गिर के जंगल में शेरों की मौत का सिलसिला जारी, 19 दिनों में 21 शेरों की मौत

Edited By shukdev,Updated: 02 Oct, 2018 12:33 AM

number of lions died in the fall

दुनिया में एशियाई शेरों के एकमात्र निवास गुजरात के गिर वन के केवल एक ही हिस्से में पिछले 19 दिनों में 21 शेरों की मौत हो गई है तथा इनमें से कम से कम चार में विषाणु संक्रमण और छह में एक अन्य तरह के संक्रमण की पुष्टि भी हुई है। वन विभाग की ओर से...

अमरेली/गांधीनगर : दुनिया में एशियाई शेरों के एकमात्र निवास गुजरात के गिर वन के केवल एक ही हिस्से में पिछले 19 दिनों में 21 शेरों की मौत हो गई है तथा इनमें से कम से कम चार में विषाणु संक्रमण और छह में एक अन्य तरह के संक्रमण की पुष्टि भी हुई है। वन विभाग की ओर से सोमवार को जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि 12 से 19 सितंबर तक 11 शेरों की मौत अमरेली जिले के दलखनिया रेंज के सरसिया इलाके में तथा 20 से 30 सितंबर तक 10 अन्य शेरों की मौत इलाज के दौरान इस तरह कुल 21 शेरों की मौत हुई है।

नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ वायरोलोजी पुणे की रिपोर्ट में इनमें से चार में विषाणु तथा छह में प्रोटोजोआ संबंधी संक्रमण की पुष्टि हुई है। एहतियात के तौर पर उस क्षेत्र से हटा कर जामवाला के पशु चिकित्सा केंद्र में रखे गए 31 अन्य शेरों को अलग अलग आइसोलेशन में रख कर उनकी निगरानी की जा रही है। इसके लिए बरेली के वेटनरी शोध संस्थान तथा इटावा के बाघ सफारी और दिल्ली जू के विशेषज्ञों की सेवाएं भी ली जा रही हैं। एहतियात के तौर पर अमरीका से कुछ टीके मंगाए जा रहे हैं।

ज्ञातव्य है कि राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र के तीन जिलों गिर सोमनाथ,अमरेली और जूनागढ़ में 1800 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले गिर वन में 2015 में हुई पिछली पांच वर्षीय सिंह गणना के अनुसार शेरों की कुल संख्या 523 थी जो उसे पहले 2010 में हुई ऐसी गणना के 411 की तुलना में करीब 27 प्रतिशत अधिक थी। लंबी चुप्पी के बाद सोमवार को जारी बयान में वन विभाग ने 23 से 29 सितंबर तक चले शेरों की निगरानी संबंधी अभियान के दौरान 3000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में लगभग 600 शेर देखे जाने की बात कही है। शेरों की हालिया मौत के मामले में कुछ समय से चुप्पी साधे राज्य के वन महकमे के सबसे आला अधिकारी हेड ऑफ फारेस्ट्री फोर्स जी के सिन्हा ने कुछ दिन पहले दावा किया था कि अब भी शेरों की संख्या में हर साल कम से कम पांच प्रतिशत का इजाफा हो रहा है।

वन विभाग ने अधिकांश मौतों के लिए दलखानिया रेंज में बाहरी शेरों के घुसने से हुई वर्चस्व की लड़ाई यानी इनफाइट को ही जिम्मेदार बताया था पर इसे लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि इतने बड़े जंगल के केवल एक ही हिस्से में इतने बड़े पैमाने पर इनफाइट क्यों हो रही है। राज्य सरकार पहले दावा कर रही थी कि मौत के लिए किसी तरह का विषाणु या अन्य कारण जिम्मेदार नहीं है पर अब इसने कुछ में वायरस पाए जाने और टीके आदि मंगाने की बात स्वीकार कर लिया है।

ज्ञातव्य है कि गुजरात हाई कोर्ट ने पिछले दो वर्ष में गुजरात में 182 शेरों की मौत की रिपोर्ट आने के बाद राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए रिपोर्ट भी तलब की थी। उधर, राज्य के उपमुख्यमंत्री नीतिन पटेल ने इससे पहले महेसाणा में कहा था कि शेरों की मौत अधिकतर प्राकृतिक कारणों से हुई लगती है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शंकरसिंह वाघेला ने शेरों की मौत के मामले में सरकार पर ढुलमुल रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए इन पर रोक के लिए ठोस कदम उठाने की आज मांग की।

ज्ञातव्य है कि पहले से ही कई विशेषज्ञ केवल एक स्थान पर एशियाई मूल के सभी शेरों को रखने का विरोध करते रहे हैं और इनको अन्य जंगलों में भी स्थानांतरित करने की मांग करते रहे हैं। उनका कहना है कि केवल एक स्थान पर रहने पर किसी तरह की प्राकृतिक आपदा अथवा संक्रामक बीमारी के फैलने पर उनके पूरी तरह से समाप्त हो जाने का खतरा है। इनको मध्य प्रदेश में स्थानांतरित करने का पूर्व का प्रस्ताव राज्य सरकार के विरोध के कारण अदालत में लंबित है। 

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