Edited By Pardeep,Updated: 16 Mar, 2021 05:45 AM
देश में सरकारी बीमार कंपनियों को बेचने से बैंकों और कर्जदाताओं को 2.01 लाख करोड़ रुपए वापस वसूल हो गए हैं। इन बीमार कंपनियों पर बैंकों का जितना कर्ज था, उसमें यह रकम 40 प्रतिशत बनती है। 31 दिसम्बर, 2020 तक भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड के
नई दिल्लीः देश में सरकारी बीमार कंपनियों को बेचने से बैंकों और कर्जदाताओं को 2.01 लाख करोड़ रुपए वापस वसूल हो गए हैं। इन बीमार कंपनियों पर बैंकों का जितना कर्ज था, उसमें यह रकम 40 प्रतिशत बनती है। 31 दिसम्बर, 2020 तक भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड के माध्यम से 317 बीमार कंपनियों को नए खरीदारों को बेच दिया गया।
बोर्ड, जिसकी देखरेख में बीमार कंपनियों को बेचा जाता है, से कहा गया है कि वह 1126 और बीमार कंपनियों को भी बेचने की तैयारी कर ले। 317 कंपनियों की बिक्री से जो 2.01 लाख करोड़ मिले हैं, वे 5.11 लाख करोड़ के दावों का 39.37 प्रतिशत है। इसमें से बड़ा हिस्सा लेनदारों और बैंकों को चला गया जबकि कुछ हिस्सा सरकार की झोली में भी पड़ा। जनवरी 2017 में आई.बी.सी. कोड बनाया गया था जिसके अनुसार बैंक और कर्जदाता दिवालिया हो चुकी कंपनियों को ऋणशोधक (लिक्विडेटर) के पास ले जाते हैं जो उन्हें नियमों के अनुसार नीलाम करवाकर पैसों की वसूली करता है।
जो मालिक कंपनियों को दिवालिया बनने की हालत में पहुंचा देते हैं, उन्हें इस संपत्ति से हाथ धोना पड़ता है। कार्पोरेट मामले मंत्रालय द्वारा संसद में दी गई जानकारी के अनुसार इन बेची गई कंपनियों में वे नामी-गिरामी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां भी शामिल हैं, जो दशकों से पहाड़ बनी खड़ी थीं परंतु आई.बी.सी. कोड आने के बाद कर्जदाताओं को उनका 40 प्रतिशत पैसा मिल गया है। 2020 में 3 लाख ‘पेपर कंपनियों’ को कंपनियों की सूची से हटाया गया। 2020-21 में ऐसी कोई कंपनी सूची से नहीं हटाई गई। मजेदार बात यह कि 331 फर्जी कंपनियों में से 221 कंपनियां इस समय स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हैं और कारोबार भी कर रही हैं।