तो क्या मोदी ने अध्यादेश नहीं लाने की बात करके जानबूझकर संघ को नाराज किया है या फिर यह कोई सोचे समझी रणनीति है?
गठबंधन को लेकर गडमड
मोदी गठबंधन की सियासत पर भी गडमड नजर आए। एक तरफ उन्होंने कहा की महागठबंधन फेल है। गठबंधन नहीं चलने वाला। दूसरी तरफ उन्होंने बीजेपी की तरफ से सहयोगी दलों को लुभाने की कोशिश की। उलटे क्षेत्रीय दलों को यह डर दिखाया गया कि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों को खा जाती है जबकि बीजेपी में उन्हें खिलने और फैलने का अवसर मिलता है। यानि गठबंध विपक्ष करे तो यह सियासत फेल और बीजेपी करे तो फलीभूत।
सहमे सहमे से सरकार नजर आते हैं
कुलमिलाकर पूरे साक्षात्कार में मोदी उस मोड में नजर नहीं आये जो उनका स्वभाव है। वो 56 के सीने वाली बातें 36 किन्तु-प्रंतुओं मे लिपटी नजर आईं। उन्होंने सौम्य होने की अतिरिक्त चेष्टा की। और जब ऐसा होता है तो सौम्यता अक्सर सहमे होने का प्रभाव देती है। और यह प्रभाव कई लोगों ने साक्षात्कार के दौरान देखा भी होगा। उन्होंने किसानों के कर्जमाफी को लालीपॉप जरूर बताया लेकिन यह नहीं सुझाया की हल क्या है ? किसान तो खुद कर्जमाफी नहीं चाहते , वे कर्ज मुक्ति चाहते हैं। लेकिन कैसे किसान इतना सक्षम होगा कि कर्ज से मुक्त हो जाए इसका खुलासा प्रधानमंत्री ने नहीं किया। युवाओं पर भरोसा है -यह तो कहा लेकिन युवा कैसे रोजगार हासिल करेंगे उसकी कोई चर्चा नहीं हुई। गौ-हिंसा पर खेद और निंदा तो जताई लेकिन कैसे रुकेगी यह नहीं बताया। यह तो कहा कि पाकिस्तान एक लड़ाई से नहीं सुधरने वाला लेकिन आप कैसे उसे सुधारेंगे इसका खुलासा नहीं हुआ। उलटे सर्जिकल स्ट्राइक पर एक बार फिर से भावनाओं से खेलने की कोशिश हुई। कुलमिलाकर हमारी नजर में यह मिस फायर हो गया।