मिशन 2019- BJP की चुनौतियां तीन गुना

Edited By Anil dev,Updated: 16 Apr, 2019 10:36 AM

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बयान में कहा है कि इस बार 2014 के मुकाबले मोदी लहर अधिक है मगर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा के सामने 2019 के चुनाव में तीन गुना अधिक चुनौतियां हैं।

इलैक्शन डैस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बयान में कहा है कि इस बार 2014 के मुकाबले मोदी लहर अधिक है मगर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा के सामने 2019 के चुनाव में तीन गुना अधिक चुनौतियां हैं। भाजपा की 2019 की सीटों की तालिका इस बात पर निर्भर करेगी कि 353 लोकसभा सीटों पर क्या होगा। 2014 में इन सीटों में से 74 प्रतिशत सीटें एन.डी.ए. को मिली थीं। भाजपा की इन सीटों पर राजनीतिक चुनौतियों को 3 श्रेणियों में डाला जा सकता है। भाजपा 2019 में कितनी सीटों पर जीतेगी?  

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चुनाव संबंधी भविष्यवाणियां हमेशा खरतरनाक साबित होती हैं और उससे भी ज्यादा फस्र्ट पास्ट-द पोस्ट (एफ.पी.टी.पी.) सिस्टम में किसी भी पार्टी की सीटों की अंतिम तालिका दो पहलुओं का परिणाम होती है। पहला वोटों की हिस्सेदारी में बदलाव और दूसरा विपक्षी मतों की मजबूती। भारत की राजनीतिक भौगोलिक स्थिति की विभिन्नता का भी अर्थ है कि ऐसा पहलू राज्य स्तर पर भी महत्वपूर्ण होता है। एक विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि भाजपा की 2019 की तालिका 13 राज्यों की 353 सीटों पर होने वाले मतदान पर निर्भर करेगी। 2014 में इन सीटों में से 74 प्रतिशत सीटों पर भाजपा को विजय हासिल हुई थी। इन सीटों पर भाजपा की राजनीतिक चुनौतियों की 3 बड़ी श्रेणियां हैं।  

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162 लोकसभा सीटों पर एन.डी.ए.-यू.पी.ए. में सीधा मुकाबला
पहली श्रेणी में 8 राज्य हैं। यहां भाजपा और कांग्रेस व सहयोगी दलों के बीच सीधा मुकाबला है। ये राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात महाराष्ट्र और झारखंड हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में इन राज्यों की 162 सीटों में से भाजपा ने 151 सीटों पर जीत हासिल की थी। वर्तमान में भाजपा के सामने इन सीटों पर बड़ी चुनौतियां ये हैं कि वह इस बात को यकीनी बनाए कि 2014 के उसके मतदाता कांग्रेस या उसके सहयोगी दलों को न अपनाएं। महाराष्ट्र को छोड़कर भाजपा ने 2014 के चुनाव में इन राज्यों में अपने दम पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने महाराष्ट्र, गुजरात और झारखंड में गठबंधन किया था। 2014 में इन राज्यों में एन.डी.ए. की यू.पी.ए. के मुकाबले वोटों की हिस्सेदारी काफी अधिक थी। 

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2014 के बाद भाजपा की अंतिम तालिका गिरकर 58 रह गई 
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या 2014 के एन.डी.ए. के मतदाताओं का बड़ा हिस्सा यू.पी.ए. की ओर खिसक जाएगा? 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद इन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के परिणामों से इस प्रश्र का उत्तर मिल सकता है। मतदाता राज्य और राष्ट्रीय चुनावों में अलग-अलग राय रखते हैं। 8 राज्यों में से महाराष्ट्र और झारखंड को छोड़कर 2014 के गठबंधन विधानसभा चुनावों में बरकरार नहीं रहे। इन दोनों राज्यों में भाजपा एकल सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और लोकसभा चुनावों के बाद कुछ राज्यों में अपनी सरकारें भी बनाईं। इन 6 राज्यों के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि एन.डी.ए. की सीटों और मतों की हिस्सेदारी में 2014 के मुकाबले काफी गिरावट आई है। 2014 में 100 लोकसभा सीटों में भाजपा 96 पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी। 2014 के बाद भाजपा की अंतिम तालिका गिरकर 58 रह गई है। इसी तरह 2014 के मुकाबले भाजपा की मतों की हिस्सेदारी भी गिरी है। 

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148 सीटों पर 2014 की तुलना में बेहतर विपक्ष एकता
दूसरी श्रेणी में 3 ऐसे राज्य हैं जहां भाजपा को मजबूत संयुक्त विपक्ष का मुकाबला किए जाने की संभावना है। ये राज्य हैं उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और बिहार। 2014 में इन राज्यों की 148 में से 121 सीटों पर एन.डी.ए. को विजय प्राप्त हुई थी। 2014 के लोकसभा चुनावों और 2017 के विधानसभा चुनावों में सपा और बसपा की संयुक्त वोट हिस्सेदारी यू.पी. में भाजपा के लगभग बराबर थी। अगर दोनों पार्टियों के मतदाता हिस्सेदारी को जोड़ लिया जाए तो एन.डी.ए. की तालिका 74 से 37 रह जाएगी। बिहार में जद (यू) ने 2014 का चुनाव एन.डी.ए. और यू.पी.ए. से बाहर होकर लड़ा था। उसे केवल 2 सीटों पर विजय हासिल हुई थी। 

22 सीटों पर इसने स्थिति को बिगाड़ा था और एन.डी.ए. 17 सीटें जीती थी। जद (यू) अब दोबारा एन.डी.ए. के खेमे में है। अब सवाल यह उठता है कि क्या वह 16 प्रतिशत मतदाताओं के वोट एन.डी.ए. के खाते में डलवाने में कामयाब होंगे या ये यू.पी.ए. को मिल जाएंगे। नीतीश कुमार ने 2014 का चुनाव मोदी से नाराज होकर अलग लड़ा था। यह नाराजगी एन.डी.ए. में प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार को लेकर थी।  उत्तर प्रदेश, बिहार और कर्नाटक में विपक्ष की एकता मजबूत है, जिसको देखते हुए विपक्ष को आशा है कि इस बार चुनाव के नतीजे अलग ही होंगे। एक विश्लेषक के अनुसार कांग्रेस और जनता दल (एस.) ने मिलकर चुनाव लड़ा होता तो भाजपा की तालिका 17 से कम होकर 2 रह जाती। 2018 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राज्य की 28 सीटों में से 21 कांग्रेस और जद (एस.) को मिलती दिखाई देती हैं। 

63 सीटों पर भाजपा के सामने सरकार विरोधी चुनौतियां     
तीसरी श्रेणी में 2 राज्य हैं जहां भाजपा को 2019 में बड़ा परिणाम मिलने की संभावना है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में 2014 के चुनाव में भाजपा को 63 सीटों में से केवल 3 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भाजपा का इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ मुकाबला है। पश्चिम बंगाल में ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस और ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) का मजबूत जन आधार है। मौजूदा विपक्ष के समर्थन आधार को देखते हुए इनको बड़ा लाभ मिल सकता है। पश्चिम बंगाल में वामदल विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। 2014 में पश्चिम बंगाल में अगर वामदलों के वोट पूरी तरह से भाजपा में मिल गए तो उसे राज्य की 42 में से 32 सीटों पर जीत मिल सकती है। अगर वामदलों की आधी वोटें भी पश्चिम बंगाल में भाजपा को मिलती हैं और अन्य 25 प्रतिशत तृणमूल को मिलती हैं तो भाजपा की तालिका 4 तक पहुंचेगी। यह 2014 के मुकाबले बेहतर नहीं। इसी तरह ओडिशा में कांग्रेस की सारी वोटें भाजपा को मिल जाती हैं तो भाजपा को 21 में से 13 सीटें मिलेंगी। अगर कांग्रेस की आधी वोटें मिल जाती हैं तो सीटों की संख्या 5 होगी। तृणमूल कांग्रेस और बीजद के वोट आधार में भाजपा मजबूत सेंध लगाती है तो परिणाम कुछ और हो सकते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में हुए निकाय चुनाव इस बात के स्पष्ट संकेत देते हैं। 


 

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