मासूम निशांत की मौत का जिम्मेदार कौन? ‘पुलिस’ या ‘अंकल’

Edited By Anil dev,Updated: 25 Mar, 2019 11:59 AM

nishant death police

12 वर्ष का निशांत रोजाना की तरह घर के बाहर खेल रहा था कि 11 मार्च को शाम उसके अंकल नन्हें घर पहुंचे और उसे चॉकलेट खिलाने के बहाने अपने घर ले जाने लगे। बच्चे ने मां से पूछा भी तो मां इंकार नहीं कर सकी, लेकिन यहीं इंकार न करना अब उस मां के लिए सदमा बन...

नई दिल्ली(नवोदय टाइम्स): 12 वर्ष का निशांत रोजाना की तरह घर के बाहर खेल रहा था कि 11 मार्च को शाम उसके अंकल नन्हें घर पहुंचे और उसे चॉकलेट खिलाने के बहाने अपने घर ले जाने लगे। बच्चे ने मां से पूछा भी तो मां इंकार नहीं कर सकी, लेकिन यहीं इंकार न करना अब उस मां के लिए सदमा बन गया है, क्योंकि उसका मासूम निशांत अब कभी वापिस नहीं आएगा, क्योंकि उसी अंकल ने उसकी निर्ममता से हत्या कर दी। हत्या इसलिए की क्योंकि उसे पैसे की जरूरत थी और वह उस परिवार से पैसे ऐंठना चाहता था, लेकिन परिवार पुलिस के पास पहुंच गया। जहां परिवार को उम्मीद थी पुलिस उसकी मदद करेगी और उसके बच्चे को सकुशल वापिस लाएगी, लेकिन सकुशल लाने की बात तो दूर पुलिस ने उसे हर जगह दुत्कारा जिसका ये नतीजा रहा कि निशांत की लाश बोरे में बंद एक नाले में सड़ी गली मिली। 

आखिर कौन है मौत का जिम्मेदार पुलिस या आरोपी नन्हें
निशांत के पिता के मुताबिक 11 मार्च को शाम जैसे ही बच्चा वापिस नहीं आया तो उसके पिता और चाचा अरुण करावलनगर थाने पहुंचे। वहां मौजूद ड्यूटी आफिसर सहित एसएचओ से मुलाकात हुई। बच्चे के बारे में बताया गया और लिखित शिकायत दी गई कि आरोपी नन्हें ही उसके बच्चे को लेकर गया था जिसके बाद से वह गायब है। लेकिन पुलिस ने एक नहीं सुनी बल्कि गुमशुदगी का मामला दर्ज किया और आरोपी का नाम शिकायत में से हटा दिया। आखिर क्यों, यही नहीं आरोप ये भी था नन्हें को जांच अधिकारी ने थाने में बुलाया,लेकिन महज 5 मिनट बाद ही उसे छोड़ दिया। जिसके कुछ दिनों बाद बच्चे का शव नाले में मिला। आरोप ये भी है कि निशांत के पिता और चाचा मामले में डीसीपी से भी मिले, साथ ही वहां मौजूद अन्य पुलिसकर्मियों से बात भी की, लेकिन वहां भी उसे दुत्कार दिया गया, यही नहीं उसकी शिकायत को अनसुना कर दिया गया। 

12 दिन में 30 बार से अधिक थाने पहुंचा पिता 
एक बेटे के गायब होने का दर्द लेकर पिता अक्सर सुबह ही थाने पहुंच जाता था, मां सड़कों पर बच्चे को खेाजती थी, लेकिन थाना पुलिस थी जो उसकी बात को सुनने की जगह पर केवल दुत्कारती थी,यहीं नहीं जांच अधिकारी ने तो ये यह तक कह दिया था कि अगर अब थाने पहुंचे तो तुम्हें ही बंद कर दूंगा। एक जांच अधिकारी के लिए बच्चे को खोजने से ज्यादा अन्य काम जरूरी थे, ये काम क्या थे इसका अता पता नहीं। पिता के मुताबिक उसने आरोपी नन्हें के  बारे में और बच्चे के उसके पास होने के कई सबूत भी पुलिस को दिए लेकिन पुलिस ने उन सबूतों पर गौर नहीं किया जिसका नतीजा ये हुआ कि बच्चे की जान चली गई। 

अपराधी का कबूलनामा
आरोपी चाचा के मुताबिक उसके बच्चे की लाश जब नाले में बोरे में बंद मिली तो पुलिस ने चंद मिनटों में आरोपी नन्हें को पकड़ लिया। नन्हें ने जो बातें पुलिस और उसके परिजनों के सामने बताई उससे साफ हुआ कि अगर पुलिस जरा भी संजीदा होती तो शायद निशांत जिंदा होता। अपराधी नन्हें ने बताया कि उसने बच्चें को पैसे के लिए किडनैप किया था, लेकिन जब पुलिस को उस पर शक हो गया और उसे थाने बुलाया गया तो डर गया। थाने में उसने पुलिस को गुमराह किया और जांच अधिकारी से बात की और सीधे घर पहुंचा। घर पहुंचते वह गुस्से में था और उसने मासूम निशांत का गला दबाकर हत्या कर दी। हत्या के बाद उसने शव को ठिकाने लगा दिया।

रात भर सोचा फिर तड़के सुबह शव नाले में फेंका 
हत्या के बाद आरोपी ने शव को अपने ही घर में रखा। वह रात भर ये सोचता रहा कि आखिर इसकी लाश को कहा ठिकाने लगाए। फिर उसने एक बोरे में शव को रखा और फिर सुबह तड़के उस शव को नाले में फेंक दिया। जिसके बाद वह सीधे परिजनों के घर पहुंचा और उन्हें अपने बेगुनाह होने की बात कहने लगा। अगले दिन भी पिता थाने पहुंचा और उसने नन्हें से सख्ती से पूछताछ की बात कहीं,लेकिन पुलिस ने उस दिन भी उसकी नहीं सुनी। 

यह बोले परिजन
मैंने जांच अधिकारी से मन्नतें की, कि वे आरोपी नन्हें का नाम एफआईआर में लिखें और सख्ती से पूछें, लेकिन पुलिस ने वह सब कुछ नहीं लिखा जो मैंने कहा, पुलिस ने सिर्फ खानापूर्ति करते हुए, इतना लिखा कि निशांत बिना बताए घर से गया है। जबकि वह कहकर गया था कि वह नन्हें भाइयां के साथ जा रहा है। पुलिस ने नहीं लिखा।
-निशांत की मां राखी 

मैं और भाई निशांत के गायब होने के बाद प्रतिदिन थाने जाते थे। दो बार वह उत्तर-पूर्वी जिला पुलिस उपायुक्त कार्यालय भी गए वहां भी कार्यवाही करने की ही बात कही गई।लेकिन वहां भी उन्हे संतोषजनक जवाब नहीं मिला। अगर पुलिस समय रहते नन्हें पर कार्रवाही करती तो आज उनका भतीजा उनके पास होता। 
-निशांत के चाचा अरुण 


अगर पुलिस ये करती तो क्या जिंदा नहीं होता निशांत

  • रात में जब आरोपी पर शक था तो पुलिस को उसे छोड़ते ही उसकी रेकी करनी चाहिए थी, जो नहीं की
  • जांच अधिकारी ने अगले दिन भी नन्हें को नहीं बुलाया और न ही उसकी किसी गतिविधि पर नजर रखी
  • जांच अधिकारी पीड़ित के घर तक नहीं गए और न ही मां सहित अन्य लोगों के बयान लिए, दो दिन बाद जांच अधिकारी गए और फिर बयान दर्ज किए
  • आखिर जब पीड़ित ने नन्हें को आरोपी बना शिकायत दी तो पुलिस ने उस शिकायत से नन्हें का नाम क्यों हटा दिया
  • डीसीपी जब पीड़ित से मिले तो उन्हें ऐसे संजीदा मामले में पुलिस से स्पष्टीकरण लेना चाहिए था, लेकिन उन्होंने इसे अनसुना किया
     

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