आर्टिकल 35-ए की बहस में कूदा पाकिस्तान, मोदी के 10,000 सैनिकों की तैनाती के फैसले पर उठाए सवाल

Edited By Tanuja,Updated: 01 Aug, 2019 05:10 PM

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एक सनसनीखेज घटनाक्रम में पाकिस्तान ने कश्मीर मामले में पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और एन सी के प्रधान ...

इस्लामाबादः  एक सनसनीखेज घटनाक्रम में पाकिस्तान ने कश्मीर मामले में PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती और NC के प्रधान फारुक अब्दुला के सुर के सुर मिला लिया है। एक प्रैस कांफ्रैंस को संबोधित करते हुए  पाक के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने जम्मू कश्मीर के लिए भारत सरकार द्वारा लिए गए आंतरिक फैसलों पर सवाल उठाया। इमरान सरकार के मंत्री कुरैशी ने सुरक्षा कारणों से कश्मीर में 10,000 अतिरिक्ति जवानों की तैनाती को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले पर न सिर्फ प्रश्न उठाया बल्कि  आर्टिकल 35A पर मुफ्ती और अब्दुल्ला का पक्ष भी लिया।

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कुरैशी ने घाटी में सुरक्षा पर सवाल उठाते  कहा कि यहां 10,000 अतिरिक्ति जवानों की तैनाती क्या आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर सर्वदलीय वार्ता चल रही है। गौरतलब है कि इस मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर में जो पार्टियां कभी गठबंधन सरकार में  शामिल थीं, ने अब केंद्र की नीतियों से खुद को न सिर्फ दूर कर लिया है बल्कि वो केंद्र के खिलाफ आवाज उठा रहीं हैं। स्थानीय पार्टियों में असंतोष फैला है। महबूबा ने भाजपा के बिना सभी पार्टियों की कांफ्रैंस बुलाई है। 

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क्या है अनुच्छेद 35ए
भारतीय संविधान का आर्टिकल 35A वो विशेष व्यवस्था है, जो जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा परिभाषित राज्य के मूल निवासियों (परमानेंट रेसीडेंट) को विशेष अधिकार देती है। इस आर्टिकल को मई 1954 में विशेष स्थिति में दिए गए भारत के राष्ट्रपति के आदेश से जोड़ा गया था। 35A भी उसी विवादास्पद आर्टिकल 370 का हिस्सा है, जिसके जरिए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है। 17 नवंबर 1956 को अस्तित्व में आए जम्मू और कश्मीर संविधान में मूल निवासी को परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक वही व्यक्ति राज्य का मूल निवासी माना जाएगा, जो 14 मई 1954 से पहले राज्य में रह रहा हो, या जो 10 साल से राज्य में रह रहा हो और जिसने कानून के मुताबिक राज्य में अचल संपत्ति खरीदी हो। सिर्फ जम्मू-कश्मीर विधानसभा ही इस अनुच्छेद में बताई गई राज्य के मूल निवासियों की परिभाषा को दो तिहाई बहुमत से कानून बनाते हुए बदल सकती है।

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35A के अंतर्गत मूल निवासियों को मिले अधिकार

  • इस आर्टिकल के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के बाहर का कोई व्यक्ति राज्य में ना तो हमेशा के लिए बस सकता है और ना ही संपत्ति खरीद सकता है।
  • जम्मू-कश्मीर के मूल निवासी को छोड़कर बाहर के किसी व्यक्ति को राज्य सरकार में नौकरी भी नहीं मिल सकती।
  • बाहर का कोई व्यक्ति जम्मू-कश्मीर राज्य द्वारा संचालित किसी प्रोफेशनल कॉलेज में एडमिशन भी नहीं ले सकता और ना ही राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली कोई मदद ले सकता है।
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  • राज्य की कोई महिला बाहर के किसी व्यक्ति से शादी करती है तो राज्य में मिले उसे सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं।
  • लेकिन राज्य का कोई पुरुष अगर बाहर की किसी महिला से शादी करता है, तो उसके अधिकार खत्म नहीं होते। उस पुरूष के साथ ही उसके होने वाले बच्चों के भी अधिकार कायम रहते हैं।
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  • संविधान में ये भी बताया गया कि सिर्फ जम्मू-कश्मीर विधानसभा ही राज्य के मूल निवासियों की परिभाषा को दो तिहाई बहुमत से कानून बनाते हुए बदल सकती है।
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शर्तों के साथ भारत से मिला था जम्मू-कश्मीर
1947 में जब भारत और पाकिस्तान अलग हुए थे, उस वक्त जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने दोनों में से किसी भी देश में शामिल ना होकर अलग देश के रूप में रहने का फैसला किया था। लेकिन इसी बीच पाकिस्तानी सेना ने पश्तून कबाइलियों के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया, जिसके बाद हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद मांगी। इसके बाद दोनों के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर के रक्षा, संचार और विदेश मामलों से जुड़े फैसले लेने का अधिकार भारत के पास आ गया। 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर का विलय भारत के साथ हुआ था। 1950 में भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे के साथ शामिल कर लिया गया।
 

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