Edited By Yaspal,Updated: 10 Jul, 2018 08:33 PM
जम्मू-कश्मीर सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उनके यहां पहले से दो आयोग मौजूद हैं जो लोकपाल और लोकायुक्त कानून का पूरा काम करते हैं, ऐसे में राज्य में लोकायुक्त की कोई आवश्यकता नहीं है।
नई दिल्लीः जम्मू-कश्मीर सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उनके यहां पहले से दो आयोग मौजूद हैं जो लोकपाल और लोकायुक्त कानून का पूरा काम करते हैं, ऐसे में राज्य में लोकायुक्त की कोई आवश्यकता नहीं है।
राज्य सरकार ने जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस आर. भानुमति और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ को बताया कि जम्मू-कश्मीर जवाबदेही आयोग कानून, 2002, और जम्मू-कश्मीर राज्य सतर्कता आयोग कानून, 2011 के प्रावधान लोकायुक्त कानून, 2013 के समान ही हैं। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘आपके यहां समानांतर व्यवस्था (जवाबदेही आयोग) है जिसकी अध्यक्षता अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश करते हैं और दो अवकाश प्राप्त न्यायधीश उसके सदस्य हैं। आपके यहां सतर्कता आयोग भी है। आपका कहना है कि दोनों आयोग पर्याप्त हैं, और आपका कहना है कि आपके संविधान की विलक्षणता के मद्देनजर लोकायुक्त की आवश्यकता नहीं है।’’
जम्मू-कश्मीर सरकार की ओर से पेश हुए वकील शोएब आलम से पीठ ने कहा, ‘‘ हम नहीं जानते हैं कि आपका जवाबदेही आयोग या सतर्कता आयोग किस हद तक काम करता है और क्या वह लोकायुक्त कानून के मानदंडों पर खरे उतरते हैं।’’ सवाल के जवाब में आलम ने कहा कि राज्य के जिन कानूनों के तहत दोनों आयोगों का गठन हुआ है वे लोकायुक्त कानून के समान हैं। अपनी दलील की पुष्टि के लिए उन्होंने लोकायुक्त कानून के प्रावधान 63 का हवाला भी दिया। प्रावधान 63 में कहा गया है, प्रत्येक राज्य सार्वजनिक कर्मचारियों के भ्रष्टाचारों की शिकायत सुनने के लिए इस कानून के लागू होने के एक वर्ष के भीतर अपने यहां लोकायुक्त नामक संस्था का गठन करे , यदि राज्य की विधानसभा द्वारा पारित कानून के तहत उनके यहां पहले से लोकायुक्त संस्था का गठन नहीं किया गया है।
लोकायुक्तों और लोकपाल की नियुक्ति को लेकर याचिका दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का जवाबदेही आयोग और सतर्कता आयोग लोकायुक्त कानून के मानदंडों पर खरा नहीं उतरता है , इसपर पीठ ने सवाल किया, ‘‘आप बताएं कि क्या फर्क है।’’ पीठ ने कहा कि वह जम्मू-कश्मीर द्वारा रखी गई दलीलों को भी सुनेगा, साथ ही उसने उपाध्याय से कहा कि वह लोकायुक्त कानून और राज्य के दोनों कानूनों का तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं।
सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी कहा, यदि जम्मू-कश्मीर राज्य के दोनों कानून लोकायुक्त कानून के समान ही हैं तो, यह फिर नाम बदलने का मामला रह जाएगा। जम्मू-कश्मीर के अलावा पीठ ने पश्चिम बंगाल, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, तमिलनाडु, तेलंगाना और ओडिशा सहित 11 अन्य राज्यों में भी लोकायुक्तों की नियुक्ति के मुद्दे पर सुनवाई की। गौरतलब है कि न्यायालय ने इन 11 राज्यों के मुख्य सचिवों से कहा था कि वह लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं किये जाने के कारणों से उसे अवगत कराएं।