ISRO पर देश-दुनिया की नजर, NASA के वैज्ञानिकों ने भी मानी ताकत

Edited By vasudha,Updated: 21 Oct, 2018 11:05 PM

nasa scientists also believe in isro strength

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की, 2022 तक भारत द्वारा अंतरिक्ष में मानव मिशन को अंजाम देने की घोषणा के बाद देश-दुनिया की नजरें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) पर हैं। पिछले साल एक ही उड़ान में रिकॉर्ड 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण को अंजाम दे चुके...

नेशनल डेस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की, 2022 तक भारत द्वारा अंतरिक्ष में मानव मिशन को अंजाम देने की घोषणा के बाद देश-दुनिया की नजरें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) पर हैं। पिछले साल एक ही उड़ान में रिकॉर्ड 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण को अंजाम दे चुके इसरो की क्षमता का लोहा अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिक भी मानते हैं। 
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नासा के साथ मिलकर काम करे इसरो
नासा से सेवानिवृत्त हुए वरिष्ठ वैज्ञानिक और वर्तमान में अमेरिका की ह्यूस्टन यूनविर्सटी में एडजंक्ट प्रोफेसर डॉ. कुमार कृषेन से बताया कि इसरो के लिए यद्यपि 2022 एक वास्तविक चुनौती होगा, लेकिन उसके पास इस लक्ष्य को हासिल करने की क्षमता है। इसरो ने ‘री एंट्री मॉड्यूलों’ और प्रक्षेपण के दौरान किसी हादसे की स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित निकालने से संबंधित प्रणाली का परीक्षण किया है। उन्होंने कहा कि इसरो यदि नासा के साथ मिलकर काम करता है तो उसे काफी लाभ मिल सकता है।

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चंद्रमा और मंगल पर पहुंचने में सफल रहा इसरो 
कुमार कृषेन ने बताया कि इसरो ने निचली और भू-स्थैतिक कक्षाओं के लिए प्रक्षेपण यानों में अपनी काबिलियत स्थापित कर एक लंबा सफर तय किया है जिसका लाभ संचार, प्रसारण, रिमोट सेंसिंग, मौसम निगरानी और उपग्रह नौवहन के रूप में मिल रहा है। इसरो अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ताओं के लिए उपग्रह प्रक्षेपित करता रहा है। इसका पीएसएलवी 30 से अधिक सफल प्रक्षेपणों के साथ एक शक्ति पुंज के रूप में उभरा है। इसरो अपने पहले ही प्रयासों में चंद्रमा और मंगल पर पहुंचने में सफल रहा है। सीएनईएस जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी इसरो के साथ सहयोग कर रही हैं। इसके पास निजी क्षेत्र के साथ मिलकर क्रांतिकारी प्रौद्योगिकी और प्रणालियां विकसित करने की श्रेष्ठ क्षमताएं हैं। 

नौवहन प्रणाली निर्मित कर रहा भारत 
पूर्व नासा वैज्ञानिक ने बताया कि भारत अपनी खुद की नौवहन प्रणाली निर्मित कर रहा है और इस उद्देश्य के लिए उसने उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं। यह जीपीएस और अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रणालियों की जगह नहीं ले सकती। हालांकि, इन प्रणालियों के उपलब्ध न होने की स्थिति में भारत के पास जीपीएस उपलब्ध रहेगा। वर्तमान में परमाणु घडिय़ों में कुछ खामी के कारण स्थापन अवस्थिति संबंधी गुणवत्ता कम है। एक बार इसके पूरी तरह परिचालित हो जाने पर यह क्षेत्रीय आधार पर जीपीएस की जगह ले सकता है। 

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इसरो ने उपग्रह कराए उपलब्ध 
प्रोफेसर के मुताबिक इसरो ने संचार और प्रसारण के लिए रीढ़ के रूप में उपग्रह उपलब्ध कराए हैं। जी सैट-11 इस साल नवंबर में प्रक्षेपित होने वाला है जो उच्च बैंडविड्थ डेटा ट्रांसमिशन में मदद करेगा। इसरो के उपग्रह चक्रवातों सहित मौसम निगरानी के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। इसके दूर संवेदी उपग्रह कृषि, वन प्रबंधन, तटीय क्षेत्र निगरानी, शहरी योजना और आपदा प्रबंधन के लिए डेटा उपलब्ध कराते रहे हैं। 

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