Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Sep, 2017 09:44 AM
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 282 सीटों पर कब्जा करने वाली भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने 2019 के चुनाव में 350 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है।
नेशनल डैस्कः 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 282 सीटों पर कब्जा करने वाली भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने 2019 के चुनाव में 350 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। शाह इस मकसद से भाजपा की विस्तार यात्रा भी कर रहे हैं और यह विस्तार यात्रा 25 सितम्बर को खत्म होगी लेकिन यदि हम 2014 के नतीजों का गहराई से विशलेषण करें तो अमित शाह का यह लक्ष्य अति महत्वाकांक्षी लगता है क्योंकि 350 सीटें जीतने के लिए भाजपा को ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लडऩा पड़ेगा और जीत का औसत भी बढ़ाना पड़ेगा। ऐसा तभी हो सकता है यदि भाजपा अपने सहयोगियों के लिए कम से कम सीटें छोड़े।
पिछले चुनाव में 62 सीटों पर जमानत नहीं बचा सकी थी पार्टी
जब चारों तरफ जीत का नगाड़ा बज रहा हो तो नाकामी की खबरें अक्सर छुप जाती हैं। ऐसा ही 16 मई, 2014 को हुआ था जब भाजपा ने ऐतिहासिक बहुमत हासिल करते हुए अपने दम पर केंद्र में 282 सीटें हासिल कर ली थीं। भाजपा की यह जीत तो सुर्खियों में रही लेकिन इसी चुनाव में पार्टी 62 सीटों पर अपनी जमानत भी नहीं बचा सकी थी। इसकी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया। भाजपा ने कुल 428 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिनमें से पार्टी को 282 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि 146 सीटों पर पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा था। इनमें से 62 सीटें ऐसी थीं जहां पार्टी जमानत नहीं बचा सकी और 84 सीटों पर वह सम्मानजनक तरीके से चुनाव हारी। पिछले चुनाव के दौरान देश में कुल 54 करोड़ 78 लाख वोटरों ने अपने मत का इस्तेमाल किया था जिसमें से भाजपा को 17,16,60,230 वोट पड़े थे। यह कुल मतदान का 31 प्रतिशत था।
साथियों के बिना कैसे जीतेगी भाजपा
देश में लोकसभा की कुल 543 सीटें हैं। भाजपा यदि पिछले चुनाव के मुकाबले 100 अन्य सीटों पर भी चुनाव लड़ती है तो भी भाजपा के लिए 350 का लक्ष्य इतना आसान नहीं है। पिछली बार मोदी की लहर के बीच भाजपा की सफलता का प्रतिशत 65.99 था और यदि इस बार भी भाजपा को वैसी ही सफलता मिलती है तो भी पार्टी 500 सीटें जीत कर 330 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकेगी। ऐसा उसी हालत में होगा जब भाजपा अपने सारे सहयोगियों को नाममात्र सीटें दे और खुद ही मुख्य पार्टी के रूप में सारी सीटों पर चुनाव लड़े। पिछले चुनाव में महाराष्ट्र में पार्टी ने शिवसेना के साथ गठबंधन किया था और दोनों पाॢटयां राज्य की 24-24 सीटों पर चुनाव लड़ी थीं। भाजपा को इसमें से 23 सीटें मिली थीं। बिहार में भाजपा ने 30 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिनमें से उसे 22 सीटों पर सफलता मिली थी लेकिन पिछली बार भाजपा का नीतीश कुमार की जनता दल (यू) के साथ गठजोड़ नहीं था और उसने रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी व उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी के लिए सीटें छोड़ी थीं लेकिन इस बार पार्टी को या तो इन दोनों को अलविदा कहना होगा अथवा नीतीश कुमार के साथ सीटों को लेकर समझौता करना होगा। बिहार में कुल 40 व महाराष्ट्र में कुल 48 सीटें हैं। इन दोनों राज्यों में भाजपा को पिछले चुनाव में कुल 54 सीटें हासिल हुई थीं। 2019 के चुनाव में इन दोनों राज्यों में उसी तरह के नतीजे के लिए भाजपा को अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लडऩा होगा। ऐसा महाराष्ट्र में शिवसेना और बिहार में जनता दल (यू) के साथ गठबंधन में रह कर संभव नहीं हो सकेगा।
भारतीय जनता पार्टी की तरफ से 2 बार राज्य सभा के सदस्य रहे चंदन मित्रा का भी मानना है कि देश को विपक्ष मुक्त बनाने के लक्ष्य की राह में पूर्वी भारत के ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य रोड़ा साबित हो सकते हैं। एक अखबार में लिखे गए लेख में मित्रा ने कहा है कि इन दोनों राज्यों में ममता बनर्जी और नवीन पटनायक जैसे दमदार क्षेत्रीय नेता मौजूद हैं। इन राज्यों के लिए अपनी रणनीति बनाते समय उत्तरी और मध्य भारत से अलग दृष्टिकोण अपनाना होगा। इन दोनों राज्यों के मजबूत क्षत्रप किसी समय भाजपा के सहयोगी रहे हैं।
ममता बनर्जी और नवीन पटनायक किसी समय राजग का हिस्सा हुआ करते थे लेकिन 2009 में इनके रास्ते अलग हो गए थे। पश्चिम बंगाल में 27 से 31 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं पर ममता की मजबूत पकड़ है। हालांकि इस राज्य में भाजपा का वोट बैंक बढ़ा है लेकिन मंजिल फिलहाल बहुत दूर है। ममता ने युवा क्लबों के माध्यम से युवा वर्ग को अपने साथ जोड़ा हुआ है और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का मजबूत संगठन है। इस राज्य में पढ़े-लिखे बंगाली जिन्हे भद्रलोक कहा जाता है, ध्रुवीकरण की राजनीति को अरसे से नाकाम करते आए हैं। इसी प्रकार ओडिशा में भी भाजपा के लिए लड़ाई इतनी आसान नहीं है क्योंकि जमीनी स्तर पर पार्टी मजबूत नहीं है।
5 राज्यों की 164 सीटों पर भाजपा का आधार नहीं
दक्षिण व पूर्वी भारत के आंध्र प्रदेश, ओडिशा, केरल, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे 5 बड़े राज्यों में भाजपा की जीत संदिग्ध नजर आती है क्योंकि इन राज्यों में उसका नाममात्र आधार है। इन 5 राज्यों की 164 सीटों में से भाजपा को पिछले चुनाव में सिर्फ 7 सीटों पर ही जीत मिली थी। पार्टी ने इन 5 राज्यों में 89 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से पश्चिम बंगाल में पार्टी के 21 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी जबकि केरल में 16 उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सके थे। आंध्र प्रदेश में 3, तमिलनाडु में 2 और ओडिशा में पार्टी के 8 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।
8 राज्यों में ही भाजपा जीती थी 199 सीटें
पिछले चुनाव के दौरान भाजपा को उत्तर, पश्चिम व मध्य भारत के 8 राज्यों में जबरदस्त सफलता मिली थी जिसके दम पर पार्टी को उम्मीद से बढ़ कर सीटें हासिल हुईं। पार्टी ने राजस्थान की सारी 25, गुजरात की सारी 26 सीटों के अलावा मध्य प्रदेश की 29 में से 27 सीटें जीत ली थीं। पार्टी बिहार में 30 सीटों पर चुनाव लड़ी जिनमें से उसे 22 सीटें हासिल हुईं जबकि महाराष्ट्र में 24 सीटों पर लड़ कर पार्टी 23 सीटों पर चुनाव जीत गई। सबसे बड़ी सफलता उत्तर प्रदेश में मिली जहां पार्टी 77 में से 77 सीटों पर लड़ कर 71 सीटें जीत गई थी जबकि उत्तराखंड की 5 सीटों पर भी भाजपा ने कब्जा कर लिया था। इन 7 राज्यों में पार्टी को कुल 199 सीटें हासिल हुई थीं। 2019 के चुनाव में इस सफलता को दोहराना आसान नहीं होगा क्योंकि मध्य प्रदेश, गुजरात व राजस्थान जैसे राज्यों में पार्टी को लगभग 100 प्रतिशत सीटें ही हासिल हो गई थीं।
2014 में सहयोगियों के लिए छोड़ी थीं 91 सीटें
पिछले चुनाव के दौरान भाजपा ने अपने सहयोगियों शिवसेना के लिए 24, पी.डी.पी. के लिए 16, लोक जनशक्ति पार्टी के लिए 6, शिरोमणि अकाली दल के लिए 8, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के लिए 3, अपना दल के लिए 2, पी.एम. के लिए 7, डी.एम.डी.के. के लिए 14, स्वाभिमान पक्ष के लिए 1, एम.डी.एम. के लिए 7 व हरियाणा जनहित कांग्रेस के लिए 3 सीटें छोड़ी थीं। इन सारी सीटों का जोड़ मिला दिया जाए तो यह 91 बनता है। 2019 में भी यदि सहयोगियों के लिए भाजपा इतनी ही सीटें छोड़े तो उसे कुल 452 सीटें ही मिलेंगी और यह पिछले चुनाव के मुकाबले महज 24 सीटें ही ज्यादा हैं। इतनी सीटों पर लड़ कर 350 सीटें हासिल करना भी दूर की कौड़ी नजर आता है।
इन राज्यों में भी नाकामी
राज्य |
कुल सीटें |
चुनाव लड़ा |
चुनाव जीते |
जमानत जब्त |
वोट प्रतिशत |
जम्मू-कश्मीर |
06 |
06 |
03 |
03 |
32.65 |
मणिपुर |
02 |
02 |
00 |
02 |
11.92 |
त्रिपुरा |
02 |
02 |
00 |
02 |
05.77 |
मेघालय |
02 |
01 |
00 |
01 |
09.16 |
सिक्किम |
01 |
01 |
00 |
01 |
02.39 |
लक्षद्वीप |
01 |
01 |
0 |
01 |
0.43 |
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में भारतीय जनता पार्टी ने 33 सीटों पर चुनाव लड़ा था, इनमें से पार्टी महज 2 सीटें ही जीत पाई थी जबकि 21 सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हो गई थी। जिन सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हुई थी इनका ब्यौरा इस प्रकार हैं:
जंगीपुर, बहरामपुर, मुॢशदाबाद, ज्वायनगर, मथुरापुर, जाधवपुर, डायमंड हर्बर, उलुबेरिया, हुगली, अमरबाग, तमलुक, कांति, घाटल, झारग्राम, मिदनापुर, पुरूलिया, बद्र्धमान पूरब, बोलपुर, कूचबिहार, बिशनुपुर, मालदा उत्तर
केरल में इन सीटों पर नहीं बची जमानत
केरल की 20 सीटों में भाजपा ने 18 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे जो इनमें से 2 उम्मीदवार ही अपनी जमानत बचा सके थे जबकि 16 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।
ये सीटें निम्नलिखित है:
वाडाकारा, वायनाड, कोझिकोड, मल्लापुरम, पनानी, पलक्कड़, अलथूर, थ्रिसूर, चलककुड्डी एरनकुल्लम, इडुक्की, मवेलीकारा, कन्नूड़, पत्थनमथिटका, अतिन्गल, कोल्लम
इन सीटों पर भी जब्त हुई थी जमानत
राज्य |
सीटें |
आंध्र प्रदेश |
मेढ़क, भोंगीर, वारंगल |
जम्मू-कश्मीर |
बारामूला, श्रीनगर, अनंतनाग |
कर्नाटक |
हासन, मांडेया |
मणिपुर |
इनर मणिपुर, आऊटर मणिपुर |
मेघालय |
शिलांग |
ओडिशा |
जजपुर, नबरंगपुर, कंदमाल, कटक, केंद्रपाड़ा, ज्योतिसिंहपुरा, आस्का, कोरापुट्ट |
सिक्किम |
सिक्किम |
तमिलनाडु |
थंजावुर, शिवगंगा |
लक्षद्वीप |
लक्षद्वीप (लक्षद्वीप केन्द्र शासित प्रदेश है) |