ऑफ द रिकार्ड: आसान नहीं है प्रियंका की राह

Edited By Pardeep,Updated: 29 Jan, 2019 04:32 AM

off the record priyanka s path is not easy

पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रियंका की एंट्री कैटवॉक नहीं बल्कि शेर की मांद में बारहसिंगा जैसी है। प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिन 33 सीटों का जिम्मा सौंपा गया है उन पर कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनाव में बहुत ही बुरी तरह से पराजित हुई थी। यदि...

नेशनल डेस्क: पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रियंका की एंट्री कैटवॉक नहीं बल्कि शेर की मांद में बारहसिंगा जैसी है। प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिन 33 सीटों का जिम्मा सौंपा गया है उन पर कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनाव में बहुत ही बुरी तरह से पराजित हुई थी।
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यदि किसी को यह लगता है कि प्रियंका गांधी को उनके भाई राहुल ने ईनाम दिया है या इस नियुक्ति को फूलों की सेज समझता है तो वह गलत है। यह एक बहुत ही चालाक व चतुर राजनीतिक चाल है। गांधी का वंशज यह भली-भांति जानता है कि अब उसे यह लड़ाई अकेले ही लड़नी है। 
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आखिरकार पार्टी ने प्रियंका को उस मैदान में उतार दिया जहां गुलाम नबी आजाद व अन्य कांग्रेसी दिग्गज 3 दशकों से कांग्रेस को उबार नहीं पाए। सपा-बसपा द्वारा कांग्रेस को केवल 2 सीटें अमेठी व रायबरेली छोड़ने के बाद ही राहुल ने यू.पी. में अपनी बहन प्रियंका को पूर्वी यू.पी. व अपने खास और विश्वस्त ज्योतिरादित्या सिंधिया को पश्चिमी यू.पी. की कमान सौंपी है। पश्चिमी यू.पी. में बुंदेलखंड, रूहेलखंड जैसे इलाके आते हैं जहां लोकसभा की करीब 30 सीटें आती हैं। 
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गौरतलब है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने यू.पी. में 21 लोकसभा सीटें जीती थीं तब 15 सीटें पूर्वांचल से ही आई थीं। वर्तमान में पश्चिमी यू.पी. में कांग्रेस का वोट शेयर 10 फीसदी है जबकि पूर्वी यू.पी. में 4.90 फीसदी है। कांग्रेस 2014 में 80 में से 67 सीटों पर ही चुनाव लड़ी थी। इस बार भी कांग्रेस के वल 25 सीटों पर ही फोकस करने जा रही है।

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