मैं जात-पात में विश्वास नहीं रखता: जिग्नेश

Edited By Anil dev,Updated: 20 Feb, 2019 11:41 AM

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर आलोचक व गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी के अनुसार वे जाति पांति विश्वास नहीं रखते हैं। वे दलित युवाओं से भी जाति व्यवस्था से ऊपर उठने की बात कहते हैं। मेवानी ने मीडिया को दिए एक बयान में यह दावा किया।

अहमदाबाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर आलोचक व गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी के अनुसार वे जाति पांति विश्वास नहीं रखते हैं। वे दलित युवाओं से भी जाति व्यवस्था से ऊपर उठने की बात कहते हैं। मेवानी ने मीडिया को दिए एक बयान में यह दावा किया। वे खुद को दलित नेता के बजाय युवाओं का नेता मानते हैं। मेवानी के अनुसार वे अंबेडकर व फुले के साथ ही चार्ली चैप्लिन, गालिब तथा फैज को भी मानते हैं। मेवानी शिकायती लहजे में  कहते हैं कि मीडिया का एक वर्ग उन्हें दलित नेता का टैग देने पर तुला है। भारत युवाओं का देश है। देश के साठ करोड़ लोग तीस साल से कम  उम्र के हैं। वे इन्हीं युवाओं के प्रतिनिधि के रूप में पहचान बनाना चाहते हैं। वे कहते हैं,  मैं दलित नेता की बजाय युवा नेता कहलाना पसंद करता हूं।

गुजरात में इस समय हैं दो युवा नेता 
गुजरात में इस समय ऐसे दो युवा नेता जिग्नेश मेवानी व हार्दिक पटेल हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए उनके गृहप्रदेश में ही चुनौती पैदा किए हुए हैं। पहले इन दोनों के बीच बेहतर तालमेल था लेकिन अब उनके बीच मतभेद की चर्चा आम है। इस बारे में सवाल किये जाने पर मेवानी कहते हैं कि हां कुछ मुद्दों पर उनके बीच विवाद व विरोधाभास है। लेकिन फांसीवादी ताकतों के खिलाफ चुनौती देने के लिए साझेदारी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। वे कहते हैं कि यदि कोई पूरी तरह सिद्धांतों पर चलना चाहे तो राजनीति में उसके तमाम अड़चने खड़ी हो जाती हैं। राजनीति संभावनाओं का खेल है हम कम से कम समझौते करके सफलता की राह पर चलना चाहते हैं। वे बताते हैं कि फिलहाल उनकी अभी हार्दिक पटेल से कोई बातचीत नहीं हुई है।

सत्ता में नहीं लौट रहे हैं मोदी
जिग्नेश मेवानी का मानना है कि 2019 के चुनाव बाद नरेन्द्र मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं है। उनके अनुसार वर्ष 2014 में जिन लोगों ने भाजपा को वोट दिया था वे मोदी सरकार के नोटबंदी जैसे तमाम फैसलों से विचलित हैं। वे मानते हैं कि जिस तरह कर्नाटक तथा बाद में राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में गठजोड़ करके कांग्रेस ने सफलता हासिल की है वैसे प्रयोग आगे भी भाजपा के खिलाफ देश भर में दुहराये जा सकते हैं। उत्तर प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन को वे इसी दिशा में विपक्षी दलों की रणनीति का ठोस हिस्सा मानते हैं। वे कहते हैं कि भाजपा लोकसभा 100 के आंकड़े से भी नीचे आ सकती है। चुनाव आंकड़ों का नहीं बल्कि विचार व भावनाओं से लड़ा जाता है। भाजपा के पास धार्मिक भावनाओं को भड़काने के अलावा कोई मुद्दा नहीं है। चुनाव से पहले धार्मिक उन्माद, दंगा, कुंभ, राममंदिर अथवा पाकिस्तान जैसे मुद्दों को उभारने की कोशिश करेंगे। खुद के लोकसभा चुनाव लडऩे के बारे में वे कहते हैं कि ऐसा कोई इरादा नहीं है। 

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