ऑफ द रिकॉर्ड: नदी जल विवाद विधेयक पर अकाली दल ने ऐसे बचाया चेहरा

Edited By Pardeep,Updated: 10 Aug, 2019 05:49 AM

off the record akali dal saved face on river water dispute bill

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को क्यों दोषी ठहराया जाए जहां पर उनके नेताओं के बीच समन्वय का भारी अभाव है। लोकसभा में क्या होता है? इस बात का पता कई बार राज्यसभा में उसी पार्टी के नेताओं को नहीं होता। इसी तरह की स्थिति का सामना अकाली दल को भी करना...

नेशनल डेस्क: कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को क्यों दोषी ठहराया जाए जहां पर उनके नेताओं के बीच समन्वय का भारी अभाव है। लोकसभा में क्या होता है? इस बात का पता कई बार राज्यसभा में उसी पार्टी के नेताओं को नहीं होता। इसी तरह की स्थिति का सामना अकाली दल को भी करना पड़ा जिसने इसे ‘कम्युनिकेशन गैप’ का नाम दिया।
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शिरोमणि अकाली दल, जोकि भाजपा का एक मुख्य सहयोगी है, अचानक नींद से जागा और अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 सिलैक्ट कमेटी को नहीं भेजने पर भाजपा को सरकार छोड़ने की धमकी देने लगा। खास बात यह है कि यही बिल लोकसभा में बुधवार अर्थात 31 जुलाई को केन्द्रीय खाद्य मंत्री हरसिमरत कौर बादल की उपस्थिति में पास हो गया था जहां पर मंत्री ने न तो इस विधेयक का विरोध किया और न ही उसमें किसी संशोधन का सुझाव दिया।
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इस विधेयक का मकसद वर्तमान में विभिन्न ट्रिब्यूनल्स के स्थान पर एक केन्द्रीय ट्रिब्यूनल बनाकर विभिन्न अंतर्राज्यीय जल विवादों के समाधान में तेजी लाना है जो काफी समय से लम्बित हैं। अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 वर्तमान ट्रिब्यूनलों के नदी जल विवादों को समयबद्ध तरीके से सुलझाने मेें असफल रहने के परिणामस्वरूप लाया गया है। इस तरह के विवादों को सुलझाने के लिए बनाए गए 9 ट्रिब्यूनलों मेें से केवल 4 ने ही फैसले दिए हैं तथा इसके लिए उन्होंने 7 से 28 वर्ष तक का समय लगा दिया। यह जानकारी जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने संसद में दी। अनसुलझे बड़े विवादों में एक विवाद ब्यास नदी संबंधी है जोकि पिछले 33 वर्षों से फैसले के इंतजार में है। इसके अलावा कावेरी विवाद 29 वर्ष से लम्बित है। 
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अन्य नदियों कृष्णा, नर्मदा तथा गोदावरी के मामले भी चर्चा में रहे हैं। जब इस विधेयक को राज्यसभा में सोमवार के लिए सूचीबद्ध किया गया तो अकाली दल ने इसका जबरदस्त विरोध किया। पार्टी के नरेश गुजराल ने इसकी गंभीरता को समझा और नेतृत्व के पास पहुंचे। अकाली दल का कहना है कि केन्द्र पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारे संबंधी विवाद को सुलझाने की शक्तियां उनसे छीन लेगा। जब यह पूछा गया कि अकाली दल ने लोकसभा में पास करते समय इस विधेयक का विरोध क्यों नहीं किया तो एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना था कि तब इसका महत्व नहीं समझा गया था। 
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अब इस विधेयक की धारा 12 पंजाब के लिए बहुत खतरनाक है और ‘‘हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते।’’ उनकी किस्मत अच्छी थी कि सरकार सोमवार को राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर से संबंधित विधेयक ले आई और अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद विधेयक को अगले सत्र तक के लिए टाल दिया गया।

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