ऑफ द रिकॉर्ड: मुश्किल में जयराम रमेश

Edited By Pardeep,Updated: 07 Sep, 2019 05:16 AM

off the record jairam ramesh in trouble

ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश की इन दिनों पार्टी नेतृत्व से अनबन चल रही है। रमेश की कई बातें पार्टी को नागवार गुजरी हैं जिनमें कुछ दिन पहले जयराम द्वारा पार्टी को दी गई यह सलाह भी शामिल है कि मोदी को एक बुरे...

नेशनल डेस्क: ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश की इन दिनों पार्टी नेतृत्व से अनबन चल रही है। रमेश की कई बातें पार्टी को नागवार गुजरी हैं जिनमें कुछ दिन पहले जयराम द्वारा पार्टी को दी गई यह सलाह भी शामिल है कि मोदी को एक बुरे व्यक्ति के तौर पर प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए।
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उनकी इस टिप्पणी से पार्टी में नाराजगी है क्योंकि इस टिप्पणी को उनके दृष्टिकोण में बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। वह पिछले कुछ महीनों से इस तरह का राग अलाप रहे हैं। इससे पहले उन्होंने नरेन्द्र मोदी की तुलना इंदिरा गांधी से की थी और यहां तक कहा था कि एमरजैंसी लगाना तानाशाही भरा कदम था लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ऐसा कभी नहीं करेंगे। रमेश ने कहा था कि जो इंदिरा गांधी ने किया वैसा मोदी नहीं करेंगे। 
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रमेश का मानना था कि मोदी केवल एक हिन्दू राष्ट्रवादी हैं और उन्हें फासीवादी कहना ‘‘खतरनाक रूप से गैर जिम्मेदाराना’’ होगा। उन्होंने कांग्रेस के लोगों को यह संदेश देने की कोशिश की कि इस तरह की आलोचना का मतलब है वर्तमान राजनीति की समझ न होना। इसलिए यदि अब कांग्रेस जयराम को नजरअंदाज कर रही है तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है। वे दिन गुजर गए जब जयराम रमेश को चुनावों की रणनीति बनाने वाले वार रूम का प्रभारी बनाया जाता था।
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पता चला है कि भाजपा नेताओं ने जयराम रमेश को अहमियत देनी शुरू कर दी है। उन्हें अक्सर भाजपा नेताओं अरुण जेतली, भूपिंद्र यादव और पीयूष गोयल के साथ देखा जाता था। हालांकि वह भाजपा में जाने की सलाह को सिरे से खारिज करते रहे हैं और यह कहते रहे हैं कि कांग्रेस से मतभेद होने का मतलब यह नहीं कि वह दल बदलना चाहते हैं लेकिन उनके इस तर्क को मानने के लिए लोग तैयार नहीं हैं। 
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दरअसल, जयराम ने मई 2019 में लोकसभा चुनाव में हुई पार्टी की करारी हार के बाद यह राग अलापना शुरू किया। राहुल गांधी उनसे काफी नाराज हैं क्योंकि वह कांग्रेस वार रूम का हिस्सा होने के नाते चुनावी रणनीति में अहम भागीदार रहे हैं। चुनावी रणनीति बनाने में उनका काफी योगदान रहा है। अब वह कहते हैं कि राहुल गांधी लोकतांत्रिक तरीके से काम करते हैं और वह विरोधी विचारों को खारिज नहीं करते। बहरहाल जयराम रमेश के राजनीतिक भविष्य बारे अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी लेकिन यह स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में उन्हें दरकिनार किया जाएगा। 

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