भारत में विक्रम बेताल, गिल्ली-डंडा जैसे खिलौने फिर हुए पॉपुलर, चीनी उद्योग की टूटी कमर

Edited By Anil dev,Updated: 15 Aug, 2022 05:53 PM

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कुछ दशक पहले भारतीयों के बच्चों में चीन के ही बने खिलौने नजर आते थे वहीं अब यह तस्वीर बिलकुल  बदली हुई नजर आती है। भारत के खिलौना बाजार का आकार अब घरेलू और इंटनेशनल स्तर पर भी बढ़ने लगा है। देश के भीतर बात करें तो गिल्‍ली-डंडा, देसी लट्टू और बिक्रम...

नेशनल ड़ेस्क: कुछ दशक पहले भारतीयों के बच्चों में चीन के ही बने खिलौने नजर आते थे वहीं अब यह तस्वीर बिलकुल  बदली हुई नजर आती है। भारत के खिलौना बाजार का आकार अब घरेलू और इंटनेशनल स्तर पर भी बढ़ने लगा है। देश के भीतर बात करें तो गिल्‍ली-डंडा, देसी लट्टू और बिक्रम बेताल जैसे खिलौने एक बार फिर पॉपुलर हो गए हैं। इन्होंने चीन के खिलौनों के बाजार का खेल पलटना शुरू कर दिया है।

भारतीय टॉय मार्केट में अब कई भारतीय कंपनियों की एंट्री होने से चीनियों की हवा खराब है। दुनिया में भारतीय खिलौनों का डंका बजने लगा है। 2021 में सरकार ने इस इंडस्ट्री के लिए क्वालिटी सर्टिफिकेशन (बीआईएस ट्रेडमार्क) लेना अनिवार्य किया था। इसने कुछ सेगमेंट में आयात पर अंकुश लगाया है। इसके साथ ही इनके लिए कोडों की शुरुआत हुई है। इसका अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर इस्तेमाल होता है। ट्वायज (क्‍वालिटी कंट्रोल) ऑर्डर के बाद देश में कोई भी खिलौना ISI (इंडियन स्टैंडर्ड्स इंस्‍टीट्यूट) मार्क के बगैर नहीं बेचा जा सकता है। सरकार के इस कदम ने सस्ते चीनी खिलौने के चंगुल से भारत को आजाद किया है।

भारतीय खिलौनों यह कारोबार 1.5 अरब डॉलर का है। हालांकि इसमें ज्यादातर खिलाड़ी असंगठित हैं, लेकिन कुल मार्केट में 90 फीसदी हिस्सेदारी इन्‍हीं की है। 2 सालों में भारत का टॉय मार्केट 2-3 अरब डॉलर का आंकड़ा छू सकता है। अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर डिमांड 5 फीसदी के बजाय बढ़कर 10-15 फीसदी होने के आसार हैं। केंद्र सरकार के कदम के चलते कंपनियों ने इनोवेशन पर जोर द‍िया है। देसी कंपनियां जो खिलौने बना रही हैं उनमें भारतीय संस्कृति की झलक दिखती है। इसमें फनस्‍कूल और हासब्रो मार्केट लीडर्स हैं। ये अपने खिलौनों और गेम्‍स में भारतीय जायका लाने की कोशिश कर रही हैं। इसके अलावा सेक्टर में तमाम स्‍टार्टअप भी सामने आ रहे हैं।

भारतीय खिलौना उत्पादक इको-फ्रेंडली भारतीय चीजों से खिलौने बनाते हैं। इन खिलौनों में भारतीय संस्कृति की झलक दिखती है। इन्‍हें अलग-अलग थीम पर तैयार किया जाता है। इनमें जन्‍माष्‍टमी से लेकर रामायण तक की थीम दिखती है। इन खिलौनों की भारी डिमांड है। भारतीय ग्राहक इन्‍हें हाथों-हाथ ले रहे हैं। कारण है कि माता-पिता इन खिलौनों के जरिये अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति से आसानी से जोड़ पाते हैं। भारतीय कंपनियों की एंट्री से बकरी और शेयर जैसे पारंपरिक खेलों की वापसी हुई है। खो-खो और कबड्डी जैसे भारतीय खेलों की थीम पर खिलौनों को डिजाइन किया गया है। फनस्‍कूल ने लट्टू और गिल्ली-डंडा जैसे गेम्स की पेशकश तक की है।

पारंपरिक भारतीय खिलौनों की बिक्री उम्मीद से बेहतर है। फनस्‍कूल इंडिया के सीईओ आर जसवंत ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा है कि हमें इनमें काफी संभावना दिख रही है। शूमी ट्वायज की संस्थापक मीता शर्मा ने कहा कि पुराने जमाने के खिलौनों ने दोबारा वापसी की है। देसी करेक्‍टरों से बच्‍चे खुद को आसानी से जोड़ लेते हैं। हासब्रो इंडिया के कमर्शियल डायरेक्टर ललित परमार ने कहा कि यादों को जोड़ना गेम्‍स और ट्वायज में सबसे अहम पहलू होता है। हम सभी कई तरह के पारंपरिक खेलों से होकर गुजरे हैं। कुछ करेक्‍टर हमेशा हमारी जुबान पर होते हैं।

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