ऑफ द रिकॉर्ड: दुविधा में शिवसेना

Edited By Pardeep,Updated: 13 Sep, 2019 05:23 AM

off the record shiv sena in dilemma

शिवसेना इस समय बड़ी दुविधा में है क्योंकि भाजपा नेतृत्व महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए सीट शेयरिंग डील के तहत उसे विधानसभा की  कुल  288  में  से 120 से अधिक सीटें नहीं देना चाहती। लोकसभा चुनाव से पहले जब भाजपा और शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं के बीच...

नेशनल डेस्क: शिवसेना इस समय बड़ी दुविधा में है क्योंकि भाजपा नेतृत्व महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए सीट शेयरिंग डील के तहत उसे विधानसभा की  कुल  288  में  से 120 से अधिक सीटें नहीं देना चाहती। 
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लोकसभा चुनाव से पहले जब भाजपा और शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं के बीच बातचीत हुई थी तो सेना के नेताओं को 50:50 सीटों का वायदा किया गया था। इस समझौते के तहत सेना ने लोकसभा की 23 जबकि भाजपा ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ा। उस समय यह रेखांकित किया गया था कि भाजपा केन्द्र में बड़े भाई की भूमिका में रहेगी जबकि राज्य में सेना को मुख्य स्थान दिया जाएगा। अनौपचारिक तौर पर इस बात पर भी चर्चा हुई थी कि 50:50 सीट शेयरिंग डील के तहत जो भी पार्टी विधानसभा चुनावों में ज्यादा सीटें जीतेगी उसी को मुख्यमंत्री का पद मिलेगा लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद सब कुछ बदल गया। 
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भाजपा अध्यक्ष और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सेना के नेताओं को कहा है कि विधानसभा चुनावों के लिए सीट शेयरिंग को लेकर समझौते पर फैसला महाराष्ट्र के भाजपा नेता और मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस करेंगे तथा हाईकमान की इसमें कोई भूमिका नहीं रहेगी। निराश शिवसेना ने अब चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को हायर किया है। हालांकि सेना ने लोकसभा चुनावों के दौरान भी किशोर से सलाह ली थी लेकिन उस दौरान उनकी कोई विशेष भूमिका नहीं रही। मगर किशोर हर उस व्यक्ति की मदद के लिए तैयार हैं जो उनकी सेवाएं लेना चाहता है-चाहे वे नीतीश कुमार हों या ममता बनर्जी, अमरेन्द्र सिंह हों या उद्धव ठाकरे। 
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किशोर ने मुम्बई में ठाकरे से मुलाकात की थी जहां साथ मिलकर काम करने का फैसला लिया गया था। किशोर शिवसेना के सांसदों से भी मिले थे जिन्हें ठाकरे ने बुलाया था। यह पहली बार है कि सेना विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव योजना और सर्वे करवाने के लिए किसी निजी रणनीतिकार की सहायता ले रही है। इससे पहले सेना जमीन पर जनता का मूड भांपने के लिए अपनी यूनियन, स्थानीय लोकाधिकार समिति तथा यूथ विंग युवा सेना पर निर्भर रहती थी। 
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भाजपा द्वारा उसे 120 से अधिक सीटों की पेशकश न करने की स्थिति में वह अकेली नहीं पडऩा चाहती। भाजपा तो सेना को उपमुख्यमंत्री का पद देने के मूड में भी नहीं है। बहरहाल किशोर सेना प्रमुख को यह भी सलाह दे रहे हैं कि उनके बेटे आदित्य ठाकरे को चुनाव लडऩा चाहिए अथवा कुछ और समय इंतजार करना चाहिए।

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