Exclusive:नीतीश का एक तीर से दो शिकार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Jul, 2017 08:00 PM

nitish shoots two arrows

1970 के दशक में जेपी आंदोलन से राजनीति का ककहरा सीखने वाले नीतीश कुमार ने हाल ही के सियासी घटनाक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी..

नई दिल्ली: 1970 के दशक में जेपी आंदोलन से राजनीति का ककहरा सीखने वाले नीतीश कुमार ने हाल ही के सियासी घटनाक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का ऐसा इस्तेमाल किया जिसका बड़े -बड़े सियासतदान अंदाजा तक नहीं लगा सकते।

हालांकि इस पूरे घटनाक्रम के बीच नीतीश की कुर्सी भी दांव पर है लेकिन यदि नीतीश का दांव यदि सही बैठा तो चित भी उनकी होगी और पट्ट भी उनकी। नीतीश कुमार और कांग्रेस के मध्य 22 जुलाई को एक अहम बैठक होने जा रही है। इस बैठक में ही तय होगा कि नीतीश की चाल सीधी पड़ेगी या उन्हें सियासत में मुंह की खानी पड़ेगी।

तो भाजपा का भी इस्तेमाल कर गए नीतीश
बिहार की राजनीति में पिछले कुछ महीने के घटनाक्रम को करीब से देखा जाए तो ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार बिहार में अपने प्रतिद्वंदी लालू को ठिकाने लगाने के लिए भाजपा का भी इस्तेमाल कर गए। इसकी शुरुआत बिहार में भाजपा के सीनियर नेता सुशील मोदी द्वारा लालू परिवार के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान किए गए खुलासों से हुई।

इस तरह की खबरें आईं कि सुशील मोदी को लालू परिवार राजद के मंत्रियों के खिलाफ दस्तावेज नीतीश सरकार के मंत्रियों और अफसरों ने मुहैया करवाए। यहीं से लालू पर हमले की शुरुआत हुई और भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई और ईडी तक जा पहुंची। नीतीश ने इस दौरान बड़ी चतुराई के साथ नोटबंदी और रामनाथ कोविंद के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सद्भाव दिखाया और केंद्र सरकार की एजैंसियों ने सियासत का रुख देखते हुए लालू परिवार पर ताबड़तोड़ जांच शुरू कर दी। आज की तारीख में नीतीश लालू को पूरी तरह बदनाम कर चुके हैं और इस पूरे घटनाक्रम में इस्तेमाल भाजपा का हुआ है।

कांग्रेस के लिए भी चिंता बने नीतीश
बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर 22 जुलाई को होने वाली जदयू की बैठक के बाद राहुल और सोनिया का भी नीतीश से मिलने का कार्यक्रम है। ये बैठक इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि इसी बैठक से न सिर्फ बिहार बल्कि देश के भविष्य की राजनीतिक दशा और दिशा तय होगी। कांग्रेस बिहार में जारी गठबंधन को बरकरार रखने के पक्ष में है जबकि नीतीश ने तेजस्वी यादव के मामले में दो टूक स्टैंड लिया हुआ है। यदि 22 जुलाई को कांग्रेस नीतीश को मनाने में कामयाब रही तो ये लालू के लिए भी राहत वाली खबर हो सकती है।

क्या नीतीश को चेहरा मानेगी कांग्रेस 
हालांकि नीतीश कुमार प्रेस कॉन्फ्रेंस करके खुद को 2019 चुनाव के लिए विपक्ष का चेहरे के तौर पर अलग कर चुके हैं और कांग्रेस ने भी राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मदीवार उतारकर इस बात के संकेत दे दिए हैं कि 2019 में उसे विपक्ष के नेतृत्व के लिए कोई अन्य चेहरा मंजूर नहीं है। लेकिन इसके बावजूद नीतीश की 2019 के लिए चेहरा बनने की महत्वकांक्षा जगजाहिर है। वह खुले में भले ही इस बात को ना माने लेकिन यदि अंदर खाते उन्हें इस तरह का कोई भी संकेत नजर आया तो वह पीछे नहीं हटेंगे। इस लिहाज से नीतीश इस पूरे घटनाक्रम में दबाव की राजनीति के तहत कांग्रेस और राहुल का इस्तेमाल करते नजर आ रहे हैं।

क्या होगा बिहार में बीच का रास्ता
नीतीश कुमार यदि तेजस्वी यादव को हटाने के अपने स्टेंड पर कायम रहते हैं तो लालू यादव राजद के सारे कैबिनेट मंत्रियों के साथ सरकार से बाहर आ सकते हैं। ऐसी स्थिति में वह सरकार का बाहर से समर्थन करते रहेंगे और सरकार नहीं गिरेगी। लेकिन लालू सत्ता से बाहर हो जाएंगे। ये स्थिति लालू के लिए भी रा’य में राष्ट्रपति शासन की स्थिति के मुकाबले ’यादा आदर्श है। राष्ट्रपति शासन लगा तो पुन: चुनाव की नौबत आएगी जिसमें भाजपा विराधी सारे खेमें को लेने के देने पड़ सकते हैं।

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