क्या है कोरोना वायरस वैक्सीन का सच? एक क्लिक में मिलेगा आपके हर सवाल का जवाब

Edited By Anil dev,Updated: 18 Nov, 2020 05:14 PM

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भारत बायोटेक के कोविड-19 के टीके कोवैक्सीन का तीसरे चरण का परीक्षण शुरू हो गया है। यह वैक्सीन अगले साल तक तैयार हो जाएगी। कंपनी कोविड-19 के लिए एक और वैक्सीन पर काम कर रही है। यह नाक के जरिये दी जाने वाली ड्रॉप के रूप होगी। कोरोना की जंग लड़ रही...

नेशनल डेस्क: भारत बायोटेक के कोविड-19 के टीके कोवैक्सीन का तीसरे चरण का परीक्षण शुरू हो गया है। यह वैक्सीन अगले साल तक तैयार हो जाएगी।  यह नाक के जरिये दी जाने वाली ड्रॉप के रूप होगी। कोरोना की जंग लड़ रही पूरी दुनिया का अब एक ही सवाल है कि आखिर ये वायरस कब खत्म होगा?  आइए जानते हैं वैक्सीन इजाद करने की प्रक्रिया और इससे जुड़ी कुछ खास बातें।

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जानिए कोरोना का पहला टीका किसे लगाया जाएगा ?
इसकी वैक्सीन कब बनेगी और किसे ये टीका सबसे पहले लगाया जाएगा ? आपको बता दें कि अभी तक इस बारे में कोई भी निर्णय नहीं लिया गया है कि कोरोना वायरस का पहला टीका किसे लगाया जाएगा। हालांकि अमेरिका समेत कई देशों का यही मानना है कि कोविड 19 का पहला टीका स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े कर्मियों को लगाया जाना चाहिए। जब टीके की पहली खेफ भारत आएगी तो सीडीसी के सभी नियमों का सख्ती से पालन किया जाएगा। कोरोना वैक्सीन की बात करें तो इस पर कई देश काम कर रहे हैं लेकिन अमेरिकी फार्मास्युटिकल कंपनी मोडरना ने अपनी कोविड-19 वैक्सीन के मानव परीक्षण के नतीजे जारी कर दिए हैं। इसे 94.5 प्रतिशत तक प्रभावी पाया गया है। इस तरह यह फाइजर की वैक्सीन के मुकाबले अधिक कारगर वैक्सीन मानी जा रही है। फाइजर की वैक्सीन की प्रभावी दर 90 फीसदी पाई गई है।

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30 हजार लोगों पर हुआ टेस्ट
मोडरना की वैक्सीन का परीक्षण 30 हजार लोगों पर किया गया है। हर एक को वैक्सीन की दो खुराक दी गई हैं। यह भी देखा गया कि जिन्हें भी वैक्सीन दी गई उसमें से किसी को भी कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार नहीं पाया गया। 95 लोगों में से पांच ही ऐसे लोग रहे जो वैक्सीन देने के बाद भी पॉजिटिव पाए गए। जबकि 90 लोगों पर यह पूरी तरह से सफल रही। इस तरह नतीजे बता रहे हैं कि मोडरना की यह वैक्सीन न सिर्फ कोविड-19 के खतरे को कम करती है बल्कि गंभीर बीमार होने से भी बचाती है। 

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वैक्सीन बनने में कितना समय और पैसा लगता है?
कोई भी वैक्सीन बनने में करीब 10-15 साल लग जाते हैं, क्योंकि वैक्सीन बनाते वक्त ये भी ध्यान रखा होता है कि वैक्सीन की क्वालिटी और सेफ्टी का भी ख्याल रखा जाए। वैक्सीन बनाने में अमूमन 200-300 मिलियन डॉलर तक खर्च हो जाते हैं। अब वैक्सीन को साल भर में बनाने की कोशिश है तो इसमें 2-3 अरब डॉलर तक का खर्च आ सकता है।

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भारत में कैसे आ सकती है वैक्सीन ?
कोरोनावयर का कहर दुनियाभर में फैला हुआ है, इस वायरस की चपटे में अबतक 180 देश आ चुके हैं। ऐसे में इस वायरस के लिए वैक्सीन तैयार कर पूरी तरह से इससे निजात पाने की कोशिश में कई भारत समेत कईं देश लगे हुए हैं। देश में किसी भी बाहरी देश की कोरोना वैक्सीन को लाने से पहले उसका ठीक तरह से परीक्षण किया जाना सबसे अहम हिस्सा है। भारत में विदेशी वैक्सीन को लाने से पहले उसका फेज-2 और फेज-3 ट्रायल किया जाता है। इसकी मंजूरी डीसीजीआई यानी ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा दी जाती है। वैक्सीन के फेज-2 और फेज-3 के सफल ट्रायल के बाद इसे हरी झंडी दी जा सकती है। यह प्रक्रिया देश में बाहर से आने वाली हर वैक्सीन के साथ अपनाई जाती है। 

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क्या होती है वैक्सीन की प्रक्रिया?
दरअसल ​वैक्सीन को बनाने में दशक से ज़्यादा भी समय लग जाता है। असल में, क्लिनिकल से पहले तैयारी का काम होता है। उसके बाद ट्रायल के लिए पायलट फैक्ट्री को पर्याप्त डोज का उत्पादन करना होता है। दूसरी ओर, वैज्ञानिक किसी भी वैक्सीन को लेकर कठोर परीक्षणों के पैरोकार होते हैं। पहले बहुत कम लोगों पर वैक्सीन टेस्ट होती है, फिर कुछ सौ लोगों पर दूसरे चरण का टेस्ट होता है और फिर कुछ हजारों पर टेस्ट कर इसके नतीजों को स्टडी किया जाता है। यह लंबी प्रक्रिया है। इसके बाद सकारात्मक परिणाम आने पर ही वैक्सीन के उत्पादन को हरी झंडी दी जाती है। 

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वैक्सीन को बनाने में लगी हुई है सात कंपनियां 
कोरोना कहर से जहां पूरा देश जूझ रहा है वहीं भारत में वैक्सीन विकसित करने में कम से कम सात कंपनियां लगी हैं। इनमें सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवी-शील्ड और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की मदद से भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन के सबसे पहले लोगों तक पहुंचने की उम्मीद है। दोनों कंपनियों की वैक्सीन तीसरे चरण के अहम परीक्षण दौर में पहुंच चुकी हैं। ऐसे में अगले 3-4 महीने में वैक्सीन उपलब्‍ध होने की बेहतर संभावना है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला का कहना है, ऑक्सफोर्ड वैक्सीन का भारत में ट्रॉयल जनवरी तक पूरा हो जाएगा। 

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क्या होगी कोरोना वैक्सीन की लागत 
वैक्सीन की लागत को अभी तक कुछ भी सपष्ट नहीं हो पाया है। जल्दी की कीमत की पुष्टि कर दी जाएगी, लेकिन, विशेषज्ञों ने कहा कि हम ये सुनिश्चित करते हैं कि वैक्सीन काफी सस्ती दरों में आम लोगों को उपलब्ध करवाया जाएगा। उनका मानना है कि वैक्सीन का सार्वभौमिक वितरण सुनिश्चित करने के लिए यूनिवर्सल इम्युनाइजेशन प्रोग्राम चलाया जाना चाहिए। पहले चरण में 60 से 70 मिलियन डोज का उत्पादन किया जाएगा। इसके बाद प्रत्येक माह 100 मिलियन डोज के उत्पादन का लक्ष्य तय किया गया है। सबसे पहले कोरोना महामारी में फ्रंटलाइन वर्कर्स, जैसे डॉक्टर्स, नर्स, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी और इससे संबंधित अन्य लोगों का टीकाकरण किया जाएगा। 

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30 हजार लोगों पर हुआ टेस्ट
मोडरना की वैक्सीन का परीक्षण 30 हजार लोगों पर किया गया है। हर एक को वैक्सीन की दो खुराक दी गई हैं। यह भी देखा गया कि जिन्हें भी वैक्सीन दी गई उसमें से किसी को भी कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार नहीं पाया गया। 95 लोगों में से पांच ही ऐसे लोग रहे जो वैक्सीन देने के बाद भी पॉजिटिव पाए गए। जबकि 90 लोगों पर यह पूरी तरह से सफल रही। इस तरह नतीजे बता रहे हैं कि मोडरना की यह वैक्सीन न सिर्फ कोविड-19 के खतरे को कम करती है बल्कि गंभीर बीमार होने से भी बचाती है। 

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