मोदी ने 2015 में लांच किया ‘डिजीटल इंडिया’, खुद 1987 में हो गए थे डिजीटलाइज्ड

Edited By Anil dev,Updated: 15 May, 2019 10:36 AM

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास 1987 में डिजीटल कैमरा और ई-मेल की सुविधा होने के दावे सुर्खियों में हैं। इन दावों को लेकर उन्हें सोशल मीडिया पर किरकिरी भी झेलनी पड़ी। आज हम बताने जा रहे हैं कि पी.एम. मोदी ने सत्ता संभालने के बाद खुद 1 जुलाई, 2015...

इलैक्शन डैस्क (सूरज ठाकुर): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास 1987 में डिजीटल कैमरा और ई-मेल की सुविधा होने के दावे सुर्खियों में हैं। इन दावों को लेकर उन्हें सोशल मीडिया पर किरकिरी भी झेलनी पड़ी। आज हम बताने जा रहे हैं कि पी.एम. मोदी ने सत्ता संभालने के बाद खुद 1 जुलाई, 2015 को डिजीटल इंडिया कार्यक्रम को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम से लांच किया था। खास बात यह है कि अरबों रुपए के इस प्रोजैक्ट की लांचिंग पर अनिल अंबानी, अजीम प्रेमजी, साइरस मिस्त्री जैसी हस्तियां भी मौजूद थीं। सरकार ने 1,13,000 करोड़ का बजट रखा था। इस कार्यक्रम के तहत 2.5 लाख पंचायतों समेत 6 लाख गांवों को ब्रॉडबैंड से जोडऩे का लक्ष्य है। यह कार्यक्रम अभी भी जारी है और 2018-19 के बजट में डिजीटल इंडिया कार्यक्रम के लिए 3073 करोड़ आबंटित किए गए हैं। 

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क्या मोदी डिजीटल टैक्नोलॉजी अपनाने वाले देश के पहले व्यक्ति हैं?
पी.एम. मोदी की बात को अगर सही मान लिया जाए तो वह भारत के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिनके पास जापान के बाद डिजीटल टैक्नोलॉजी 1987 में ही पहुंच गई थी। मोदी ई-मेल की बात भी कर रहे हैं जबकि उस दौर में तो कम्प्यूटर को भी इंटैंसिव केयर में रखा जाता था। यानी जिस कक्ष में कम्प्यूटर स्थापित किया जाता था वहां जूते बाहर खोल कर अंदर जाना पड़ता था। ई-मेल का कांसैप्ट और सुविधा भी 80 के दशक में देश में नहीं थी। यहां यह कहना भी लाजिमी है कि सत्ता के आखिर और चुनावी साल में मोदी ने मीडिया से रू-ब-रू होना शुरू किया और विवादों में घिर गए। अगर इंडिया वाकई 80 के दशक में डिजीटलाज्ड था तो 2015 में अरबों रुपए के बजट का प्रावधान करने की क्या जरूरत पड़ी, यह जनता के आगे बहुत बड़ा सवाल है।

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डिजीटल इंडिया की शुरूआत
देश में आधुनिक तकनीक को अपनाने के कार्यक्रम नए नहीं हैं। ई-गवर्नैंस का प्रोग्राम भारत में 1990 में व्यापक स्तर पर शुरू किया गया था। इसकी मुख्य योजनाओं में रेलवे का कम्प्यूटरीकरण और लैंड रिकॉर्ड का कम्प्यूटराइजेशन शामिल था। इसके माध्यम से सूचना तंत्र को विकसित कर लोगों को इलैक्ट्रॉनिक सुविधाएं प्रदान की जाने लगीं। ई-गवर्नैंस के प्रोजैक्ट नागरिकों पर ही केंद्रित थे लेकिन आधारभूत ढांचा मजबूत न होने के कारण इसे सफलतापूर्वक नहीं अपनाया जा सका। देश में डिजीटलाइजेशन की सुनिश्चित रफ्तार रही और देश में 2001 और 2002 में सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं का कम्प्यूटरीकरण तेज गति से होने लगा।  

क्या है डिजीटल इंडिया?
डिजीटल इंडिया कार्यक्रम के तहत देश के सभी गांवों में 100 एम.बी.पी.एस. की स्पीड से ब्रॉडबैंड इंटरनैट सुविधा प्रदान करना है। इसका सीधा-सा मकसद यह भी है कि सभी ग्रामीण नागरिकों तक सरकारी सुविधाओं और योजनाओं को पहुंचाया जाए। उन्हें कृषि, व्यापार, मंडी भाव, सरकारी योजनाओं जैसी जानकारी मिलती रहेगी। उन्हें किसी कागजी कार्य के लिए शहर आने की जरूरत नहीं होगी। उनका कार्य इंटरनैट के द्वारा ही हो जाएगा। 

अभी तक कितना डिजीटलाइज्ड हुआ इंडिया
बजट सत्र में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने अभिभाषण में डिजीटल इंडिया की उपलब्धियां गिनाते हुए कहा था कि 2014 में देश में सिर्फ 59 ग्राम पंचायतों तक ही डिजीटल कनैक्टिविटी सीमित थी। अब 1 लाख 16 हजार ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ दिया गया है। लगभग 40,000 ग्राम पंचायतों में वाई-फाई हॉट स्पॉट लगाए गए हैं। ग्रामीण इलाकों में 2014 में देश में सिर्फ 84 हजार कॉमन सॢवस सैंटर थे लेकिन अब ये 3 लाख से ज्यादा हो गए हैं। 2014 में जहां 1 जी.बी. डाटा की कीमत लगभग 250 रुपए होती थी अब वह घटकर 10-12 रुपए हो गई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 1987 में देश में डिजीटल का कितना बड़ा नैटवर्क था।

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मोदी ने कहा था 
जुलाई 2018 में पी.एम. मोदी ने कहा था कि डिजीटल इंडिया इनिशिएटिव से देश में 3 लाख लोगों को रोजगार मिला है। 3 लाख कॉमन सॢवस सैंटर खोल दिए गए हैं। डिजीटल साक्षरता अभियान का लक्ष्य 2020 तक हर परिवार में से कम से कम किसी एक को डिजीटल साक्षर बनाना है। 2 लाख 50 हजार पंचायतों को वाई-फाई से जोडऩा और ब्रॉडबैंड मुहैया करवाना भी सरकार का लक्ष्य है। प्रश्न उठता है कि मोदी ने 1987 में डिजीटल कैमरे का उपयोग और ई-मेल की बात क्यों की।      

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