Goa Liberation Day: जब भारतीय सेना ने "ऑपरेशन विजय" से पुर्तगालियों को खदेड़ा, 36 घंटे बरसे थे बम

Edited By Anil dev,Updated: 19 Dec, 2020 04:56 PM

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गोवा एक ऐसा राज्य है जिसका नाम सुनते ही दूर-दूर तक फैला समुद्र का किनारा, मार्डन लाइफस्टाइल, थिरकते कदम याद आने लगती है। बहुत कम लोग जानते हैं कि गोवा हमेशा से भारत का हिस्सा नहीं था। 1961 में तीन दिन तक चले सैन्य अभियान के बाद गोवा भारत का हिस्सा...

नेशनल डेस्क: गोवा एक ऐसा राज्य है जिसका नाम सुनते ही दूर-दूर तक फैला समुद्र का किनारा, मार्डन लाइफस्टाइल, थिरकते कदम याद आने लगती है। बहुत कम लोग जानते हैं कि गोवा हमेशा से भारत का हिस्सा नहीं था। 1961 में तीन दिन तक चले सैन्य अभियान के बाद गोवा भारत का हिस्सा बना। इस ऐतिहासिक दिन को ही गोवा मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है। दिलचस्‍प बात है कि जहां भारत में इस दिन को ‘गोवा की आजादी’ के नाम से जानते हैं तो वहीं पुर्तगाल में इसे ‘गोवा पर आक्रमण’ के तौर पर जाना जाता है।  आइये आज गोवा की मुक्ति और इसके इतिहास के बारे में जानते हैं...
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36 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक हुए हवाई हमले
गोवा या गोआ क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे छोटा और जनसंख्या के हिसाब से चौथा सबसे छोटा राज्य है। पुर्तगालियों ने गोवा पर लगभग 450 सालों तक शासन किया और दिसंबर 1961 में यह भारतीय प्रशासन को सौंपा गया। भारत ने 1947 में अंग्रेजों से आजादी पाई तो भारतीय सरकार ने अनुरोध किया कि भारतीय उपमहाद्वीप में पुर्तगाली प्रदेशों को उन्हें सौंप दिया जाए। किंतु पुर्तगाल ने अपने भारतीय परिक्षेत्रों की संप्रभुता पर बातचीत करना अस्वीकार कर दिया। इस पर 18 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा में ऑपरेशन विजय की शुरुआत की। 19 दिसंबर को भारतीय सेना के आगे पुर्तगाली सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और गोवा पर से अपना अधिकार छोड़ा। पुर्तगालियों को जहां भारत के हमले का सामना करना पड़ रहा था, वहीं दूसरी ओर उन्हें गोवा के लोगों का रोष भी झेलना पड़ रहा था।  गोवा, दमन और दीव में 36 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक जमीनी, समुद्री और हवाई हमले हुए। इसके बाद पुर्तगाली सेना ने बिना किसी शर्त के भारतीय सेना के समक्ष 19 दिसंबर को आत्मसमर्पण किया। 20 दिसंबर 1962 को दयानंद भंडारकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने।

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अंग्रेजों की पहली पसंद रहा था गोवा
अंग्रेजों की हमेशा से ही पहली पसंद गोवा रहा था। मुगलशासन में भी राजा इसकी खूबसूरती पर काफी आकर्षित थे। गोवा के लंबे इतिहास की शुरुआत तीसरी सदी इसा पूर्व से शुरु होता है जब यहां मौर्य वंश के शासन की स्थापना हुई थी। बाद में पहली सदी के शुरुआत में इस पर कोल्हापुर के सातवाहन वंश के शासकों का अधिकार स्थापित हुआ और फिर बादामी के चालुक्य शासकों ने इस पर वर्ष 580 से 750 तक राज किया। इसके बाद के सालों में इस पर कई अलग अलग शासकों ने अधिकार किया। वर्ष 1312 में गोवा पहली बार दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ लेकिन उन्हें विजयनगर के शासक हरिहर प्रथम द्वार वहाँ से खदेड़ दिया गया। अगले सौ सालों तक विजयनगर के शासकों ने यहां शासन किया और 1469 में गुलबर्ग के बहामी सुल्तान द्वारा फिर से दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनाया गया।

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1510 में पुर्तगालियों ने एक स्थानीय सहयोगी, तिमैया की मदद से सत्तारूढ़ बीजापुर सुल्तान यूसुफ आदिल शाह को पराजित किया। उन्होंने वेल्हा गोवा में एक स्थायी राज्य की स्थापना की। यह गोवा में पुर्तगाली शासन का प्रारंभ था जो अगली साढ़े चार सदियों तक चला। 1843 में पुर्तगाली राजधानी को वेल्हा गोवा से पंजिम ले गए। मध्य 18 वीं शताब्दी तक, पुर्तगाली गोवा का वर्तमान राज्य सीमा के अधिकांश भाग तक विस्तार किया गया था।


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कैसे मनाते हैं गोवा मुक्ति दिवस ?
आजादी के करीब 14 साल बाद आजाद होकर भारत में शामिल हुआ गोवा भारत का एक नया राज्य बना। 30 मई 1987 में केंद्र शासित प्रदेश को विभाजित किया गया और गोवा भारत का 25वां राज्य बनाया गया। जबकि दमन और दीव केंद्र शासित प्रदेश ही रहे। गोवा मुक्ति दिवस के दिन राज्य में तीन अलग-अलग स्थानों से एक मशाल जुलूस निकाला जाता है, ये सभी आजाद मैदान में मिलते हैं। यह वह जगह है जहां उन लोगों को श्रद्धांजलि दी जाती है, जिन्होंने गोवा के अधिग्रहण में अपनी जान गंवा दी। विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे सुगम संगीत- कन्नड़ भाषा में कविता के साथ एक भारतीय संगीत शैली- इस अवसर का सम्मान करने के लिए आयोजित किए जाते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि गोवा को पहले बहुत नाम से जाना जाता था जैसे गोअंचल, गोवे, गोवापुरी, गोपकापाटन और गोमंत आदि। इसके अलावा अरब के मध्ययुगीन यात्रियों ने गोवा को चंद्रपुर और चंदौर का भी नाम दिया था। 

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