एनआरसी को धर्म, भाषा के चश्मे से ना देखा जाए- भाजपा

Edited By Yaspal,Updated: 30 Jul, 2018 09:39 PM

nrc can not be seen with religion language goggles  bjp

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आज कहा कि असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मसौदे को धर्म एवं भाषा के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए और लोगों को इस बारे में किसी तरह की अफवाहों एवं अटकलों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

नई दिल्लीः भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आज कहा कि असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मसौदे को धर्म एवं भाषा के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए और लोगों को इस बारे में किसी तरह की अफवाहों एवं अटकलों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

भाजपा के वरिष्ठ प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने एनआरसी के मुद्दे पर कहा कि इसे राजनीति का मुद्दा बनाना गलत है। असम में एनआरसी बनाने का काम उच्चतम न्यायालय के निर्देश एवं उसकी ही निगरानी में हुआ है। यह अभी अंतिम स्वरूप में नहीं है और जो लोग इसमें छूट गये हैं, उनके पास समुचित दस्तावेजों एवं प्रमाणों के साथ पुन: दावा करने या न्यायाधिकरण में जाने का अधिकार है।

हुसैन ने कहा कि कुछ विपक्षी दल इस मुद्दे को भाषा एवं धर्म से जोडऩे की कोशिश कर रहे हैं जो पूरी तरह से गलत है। सरकार किसी के साथ अन्याय नहीं होने देगी और जो भारत के नागरिक हैं, वे यहां के नागरिक बने रहेंगे। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे किसी तरह की अफवाहों एवं अटकलों पर ध्यान नहीं दें। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह आज लोकसभा में स्पष्ट कर चुके हैं कि एनआरसी में अब तक दो करोड़ 89 लाख लोगों के नाम शामिल किये जा चुके हैं। जिनके नाम छूट गये हैं उन्हें 28 अगस्त के बाद बोर्ड में दावे एवं आपत्तियां दर्ज कराने के लिए दो-तीन महीने का समय मिलेगा। इसके बाद भी यदि कोई संतुष्ट नहीं होता है तो वह विदेशी नागरिक न्यायाधिकरण में अपील कर सकता है। उन्हें न्याय जरूर मिलेगा।

भाजपा नेता ने कहा कि 1955 के नागरिकता कानून में भी इस बात का प्रावधान है कि केन्द्र सरकार भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर बनाएगी और हर परिवार एवं व्यक्ति की जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी केन्द्र पर होगी। इस कानून की धारा 14 ए में वर्ष 2004 में संशोधन करके हर नागरिक के लिए खुद को एनआरसी में पंजीकृत अनिवार्य किया गया है। असम के लिए 1951 में एनआरसी बनाया गया था और पिछले तीन वर्षों में उच्चतम न्यायालय की निगरानी में इसे अद्यतन किया गया है।

उन्होंने कहा कि बंगलादेश बनने के बाद 1972 में केन्द्र सरकार ने घोषणा की थी कि 25 मार्च 1971 तक आये बंगलादेशियों को भारत में रहने की इजाजत दी जाएगी और इस तारीख के बाद आये लोगों को वापस भेजा जाएगा। वर्ष 2005 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय एनआरसी को अद्यतन करने का फैसला केन्द्र के स्तर पर हुआ था। असम की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 2015 में इस काम को आरंभ किया था। इससे संबंधित मामला उच्चतम न्यायालय में आने पर यह काम उसकी निगरानी में चला।

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