चीन को घेरने के लिए भारत की नई रणनीति, तिब्बत के बारे में विस्तार से दी जा रही सैनिकों को जानकारी

Edited By Anil dev,Updated: 26 Oct, 2021 12:25 PM

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चीन को अब उसी की भाषा में जवाब देने के लिये भारत ने भी कमर कस ली है, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अरुणाचल प्रदेश में जब भी हमारे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति या भी गणमान्य व्यक्ति यात्रा पर जाते हैं तो चीन की तरफ से तुरंत आपत्तिजनक टिप्पणी...

नेशनल डेस्क: चीन को अब उसी की भाषा में जवाब देने के लिये भारत ने भी कमर कस ली है, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अरुणाचल प्रदेश में जब भी हमारे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति या भी गणमान्य व्यक्ति यात्रा पर जाते हैं तो चीन की तरफ से तुरंत आपत्तिजनक टिप्पणी आ जाती है, चूंकी वह अरुणाचल को भारत का हिस्सा नहीं मानता है। चीन का कहना है कि वो दक्षिणी तिब्बत के साथ सटे अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देता है। दरअसल चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत यानी त्सांग नान मानता है। चीन का कहना है कि त्सांगनान, सी त्सांग यानी तिब्बत का हिस्सा है। जबकि चीन ने 1962 के युद्ध के समय लद्दाख के एक बड़े हिस्से अक्साई चिन पर अपना अवैध कब्जा जमा लिया और तब से वहीं जमा हुआ है। भारत ने इसका जवाब देने के लिये सीमा पर तैनात अपने उन सैनिकों को चीन के कब्जे वाले तिब्बत के बारे में ज्यादा से ज्यादा  जानकारी देनी शुरु कर दी है। भारत की ये नीति आगे चलकर तिब्बत को चीन के कब्जे से आजाद करवाने में अहम भूमिका निभा सकती है।

अरुणाचल प्रदेश के दाहुंग क्षेत्र में सैनिकों के लिए विशेष कोर्स
भारतीय सैनिकों को तिब्बत की भाषा, उनका धर्म, संस्कृति, इतिहास के बारे में विस्तार से जानकारी देगा। सेना के जवानों यह बताया जाएगा कि चीन ने तिब्बत पर अपना कब्जा जमाया और तिब्बती लोग बौद्ध मत की किस शाखा को मानते हैं। इसके अलावा तिब्बत का भूगोल, क्षेत्रफल, जनसंख्या के बारे में उन्हें सब कुछ बताया जाएगा। इससे इंटेल के क्षेत्र में इन सैनिकों की जानकारी बढ़ेगी। तिब्बतियों के बीच भारत एक मित्र शक्ति के रूप में पहचाना जाता है। भारतीय सेना के साथ हुए एक अनुबंध के अंतर्गत ये सारी पढ़ाई अरुणाचल प्रदेश के दाहुंग क्षेत्र के केन्द्रीय हिमालयीय संस्कृति शिक्षण संस्थान में की जा रही है, जिसकी शुरुआत हाल ही में हुई है। सैनिकों को यह शिक्षा देने का मकसद  पूरे क्षेत्र में रहने वाले लोगों के साथ आसानी से जोड़ना है। इस कार्यक्रम के पायलट प्रोजेक्ट में 15 सैनिकों ने ये कोर्स पूरी सफलता के साथ किया है अब इसे बाकी सैनिकों को भी दिया जाएगा।

शिक्षा देने के लिए बॉमडिला से आएंगे लामा
इसके साथ ही तीन महीने के तिब्बती कोर्स की शुरुआत भी हो रही है, इसके लिये बॉमडिला से लामा विशेष तौर पर सैनिकों को शिक्षा देने के लिये आएंगे। विस्तृत शिक्षा में इन सैनिकों को गेस्ट लेक्चर, किताबें, फिल्में, वृत्तचित्र के अलावा जितने भी जानकारी के स्रोत हैं वे सब उपलब्ध कराए जाएंगे। इस कोर्स को और वृस्तृत बनाने के लिये बौद्ध भिक्षु, लामा, तिब्बती मामलों के जानकार सभी की मदद ली जा रही है।  इस नए कोर्स के बारे में वरिष्ठ सैन्याधिकारियों का कहना है कि इस कोर्स को करने के बाद वे अपने कार्यक्षेत्र में इतने सक्षम होंगे कि वहां के लोगों की उनके पास पूरी जानकारी होगी। अरुणाचल प्रदेश के दाहुंग क्षेत्र के अलावा करीब 12 ऐसे क्षेत्र और हैं जिन्हें भी तिब्बतोलॉजी पढ़ाने के लिये तैयार किया जा रहा है। इनमें से 7 अभी पूरी तरह से तैयार हैं जहां पर भारतीय सैनिक तिब्बत के बारे में पूरी जानकारी ले सकते हैं। अभी तक कुल मिलाकर 150 भारतीय सैन्याधिकारियों को तिब्बत के बारे में पूरी जानकारी दी जा चुकी है। इसके बाद ये कोर्स कई और सैनिकों को करवाया जाएगा। वैसे भी भारतीय सैनिकों और सेना के अधिकारियों के साथ स्थानीय लोगों और भारत में रहने वाले तिब्बती मूल के लोगों के साथ बहुत मधुर संबंध रहे हैं।  

स्पेशल फ्रंटियर फोर्स में हैं तिब्बती सैनिक
चीन के लिये भारतीय सैनिकों की ये जानकारी बहुत घातक साबित होगी, क्योंकि तिब्बती लोग भारत के प्रति मित्रवत भाव रखते हैं। वर्ष 1959 से पहले तिब्बत सांस्कृतिक, भौगोलिक और आर्थिक तौर पर भारत के साथ अधिक जुड़ा था। वहां पर चीन की पहुंच न के बराबर थी। भारतीय सेना में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स एक ऐसी यूनिट है जिसे 14 नवंबर 1962 को बनाया गया था।  इसमें भर्ती किये गए सारे सैनिक तिब्बती मूल के हैं। युद्ध के समय दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र में ये यूनिट दुश्मन के ऊपर काल बनकर  टूट पड़ते है। इसके साथ ही जब भारतीय सैनिकों को तिब्बत के बारे में पूरी जानकारी रहेगी तो उन्हें चीन के साथ युद्ध और युद्ध जैसे हालात के समय इसका सबसे अधिक लाभ मिलेगा। 

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