Edited By Anil dev,Updated: 19 Jul, 2022 02:45 PM
भारतीय रेलवे ने आखिरकार रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के सहयोग से स्वच्छ भारत मिशन के तहत यात्री डिब्बों के पूरे बेड़े में बायो टॉयलेट स्थापित कर दिए हैं।
नेशनल डेस्क: भारतीय रेलवे ने आखिरकार रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के सहयोग से स्वच्छ भारत मिशन के तहत यात्री डिब्बों के पूरे बेड़े में बायो टॉयलेट स्थापित कर दिए हैं। दुनिया में रेलवे प्रणालियों में अपनी तरह के पहले 'एनारोबिक बैक्टीरिया' को अपनाते हुए भारतीय रेलवे (आईआर) ने 2021-22 के दौरान 79,269 यात्री डिब्बों में बायो टॉयलेट स्थापित किए हैं, जो लगभग 2,74,000 लीटर मानव मल को ट्रैक पर गिरने से रोकते हैं।
सामान्य रूप से ट्रेनों में लगे शौचालय से अपशिष्ट व गंदगी पटरियों पर ही छोड़ी जाती है। लेकिन बायो टॉयलेट लगने के बाद मानव अपशिष्ट पटरियों पर न गिरकर एक टैंक में जमा हो जाता है। टैंक में लगी मशीन व केमिकल के माध्यम से जमा वेस्ट तरल रूप ले लेता है। वहीं सॉलिड वेस्ट से तरल घोल बन जाने के बाद इसे स्टेशन से दूर वाली जगह पर शौचालय से बाहर छोड़ दिया जाता है। हालांकि यह वेस्ट गिरता पटरियों पर ही है, लेकिन अच्छी बात यह है कि यह तरल वेस्ट न ही बदबू फैलाता है और न ही इससे पर्यावरण को कोई नुकसान होता है तथा बीमारी फैलने का भी खतरा नहीं रहता।
भारतीय रेलवे में काम करने वाली महिला लोको पायलट शौचालयों की कमी के कारण सबसे ज्यादा परेशान हैं। शौचालयों की कमी के कारण लोकोमोटिव में ड्यूटी पर प्रकृति की तत्काल कॉल से बचने के लिए उन्हें या तो पानी की खपत या सैनिटरी नैपकिन में कटौती करनी पड़ती है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, रेलवे केवल 97 इलेक्ट्रिक ट्रेन इंजनों में शौचालय की सुविधा प्रदान करने में सक्षम है। इसके परिणामस्वरूप, न केवल महिला लोको पायलटों को बल्कि पुरुषों को भी ट्रेनों को चलाते समय कठिनाई का सामना करना पड़ता है।