ऑफ द रिकॉर्ड: दीवाली का उपहार या लॉलीपॉप?

Edited By Pardeep,Updated: 27 Oct, 2019 03:52 AM

off the record diwali gift or lollipop

मोदी सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 1797 अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने के प्रस्ताव को बड़े जोर-शोर से स्वीकृति देने की घोषणा की है। इन अनधिकृत कॉलोनियों में अधिकांश लोग कम आय ग्रुपों से संबंधित हैं। यह सब कुछ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद...

नेशनल डेस्क: मोदी सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 1797 अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने के प्रस्ताव को बड़े जोर-शोर से स्वीकृति देने की घोषणा की है। इन अनधिकृत कॉलोनियों में अधिकांश लोग कम आय ग्रुपों से संबंधित हैं। 

यह सब कुछ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बढ़ रही लोकप्रियता का मुकाबला करने और अगले वर्ष विधानसभा चुनावों की लड़ाई में भाजपा को एक बार फिर आगे लाने की कोशिश में किया गया है। इसी तरह की घोषणा 2007 में की गई थी जब दिल्ली के ‘मास्टर प्लान’ को अधिसूचित किया गया था। कालोनियों की सीमाओं को निर्धारित करने का एक सर्वेक्षण भी कराया गया था मगर यह ‘बोली’ गिर गई। 

रोचक बात यह है कि तब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र में कांग्रेस सरकार थी और स्वर्गीय श्रीमती शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली की कांग्रेस सरकार थी। सर्वेक्षण का बोझ अधिकांश रूप से दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग पर पड़ा और आंशिक रूप से भाजपा के नेतृत्व में नगर निगमों पर डाला गया। ऐसे बढ़ रहे समझौतों के कारण से ये सर्वेक्षण कभी भी लागू नहीं हुए। मौजूदा समय में संगम विहार में ऐसे 7-8 अधिकृत ब्लॉक हैं। 

2008 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर शीला दीक्षित ने 1,218 ऐसी कॉलोनियों को ‘प्रोविजनल सर्टीफिकेट’ दिए थे मगर 2 वर्ष बाद केवल 895 कॉलोनियों को ही नियमित करने के योग्य बताया गया था। ऐसे नियम अभी तैयार किए जाने हैं कि इन कॉलोनियों में सड़कें बनाने का काम किस एजैंसी को दिया जाएगा। यह भी फैसला किया जाना है कि मार्ग का रास्ता कैसे विकसित किया जाएगा और इन कामों के लिए फंड का प्रबंध कैसे किया जाएगा। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ क्योंकि डी.डी.ए. और दिल्ली सरकार के पास टाऊन प्लानिंग विभाग ही नहीं है। 

इस बात में शक नहीं कि यह एक नई शुरूआत है और अब यह देखना होगा कि केंद्र में शहरी मामलों के मंत्री हरदीप पुरी और केजरीवाल सरकार मिलकर इस योजना को कैसे लागू करते हैं। मौजूदा समय में मालिकाना अधिकार के लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं। अब सरकार अलग ही नियम बनाएगी और ऐसे विवादों से निपटने के लिए ट्रिब्यूनल कायम किया जाएगा। यह बात इस काम से जुड़े एक विशेषज्ञ ने कही। दिल्ली के नगर निगम मौजूदा समय में भाजपा के अधीन हैं और वे सम्पत्तियों के पंजीकरण के बदले में एकत्रित धन से अपना राजस्व बढ़ाने में जुटेंगे मगर अभी तक पंजीकरण की राशि को अंतिम रूप नहीं दिया गया क्योंकि सार्वजनिक और निजी भूमि पर आम सहमति नहीं बन पाई।

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