नजरिया: कांग्रेस के सामने नई शुरुआत की चुनौती

Edited By Anil dev,Updated: 11 Aug, 2018 12:11 PM

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आधी रात बिजली गुल हुई तो जालंधर की गर्मी ने सताना शुरू कर दिया। नींद नहीं आ रही थी तो सोचा संगीत सुना जाए। मोबाइल पर रेडियो ऑन किया तो सुदर्शन फाकिर की लिखी जगजीत सिंह और चित्रा की गाई गजल बज रही थी- उस मोड़ से शुरू करें फिर ये जिंदगी।

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): आधी रात बिजली गुल हुई तो जालंधर की गर्मी ने सताना शुरू कर दिया। नींद नहीं आ रही थी तो सोचा संगीत सुना जाए। मोबाइल पर रेडियो ऑन किया तो सुदर्शन फाकिर की लिखी जगजीत सिंह और चित्रा की गाई गजल बज रही थी--- उस मोड़ से शुरू करें फिर ये जिंदगी।

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हर शय जहां हसीन थी, हम तुम थे अजनबी। सुनते-सुनते अपुन के भेजे में अचानक ख्याल आया कि अपने युवराज की कांग्रेस का भी तो कुछ ऐसा ही हाल है।  कहां तो कमबैक की बातें हो रही थीं और कहां पार्टी रसातल की और चल पड़ी है। मोदी की मैनेजमेंट ने संसद के मानसून सत्र में ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला कि मास्टर स्ट्रोक और कांग्रेस  दोनों के दरवाजे बंद  हो गए। गुजरात और खासकर कर्नाटक के चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस  का मनोबल हिलोरे लेने लगा था। ऐसे में लग रहा था कि मानसून सत्र में जरूर मोदी सरकार पर बादल फटेगा। अविश्वास प्रस्ताव आया तो लगा अब बादल फटा समझो। लेकिन बादल अपनों पर ही बरस कर उनको भीगी बिल्ली बना गया। कांग्रेस ने जिस नंबर गेम की बात कहकर बड़े बड़े कलमघसीटों को लिखने पर मजबूर कर दिया था वो नंबर 125 पर सिमट गया। 

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वेचारे युवराज की हालत खिसियानी----आंख मारे -- जैसी हो गई। हालांकि कांग्रेस को दूसरा मौका भी मिला। राजयसभा के उपसभापति  के चुनाव को लेकर, लेकिन उसमे भी तमाम दावों के विपरीत मोदी बाजी मार गए। यहां कांग्रेस 105 पर थम गई। यानि कुछ और दोस्त दगा दे गए। और अब जब हम पूरे सत्र का सिंहावलोकन करते हैं तो पता चल रहा है कि इस मानसून सत्र में कांग्रेस पर ढेरों मन गाद आ गिरी है,जिसके बोझ से निकलते- निकलते कहीं उसके हाथ से 2019 न निकल जाए। अब देखिए न कांग्रेस ने पिछले तीन सत्रों में  बेहतर प्रदर्शन किया। संसद में नब्बे फीसदी काम नहीं हुआ और एकबारगी तो कांग्रेस और विपक्ष का यह विरोध सरकार के गले की फांस बना गया। चूंकि सदन चलाने की जिम्मेदारी सत्ताधारी दल की ही होती है इसलिए विपक्ष की तमाम विरोधभरी चालों के बावजूद बीजेपी बैकफुट पर थी। लेकिन इस बार मोदी और उनके मैनेजरों ने बड़ी ही चतुराई से परिस्थितयां बदल डालीं। पिछले 18 साल में काम के लिहाज से गुजरा मानसून सत्र सबसे बेहतर रहा है। इस सत्र में 20 बिल पेश हुए जिनमें से 18 पारित हुए हैं। हालांकि तीन तलाक जैसा अहम बिल पेश नहीं हो सका लेकिन यहां भी सत्तापक्ष यह साबित करने में कामयाब रहा कि इसके पीछे विपक्ष का विरोध ही मुख्य कारण है। यानी सदन के बाहर भी बीजेपी ने कांग्रेस पर हमले का असलाह इसी सत्र से एकत्रित कर  लिया है। 

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पिछले तीन स्तरों में लोकसभा में महज बीस फीसदी काम हुआ था जबकि इस बार दस फीसदी काम अधिक हुआ है। 8 घंटे के व्यवधान को 20 घंटे अतिरिक्त काम करके पूरा किया गया है। कुलमिलाकर दोनों सदनों में बजट सत्र के मुकाबले तीन गुना ज्यादा काम हुआ है। अब इसका सियासी मतलब समझिए।  साफ है कि बीजेपी ने अपनी पकड़ बजबूत की है और कांग्रेस और विपक्ष हिला है। अगला सत्र अब बजट सत्र होगा। हुआ तो भी और नहीं हुआ तो अंतरिम बजट से भी काम चलाया जा सकता है। यानी 2019  के लिहाज से यही सत्र महत्वपूर्ण था। और इसी में  बीजेपी ने बाजी पलट दी। सत्र की सफलता, अविश्वास प्रस्ताव  का गिरना और राज्यसभा में उपसभापति भी अपना बनवाकर बीजेपी ने एक संकेत दे दिया है कि वो पहले से अगर ज्यादा मजबूत नहीं तो कम भी नहीं। जबकि कांग्रेस के सामने अब खुद को और खुद के कथित महागठबंधन को समेटने की चुनौती है। वैसे महागठबंधन जिस तरह से एक एक कर बिखर रहा है उससे  तो यही लगता है कि फाकिर साहब  ने यह गजल  कांग्रेस के लिए ही लिखी थी।  -- उस मोड़ से शुरू करें फिर यह जिंदगी ----- क्या कांग्रेस कर पाएगी --नई शुरुआत--??   

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