दोषमुक्ति के फैसले में अदालत का रुख गलत होने पर ही हस्तक्षेप किया जा सकता है: SC

Edited By Anil dev,Updated: 09 Aug, 2022 02:24 PM

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उच्चतम न्यायालय ने पत्नी की हत्या करने के आरोपी शख्स को बरी करने के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि किसी को दोष मुक्त करने के फैसले में हस्तक्षेप करने की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती जब तक कि यह न लगे कि अदालत द्वारा अपनाया गया रुख गलत है।

नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने पत्नी की हत्या करने के आरोपी शख्स को बरी करने के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि किसी को दोष मुक्त करने के फैसले में हस्तक्षेप करने की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती जब तक कि यह न लगे कि अदालत द्वारा अपनाया गया रुख गलत है। शीर्ष न्यायालय ने उच्च न्यायालय के सितंबर 2009 में दिए फैसले के खिलाफ राजस्थान सरकार की अपील खारिज कर दी। उच्च न्यायालय ने आरोपी शख्स को दोषी ठहराने के निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए उसे बरी कर दिया था। 

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा ने अपने हाल के फैसले में कहा, ‘‘बरी करने के फैसले के खिलाफ अपील में हस्तक्षेप करने की गुंजाइश बहुत कम होती है। जब तक यह न पाया जाए कि अदालत द्वारा अपनाया गया रुख असंभव या गलत है, तब तक बरी करने के फैसले के निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।''

उच्चतम न्यायालय ने साथ ही कहा कि अगर दो विचार समान रूप से संभव हैं तो भी बरी करने के फैसले को रद्द करने की अनुमति महज इसलिए नहीं दी जा सकती कि सक्षम अदालत को दोषसिद्धि का रास्ता ज्यादा उचित लगा। अभियोजन के अनुसार, जोधपुर के आरोपी ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी थी और सबूत छिपाने के लिए उसे आग लगा दी थी। निचली अदालत ने जनवरी 1986 में उसे दोषी ठहराया था। इसके बाद उसने इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की। उच्च न्यायालय ने उसे मामले में बरी कर दिया था। 

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