Edited By Ashish panwar,Updated: 16 Jan, 2020 12:02 AM
देश में अप्रैल से सितंबर के बीच राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप के बीच होने वाली एनपीआर की तैयारी अंतिम चरण में है। देश के हर नागरिक तक जनगणना कर्मी पहुंचकर सवाल पूछेंगे। हालांकि यह स्पष्ट किया गया है कि जो न चाहे व सवालों के जवाब न दें, लेकिन अगर जानकारी...
नेशनल डेस्कः देश में अप्रैल से सितंबर के बीच राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप के बीच होने वाली एनपीआर की तैयारी अंतिम चरण में है। देश के हर नागरिक तक जनगणना कर्मी पहुंचकर सवाल पूछेंगे। हालांकि यह स्पष्ट किया गया है कि जो न चाहे व सवालों के जवाब न दें, लेकिन अगर जानकारी गलत दी तो, एक हजार रुपये का जुर्माना हो सकता है। यह प्रावधान 2010 के एनपीआर में भी था। वहीं गृहमंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, बाहर भले ही राजनीतिक बयानबाजी हो रही हो, लेकिन अभी तक किसी भी राज्य ने भारत के महापंजीयक (रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया-आरजीआई) को आधिकारिक रूप से एनपीआर नहीं कराने के बारे में सूचित नहीं किया है। अगर कोई जनगणनाकर्मी इसका बहिष्कार करता है, तो उसके लिए भी तीन साल तक सजा का प्रावधान है।
गृहमंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने साफ किया कि, एनपीआर के दौरान न तो किसी के कोई दस्तावेज मांगे जाएंगे, न ही बायोमेट्रिक देने को कहा जाएगा। लेकिन लोगों से उम्मीद की जाएगी कि वे सही जानकारी दें। लगभग 18 सवाल होंगे। एनपीआर कानून और जनगणना कानून के तहत सही जानकारी नहीं देने वाले के खिलाफ जुर्माने का भी प्रावधान है। त्रालय के अनुसार 2010 में NPR के तहत आरजीआइ ने 30 करोड़ लोगों का बायोमेट्रिक समेत अन्य दस्तावेज जुटाए थे, जो बाद में UDAI को दे दिये गए। 2015 में इसमे अपडेट किया गया था। उनके अनुसार अभी देश के 119 करोड़ लोगों की बायोमेट्रिक समेत पूरी जानकारी यूडीएआइ के पास मौजूद है। इस बार पुराने डाटा को अपडेट करने के लिए एनपीआर किया जा रहा है।
NPR को लेकर सबसे अधिक विवाद इसमें माता-पिता के जन्म की तारीख को पूछे जाने को लेकर है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इसको लेकर बेवजह विवाद खड़ा किया जा रहा है। 2010 में एनपीआर के दौरान भी यह जानकारी मांगी गई थी। फर्क सिर्फ इतना है कि पिछली बार घर में साथ रहने वाले माता-पिता की जन्म की तारीख पूछी गई थी। जो माता-पिता बच्चों से दूर दूसरी जगह रह रहे थे, उनसे वहां यह जानकारी देने को कहा गया था। इस बार अंतर यह है कि लोगों से अपने उन माता-पिता का भी नाम और जन्म तारीख मांगी जा रही है, जो उनके साथ नहीं है। देश में यतीम बच्चों के बारे में इससे सटीक जानकारी मिल सकती है।
एनपीआर की तैयारियों के सिलसिले में प्री सर्वे के दौरान सभी राज्यों में 30 लाख लोगों से यह सवाल पूछे गए थे। सभी ने बिना झिझक इसका जवाब भी दिया। किसी ने भी इस पर आपत्ति नहीं जताई। इसके बजाय अधिकांश लोगों ने सर्वे के दौरान पैन नंबर मांगे जाने पर आपत्ति जताई थी। यही कारण है कि एनपीआर के सवालों की सूची से इसे हटा लिया गया है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पश्चिम बंगाल और केरल सरकार ने जनगणना के लिए लगे कर्मचारियों को कुछ दिनों के लिए इसपर विराम लगाने का निर्देश दिया है। लेकिन इसमें रोकने की बात नहीं है। उन्होंने कहा कि एक अप्रैल से 30 सितंबर के लंबे समय में कभी भी किसी राज्य में एनपीआर कराया जा सकता है। अधिकांश राज्यों ने खुद ही 40-45 दिन का समय इसके लिए तय करके आरजीआइ को बता दिया है।