Edited By Anil dev,Updated: 01 Jul, 2019 04:45 PM
भारत में कथित विकास के साथ ही मानव और प्रकृति का रिश्ता टूट सा गया है। देश पर जलसंकट (Water Crisis) का खतरा मंडरा रहा है। रविवार को प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने अपने दूसरे कार्यकाल में पहली बार लोगों से एक बार फिर जुड़ते हुए मन की बात की।
नई दिल्ली: देश पर जलसंकट (Water Crisis) का खतरा मंडरा रहा है। इसी को लेकर रविवार को प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने अपने दूसरे कार्यकाल में पहली बार लोगों से एक बार फिर जुड़ते हुए मन की बात की। इस दौरान उन्होंने जल संरक्षण (Water Conservation) के लिए लोगों का साथ मांगा और जल को संरक्षित करने के लिए घरेलू सुझाव देने की भी अपील की। पीएम मोदी ने कहा कि जिस प्रकार आपने स्वच्छता अभियान (Swachta Abhiyan) को एक जनआंदोलन बनाया उसी प्रकार अब समय आ गया है कि जलसंरक्षण को भी जन आंदोलन बना कर देश को जलसंकट से उबारने में मदद करें।
'पानी का हमारी संस्कृति में बहुत बड़ा महत्व'
पीएम मोदी ने कहा कि पानी का हमारी संस्कृति में बहुत बड़ा महत्व है। बारिश से जो पानी मिलता है, उसका सिर्फ आठ फीसदी बचाया जाता है। समय आ गया है कि इस समस्या का हल निकाला जाए। मुझे उम्मीद है कि जन भागीदारी से जल संकट का समाधान किया जा सकेगा। मैंने ग्राम प्रधानों को खत लिखा है कि वो पानी बचाने के लिए ग्राम सभा की बैठक करें और पानी पर विचार विमर्श करें।
उपलब्ध जल में से 70 प्रतिशत जल प्रदूषित
एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 तक देश में 21 बड़े शहरों में भूमिगत जल लगभग खत्म हो जाएगा। जिन 21 शहरों में ग्राउंड लेवल वॉटर अगले साल खत्म हो जाएगा उसमें दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद जैसे बड़े शहर भी शामिल हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती पर उपलब्ध जल में से 70 प्रतिशत जल प्रदूषित है। उसमें नाईट्राइट, फास्फोरस, बैक्टीरिया मिले हुए हैं। जल पीने योग्य ही नहीं है। नदियों के जल में भी लगातार फैक्ट्रियों में से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ डाले जाने के कारण नदियां प्रदूषित हो रही हैं।
प्रकृति का दिया हुआ सबसे बड़ा श्राप
मानव जाति को औद्योगिकरण के चलते प्रकृति का दिया हुआ सबसे बड़ा श्राप है जलसंकट। देश के विकास के नाम पर सरकारें प्राकृतिक जंगलों को बहुत ही तेजी के साथ कंक्रीट के जंगल में तब्दील करती जा रही है। जंगल खत्म होने और औद्योगिकरण बढ़ने के साथ ही ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने लगी है। हमारे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी में ये हालात हैं कि कई लोगों का पूरा दिन पानी इकट्ठा करने में ही बीत जाता है। प्रधानमंत्री ने पानी के संकट को पहचानने में काफी देर कर दी। खैर अब भी अगर संभला जाए और बारिश के पानी को इकट्ठा करने के साथ ही जलप्रदूषण को कम करने के लिए कदम उठाए जाएं तो हो सकता है कि हमारी आने वाली पीढ़ी हमें थोड़ा कम कोसे।