वो गुमनाम और चर्चित चेहरे जिनके जिक्र के बिना अधूरा है राम मंदिर

Edited By Anil dev,Updated: 06 Dec, 2021 12:48 PM

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अयोध्या में रामजन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर के निर्माण की बढ़ती गतिविधियों के बीच यह जान लेना महत्वपूर्ण होगा कि विवादित स्थल पर बनी बाबरी मस्जिद को छह दिसंबर के दिन गिराया गया था। अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की 30वीं बरसी के मद्देनजर सुरक्षा...

नेशनल डेस्कः अयोध्या में रामजन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर के निर्माण की बढ़ती गतिविधियों के बीच यह जान लेना महत्वपूर्ण होगा कि विवादित स्थल पर बनी बाबरी मस्जिद को छह दिसंबर के दिन गिराया गया था। अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की 30वीं बरसी के मद्देनजर सुरक्षा बलों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। उत्तर प्रदेश के अयोध्या में घटी यह घटना इतिहास में प्रमुखता के साथ दर्ज है, जब राम मंदिर की सांकेतिक नींव रखने के लिए उमड़ी भीड़ ने बाबरी मस्जिद ढहा दी थी। इससे देश के दो संप्रदायों के बीच पहले से मौजूद रंजिश की दरार बढ़कर खाई में बदल गई थी। इस घटना के बाद देश के कई इलाकों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें जान और माल का भारी नुकसान हुआ। वैसे तो 6 दिसंबर 1992 के दिन की शुरूआत साल के बाकी दिनों की तरह सामान्य ही थी, लेकिन भगवान राम की जन्मस्थली पर मंदिर निर्माण के लिए सांकेतिक नींव रखने के इरादे से अयोध्या पहुंचे हजारों लोगों ने अचानक बाबरी मस्जिद के गुंबद गिराकर इस दिन को इतिहास में दर्ज करवा दिया। 

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जब भी राम मंदिर का जिक्र होगा तो वे सब लोग याद किए जाएंगे जिनकी वजह से भारतीय ऐसा सुनहरा दिन देख रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, विनय कटियार, साध्वी ऋतम्भरा, महंत अवैद्यनाथ, सुरेश बघेल, कोठारी बंधु और प्रवीण तोगड़िया जैसे लोग जिनकी बदौलत से राम मंदिर निर्माण तक का सफर हुआ। हालांकि कई नाम ऐसे हैं जो गुमनाम हैं लेकिन उनके जिक्र के बिना भी यह आंदोलन और यहां तक का सफर अधूरा माना जाएगा। महंत रघुबर दास, गोपाल सिंह विशारद, केके नायर और सुरेश बघेल आदि ऐसे नाम हैं जिनका जिक्र बेहद जरूरी है।

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महंत रघुबर दास
साल 1853 में अयोध्या में मंदिर और मस्जिद को लेकर जब विवाद हुआ तब अयोध्या, अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शासन में आती थी। उस वक्त हिंदू धर्म को मानने वाले निर्मोही पंथ के लोगों ने दावा किया कि मंदिर को तोड़कर यहां पर बाबर के समय मस्जिद बनवाई गई थी। साल 1859 में अंग्रेज़ी हुकूमत ने मस्जिद के आसपास तार लगवा दिए और दोनों समुदायों के पूजा स्थल को अलग-अलग कर दिया। मुस्लिमों को अंदर की जगह दी गई और हिंदुओं को बाहर की। इस बंटवारे के बाद यह मामला पहली बार 1885 में अदालत पहुंचा। तब महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद के पास राम मंदिर निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की थी।

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गोपाल सिंह विशारद
1947 में आजादी के बाद पहला मुकदमा (नियमित वाद क्रमांक 2/1950) एक दर्शनार्थी भक्त गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 ई. को सिविल जज, फ़ैज़ाबाद की अदालत में दायर किया, वे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन ज़िला गोंडा, वर्तमान ज़िला बलरामपुर के निवासी और हिंदू महासभा, गोंडा के ज़िलाध्यक्ष थे। गोपाल सिंह 14 जनवरी 1950 को जब भगवान के दर्शन करने श्रीराम जन्मभूमि जा रहे थे, तब पुलिस ने उनको रोका। पुलिस ने उनके अलावा अन्य कई दर्शनार्थियों को भी रोका। पुलिस के रोके जाने के बाद गोपाल सिंह ने अदालत में अपील की थी कि आदेश जारी किया जाए कि  प्रतिवादी स्थान जन्मभूमि से भगवान रामचन्द्र आदि की विराजमान मूर्तियों को उस स्थान से जहां वे हैं, कभी न हटाया जाए और न हीं आने-जाने के मार्ग को रोका जाए ताकि लोग भगवान श्रीराम के दर्शन और पूजा कर सकें।

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केके नायर
 केरल के अलप्पी के रहने वाले केके नायर का नाम भी इस सफर में गुमनाम है। नायर 1930 बैच के IPS अफसर थे और 1 जून 1949 को फ़ैज़ाबाद के कलेक्टर बने थे। 23 दिसंबर 1949 को जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में स्थापित हुईं तो उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने नायर को दो बार आदेश दिया कि मूर्तियों को वहां से हटाया जाए लेकिन उन्होंने इसे मानने में असमर्थता जताई। तब नायर ने कहा था कि  मूर्तियां हटाने से पहले उन्हें हटाया जाए। देश के सांप्रदायिक माहौल को देखते हुए सरकार पीछे हट गई। साल 1952 में डीएम नायर ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। इसके बाद वे चौथी लोकसभा के लिए उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचे। नायर की इस इलाके में हिंदुत्व के इतने बड़े प्रतीक बन गए थे कि उनकी पत्नी शकुंतला नायर भी कैसरगंज से तीन बार जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचीं। इतना ही नहीं उनका ड्राइवर भी उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य बना।

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सुरेश बघेल
साल 1990 में जब पहली बार राम मंदिर आंदोलन में शामिल होकर बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराने की मजबूत कोशिश की गई तो उसमें वृंदावन के हिंदूवादी नेता सुरेश बघेल भी शामिल थे, हालांकि आज शायद ही उनका नाम किसी को याद हो। सुरेश बघेल ने मंदिर के लिए कोर्ट-कचहरी, गिरफ्तारियां, जेल, धमकियां, मुफलिसी और परिवार से दूरी सबकुछ झेला है। बघेल इस समय एक प्राइवेट कंपनी में 6000 रुपए प्रतिमाह पर काम करके गुजर-बसर कर रहे हैं। उन्होंने कभी भी राम मंदिर के आंदोलन में अपने योगदान को सियासी तौर पर इस्तेमाल नहीं किया।

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ये नाम भी चर्चा में

महंत दिग्विजय नाथ
गोरक्षनाथ मठ के महंत दिग्विजय नाथ उन चंद शख्सियतों में शामिल थे जिन्होंने बाबरी मस्जिद को मंदिर में बदलने की मन दृढ़ संकल्प लिया था। 22 दिसंबर 1949 को विवादित ढांचे के भीतर भगवान राम की प्रतिमा रखवाई गई थी, तब हिंदू महासभा के विनायक दामोदर सावरकर के साथ दिग्विजय नाथ ही थे, जिनके हाथ में इस आंदोलन की कमान थी। हिंदू महासभा के सदस्यों ने तब अयोध्या में इस काम को अंजाम दिया था।

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लालकृष्ण आडवाणी
जून 1989 में भाजपा ने VHP को औपचारिक समर्थन देना शुरू किया जिससे राम मंदिर आंदोलन को नई लाइफ लाइन मिली। उस समय भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से राम रथयात्रा शुरू की थी। आडवाणी को 23 अक्तूबर 1990 को समस्तीपुर में लालू प्रसाद यादव ने गिरफ़्तार करवाया था। सीबीआई की मूल चार्जशीट में विवादित ढांचा गिराने के 'षड्यंत्र' में उनका नाम मुख्य सूत्रधार के तौर पर दर्ज किया गया था।

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कल्याण सिंह
1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह का नाम भी सीबीआई की मूल चार्जशीट में मस्जिद गिराने के 'षड्यंत्र' में शामिल थे। हालांकि तकनीकी कारणों से मुकद्दमे से वे बाहर हो गए। उन पर आरोप लगाया गया था कि उनके इशारे पर ही प्रशासन और पुलिस ने कारसेवकों को नहीं रोका।

 

अशोक सिंघल
विश्व हिंदू परिषद नेता अशोक सिंघल ने कारसेवकों से नारा लगवाया था, "राम लला हम आए हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे, एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो।" वे 2011 तक VHP के अध्यक्ष रहे। सिंघल का 17 नवंबर 2015 को निधन हो गया था।

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महंत अवैद्यनाथ
राम मंदिर आंदोलन का प्रमुख चेहरा महंत अवैद्यनाथ का माना जाता है। वह श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष थे। माना जाता है कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने की सारी योजना उनकी ही देखरेख में बनाई गई थी। मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद ने इलाहाबाद में जिस धर्म संसद (साल 1989 में) का आयोजन किया, उसमें अवैद्यनाथ के भाषण ने ही इस आंदोलन का आधार तैयार किया। 

 

विनय कटियार
विश्व हिंदू परिषद के सहयोगी संगठन बजरंग दल के नेता विनय कटियार की भूमिका भी इसमें काफी अहम है। चार्जशीट के मुताबिक़ कटियार ने 6 दिसंबर को भाषण में कहा था कि हमारे बजरंगियों का उत्साह समुद्री तूफान से भी आगे बढ़ चुका है, जो एक नहीं तमाम बाबरी मस्जिदों को ध्वस्त कर देगा। 6 दिसंबर के बाद कटियार का राजनीतिक कद काफी तेजी से बढ़ा। वे भाजपा राष्ट्रीय महासचिव भी बने और फैजाबाद लोकसभा सीट से तीन बार सांसद भी चुने गए।

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मुरली मनोहर जोशी
1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय मुरली मनोहर जोशी आडवाणी के बाद भाजपा के दूसरे बड़े नेता थे जिन्होंने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। 6 दिसंबर 1992 को घटना के समय वह विवादित परिसर में मौजूद थे। बताया जाता है कि गुंबद गिरने के बाद उमा भारती उनसे गले मिली थीं। 

 

साध्वी ऋतंभरा
साध्वी ऋतंभरा को हिंदुत्व की फायरब्रांड नेता कहा जाता है। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में उनके विरुद्ध आपराधिक साजिश के आरोप तय किए गए थे और उनके उग्र भाषण के ऑडियो कैसेट पूरे देश में बंटे जिसमें उन्होंने मंदिर विरोधियों को 'बाबर की आलौद' कहकर ललकारा था। मौजूदा समय में साध्वी ऋतंभरा वृंदावन में रहती हैं। राम मंदिर के इस लंबे सफर में बताए गए नामों की लिस्ट छोटी है क्योंकि इस आंदोन में अनिगनत नाम हैं जिन्होंने इसमें सहयोग दिया। 

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