सूफी संत के खिलाफ की थी अपमानजनक टिप्पणी, SC ने अमीश देवगन के खिलाफ दर्ज FIR को खारिज करने से किया इ

Edited By Anil dev,Updated: 08 Dec, 2020 11:35 AM

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उच्चतम न्यायालय ने 15 जून के एक कार्यक्रम में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के मामले में टीवी समाचार प्रस्तोता अमिश देवगन के विरूद्ध दर्ज प्राथमिकियों को रद्द करने से सोमवार को इनकार कर दिया। हालांकि,...

नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने 15 जून के एक कार्यक्रम में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के मामले में टीवी समाचार प्रस्तोता अमिश देवगन के विरूद्ध दर्ज प्राथमिकियों को रद्द करने से सोमवार को इनकार कर दिया। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि देवगन जांच में सहयोग करना जारी रखते हैं, तो उन्हें जांच पूरी होने तक गिरफ्तारी से संरक्षण मिला रहेगा। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना समेत विभिन्न राज्यों में देवगन के खिलाफ दर्ज सभी प्राथमिकियों को राजस्थान के अजमेर में स्थानांतरित कर दिया। पीठ ने देवगन द्वारा 15 जून को प्रस्तुत किये गये कार्यक्रम की लिपि के संबंधित अंश अपने फैसले में पेश किये और कहा , ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता (पत्रकार) इसमें सिर्फ मेजबान की बजाये समान रूप से भागीदार था।

आपत्तिजनक अंश सहित लिपि सामग्री का हिस्सा
पीठ ने कहा, आपत्तिजनक अंश सहित लिपि सामग्री का हिस्सा है लेकिन इसके आकलन के लिये इसकी जांच और विभिन्न संदर्भ और इसकी मंशा पर विचार करने की जरूरत होगी। अदालत द्वारा इसे लेकर मामला बनने के बारे में कोई राय बनाने से पहले इनका आकलन करना होगा। आकलन का निर्णय तथ्यों पर आधारित होगा जिसके लिये पुलिस जांच की आवश्यकता होगी। न्यायालय ने अपने 128 पन्नों के फैसले में कहा कि देवगन का यह तर्क कि उसने अपने ट्वीट के माध्यम से इसके लिये माफी मांग ली थी, जिसे शिकायतकर्ता और पुलिस ने कहा है कि यह उनके कृत्य की स्वीकरोक्ति का संकेत है। पीठ ने इन प्राथमिकी को निरस्त करने से इंकार करते हुये कहा कि इस मामले में उसकी टिप्पणियां किसी भी तरह से पेश मामले की पुलिस जांच को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करना चाहिए। पुलिस स्वतंत्र रूप से अपनी जांच करके सच्चाई और सही तथ्यों का पता लगायेगी। न्यायालय ने कहा कि इसी तरह सक्षम प्राधिकारी पुलिस द्वारा मंजूरी मांगने और इस बारे में मंजूरी देने या नहीं देने के बारे मे स्वतंत्र रूप से विचार करेंगे और आरोप पत्र दाखिल होने पर भी यही स्थिति रहेगी। 

सम्मन जारी करने के बारे में भी विचार करेगी अदालत
अदालत इसका संज्ञान लेने और सम्मन जारी करने के बारे में भी विचार करेगी। न्यायालय ने कहा, हम निर्देश देते हैं कि जांच के दौरान पुलिस को याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी करने की जरूरत नहीं है। यदि आरोप पत्र दाखिल किया जाता है तो निचली अदालत इन निर्देशों और इस फैसले में दर्ज तथ्य के निष्कर्षों से प्रभावित हुये बगैर ही जमानत देने के सवाल पर विचार करेगी। न्यायालय ने देवगन की वकील मृणाल भारती के इस कथन का संज्ञान लिया कि इस पत्रकार और उसके परिवार के सदस्यों को इन टिप्पणियों की वजह से धमकियां मिल रही हैं और उन्हें समुचित सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया। अर्नब गोस्वामी प्रकरण सहित शीर्ष अदालत के फैसलों के आधार पर पीठ ने उत्तर प्रदेश पुलिस को देवगन और उसके परिवार को उत्पन्न खतरे का आकलन कर उचित कदम उठाने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि राजस्थान सरकार भी इसी तरह का आकलन करेगी और अपनी एजेन्सियों से मिली जानकारी के आधार पर आवश्यक कदम उठायेगी। 

मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी का कर रहे थे जिक्र
इस फैसले में नफरत फैलाने वाले बोल और बोलने की आजादी के पहलू पर विस्तार से विचार किया गया और कहा गया कि हमारी टिप्पणियों का मकसद यह नहीं है कि प्रभावशील व्यक्ति या आम आदमी को धर्म, जाति या वर्ण आदि से संबंधित विवादास्पद और संवेदनशील विषयों पर चर्चा करते समय धमकी या कानूनी कार्यवाही के लिये डर महसूस करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि पीठ ने देवगन को प्राथमिकी के संबंध में किसी कठोर कार्रवाई से संरक्षण प्रदान किया था। इसके बाद से न्यायालय इस पत्रकार के खिलाफ किसी भी कठोर कार्रवाई से संरक्षण की अवधि बढ़ाता आ रहा है। एक समाचार चैनल पर आर पार नामक शो में 15 जून को सूफी संत के लिए आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल करने के मामले में देवगन के खिलाफ राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में कई प्राथमिकियां दर्ज की गयी हैं। हालांकि बाद में उन्होंने ट्वीट करके खेद जताया था और कहा था कि वह दरअसल मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी का जिक्र कर रहे थे और गलती से चिश्ती का नाम बोल गये। 

देवगन ने खटखटाया था अदालत का दरवाजा
देवगन ने प्राथमिकियां रद्द करने के अनुरोध को लेकर वकील मृणाल भारती के माध्यम से शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने कहा था कि उनकी जुबान फिसल गई थी और वह इसके लिए पहले ही खेद प्रकट कर चुके हैं। देवगन ने शीर्ष अदालत से कहा, किसी भी प्राथमिकी में यह नहीं कहा गया कि सार्वजनिक व्यवस्था खराब हो रही है। वहीं, राजस्थान की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष सिंघवी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि जांच करना पुलिस का अधिकार है। शीर्ष अदालत ने देवगन को अंतरिम राहत देते हुए प्रसारण से संबंधित मामलों में पत्रकार के खिलाफ जांच पर भी रोक लगा दी थी। याचिका में कहा गया कि टीवी कार्यक्रम में परिचर्चा के दौरान एक पैनल सदस्य ने चिश्ती (ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती) को उद्धृत कर दिया और गलती से देवगन ने भी चिश्ती के नाम का जिक्र कर दिया, जबकि वह खिलजी (अलाउद्दीन खिलजी) का जिक्र करना चाहते थे। जुबान फिसल जाने को फौरन ही महसूस करते हुए याचिकाकर्ता ने स्पष्टीकरण दिया और स्पष्ट किया कि चिश्ती का जिक्र गलती से और अनजाने में हो गया। भाषा अनूप अनूप नीरज

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