goa election 2022: गोवा की पंजिम सीट पर टिकी है सबकी नजरें, पूर्व CM मनोहर पर्रिकर के बेटे भाजपा छोड़ आजाद उतरे हैं मैंदान में

Edited By Anil dev,Updated: 28 Jan, 2022 01:16 PM

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पूर्व मुख्यमंत्री (सीएम) मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल के भाजपा छोड़ने और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद सभी की निगाहें 40 सदस्यीय गोवा की पणजी विधानसभा सीट पर टिकी हैं।

नेशनल डेस्क: पूर्व मुख्यमंत्री (सीएम) मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल के भाजपा छोड़ने और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद सभी की निगाहें 40 सदस्यीय गोवा की पणजी विधानसभा सीट पर टिकी हैं। उत्पल पर्रिकर ने पणजी विधानसभा सीट से पर्चा भर दिया है। उधर पार्टी से पूर्व सीएम लक्ष्मीकांत पारसेकर के इस्तीफे से भाजपा में उथल-पुथल मच गई है और इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 30 जनवरी को गोवा का दौरा करेंगे।

मोंसरेट को टिकट दिए जाने से नाखुश हैं
भाजपा ने इस बार मौजूदा विधायक अतनासियो मोंसेरेट को ही पणजी से मैदान में उतारा है। जबकि इस सीट का प्रतिनिधित्व 4 बार मनोहर पर्रिकर कर चुके हैं। इसके बाद उत्पल पर्रिकर ने भाजपा छोड़ने का ऐलान करते हुए कहा था कि मैं इस बात से नाखुश हूं कि मुझे यह फैसला करना पड़ा, लेकिन कभी-कभी मुश्किल फैसले करने पड़ते हैं। यदि पार्टी पणजी से किसी अच्छे उम्मीदवार को खड़ा करती है तो मैं फैसला वापस लेने के लिए तैयार हूं। उन्होंने यह भी कहा था कि भाजपा हमेशा मेरे दिल में है। पार्टी छोड़ने का फैसला मेरे लिए आसान नहीं था। मॉन्सरेट के प्रति विरोध और अपनी दावेदारी जताते हुए उत्पल पर्रिकर ने पहले भी कहा था कि क्या जीत की संभावना ही टिकट हासिल करने का इकलौता मापदंड है? पार्टी के प्रति समर्पण, ईमानदारी कोई मायने नहीं रखती? चरित्र कोई मायने नहीं रखता? आप एक ऐसे व्यक्ति को टिकट दे रहे हैं, जो आपराधिक पृष्ठभूमि वाला है। यह नहीं हो सकता, मैं ये नहीं होने दे सकता।

पणजी से क्यों नहीं मिला टिकट
वहीं, भाजपा के गोवा प्रभारी देवेंद्र फडणवीस ने पिछले दिनों कहा था कि उत्पल पर्रिकर को पणजी के अलावा किसी और दो सीट से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन वे मानने के लिए तैयार नहीं हुए। गौरतलब है कि मोंसरेट ने 2017 में पणजी सीट कांग्रेस के टिकट पर जीती थी, लेकिन बाद में भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने 2019 में कांग्रेस के 10 अन्य विधायकों को भाजपा में शामिल कराया था, इससे भाजपा में उनकी दावेदारी मजबूत हो गई।

क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ
जानकारों का मानना है कि उत्पल का कोई स्वतंत्र आधार नहीं है और उनसे अपने पिता की अपील पर भरोसा करने की उम्मीद की जाती है, लेकिन उनकी प्रचार की महत्वपूर्ण शैली असंबद्ध मतदाताओं के साथ तालमेल बिठा सकती है।  भाजपा के पास कैडर, संगठन और व्यापक फंडिंग है, लेकिन पर्रिकर जैसे बड़े राजनीतिक व्यक्तित्व की अनुपस्थिति में गोवा के परिणाम की भविष्यवाणी करना मुश्किल है। वर्तमान सीएम प्रमोद सावंत जिन्होंने पर्रिकर की मृत्यु के बाद उनकी जगह ली है उन्हें दिल्ली और संघ में भाजपा के आला नेताओं का समर्थन प्राप्त है, लेकिन उनके अपने कई विधायक उनके खिलाफ हो सकते हैं।

पूर्व सीएम पारसेकर भी लड़ेंगे आजाद
ऐसे ही एक हैं लक्ष्मीकांत पारसेकर जिन्होंने 2014 में केंद्रीय रक्षा मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के लिए पर्रिकर के दिल्ली आने के बाद गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया था। 2017 के विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस द्वारा मंड्रेम सीट से हार गए थे। पारसेकर की जड़ें आरएसएस में हैं, तीन बार बीजेपी विधायक और गोवा बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं। वह करीब 32 साल से भाजपा के साथ हैं। पार्टी से उनका इस्तीफा और निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने का संकल्प उस राज्य में पार्टी की संभावनाओं को प्रभावित करेगा जहां निर्वाचन क्षेत्रों के छोटे आकार के कारण जीत का अंतर बहुत कम है।

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