पाकिस्तान की अगली संसद ‘त्रिशंकु’ होगी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 May, 2018 02:29 AM

pakistan s next parliament will be  hung

पाकिस्तान में बेशक आम चुनाव सिर पर आ गए हैं तो भी देश अनिश्चितता की लहर की जकड़ में फंसा हुआ है। संविधान के अनुसार 5 जून को जैसे ही नैशनल और प्रादेशिक असैम्बिलयों का 5 वर्ष का कार्यकाल समाप्त होगा तो 60 दिन के अंदर-अंदर चुनाव करवाने जरूरी हैं।

नेशनल डेस्कः पाकिस्तान में बेशक आम चुनाव सिर पर आ गए हैं तो भी देश अनिश्चितता की लहर की जकड़ में फंसा हुआ है। संविधान के अनुसार 5 जून को जैसे ही नैशनल और प्रादेशिक असैम्बिलयों का 5 वर्ष का कार्यकाल समाप्त होगा तो 60 दिन के अंदर-अंदर चुनाव करवाने जरूरी हैं। बेशक कोई भी ऐसा नहीं मानता कि चुनाव बिल्कुल होंगे ही नहीं तो भी बहुत कम लोग इस बात से सहमत हैं कि चुनाव समय पर करवाए जाएंगे। वैसे भी नई जनगणना के अनुसार हलकाबंदी की समस्या अभी तक लटकी पड़ी है। बहुत से विधानकारों द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि उनके क्षेत्रों को कुछ इस तरह तोड़ा-मरोड़ा गया है जो व्याख्या से परे है इसलिए इनकी नई हलकाबंदी होनी चाहिए। यही कारण है कि सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कुछ सप्ताह पूर्व मीडिया हस्तियों के साथ अपनी मुलाकात में तकनीकी आधार पर कुछ विलम्ब होने का संकेत दिया था।

नवाज शरीफ की पार्टी को बनाया जा रहा है निशाना
लेकिन तकनीकी कारणों के अलावा कुछ अन्य बातें भी हैं जिनकी अब तक परिकल्पना नहीं की गई। चुनाव से पूर्व जिस प्रकार राजनीतिक कतारबंदियों में लगातार बदलाव आ रहा है उससे ये आशंकाएं पैदा हुईं कि ‘राजनीतिक इंजीनियरिंग’ बहुत सोचे-समझे एजैंडे के अनुसार परिचालित की जा रही है। यह स्पष्ट है कि इस सारी साजिश में सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज यानी पी.एम.एल.-एन. को ही निशाना बनाया जा रहा है। ऐसी रिपोर्टें भी मिल रही हैं कि सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ विधानकार पाला बदलने को लालायित हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि वे अपने ‘हैंडलर’ की ओर से केवल उपयुक्त सिग्रल की ही प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह बात तो हमारी राजनीतिक संस्कृति में गहराई तक रची-बसी हुई है कि सभी पार्टियों के संभावी विधानकारों की काफी बड़ी संख्या जीतने वाले गुट की ओर ही जाना चाहती है। यह बात तो अब अधिक से अधिक स्पष्ट होती जा रही है कि आगामी चुनाव में पी.एम.एल.-एन.  के गले में विजयश्री की माला नहीं पडऩे वाली। जो बहुत आसानी से किसी पाले में आते हैं, उतनी ही आसानी से इसमें से चलते भी बनते हैं। जो लोग पी.एम.एल.-एन. को छोड़ गए हैं या छोडऩे को तैयार बैठे हैं उनमें से अधिकतर चुनाव जीतने की संभावना रखते हैं। इन लोगों ने बहती गंगा में हाथ धोने के लिए ही या तो पी.एम.एल.-क्यू. के सदस्यों के रूप में या स्वतंत्र विधानकारों के रूप में सत्तारूढ़ पार्टी का दामन थामा था।

बेनजीर इन्कम सपोर्ट प्रोग्राम (बी.आई.एस.पी.) के अंतर्गत सुविधाओं का सुख ले रही मारवी मैमन को अचानक ही यह बोध हो गया है कि पी.एम.एल.-एन. के अंदर तो चापलूसी की संस्कृति का बोलबाला है। उन्हें इस ‘ब्रह्मज्ञान’ की अनुभूति होने में 4 वर्षों की लंबी अवधि लग गई। इससे पहले सुश्री मारवी मैनन अपने पूर्व बॉस जनरल परवेज मुशर्रफ की चापलूसी भी ऐसी ही हठधर्मी से करती रही हैं।

इमरान खान ने खोल रखे हैं दल बदलुओं के लिए दरवाजे
ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के इन नए दल-बदलुओं की पहली पसंद पी.टी.आई. (पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ) ही है क्योंकि आमतौर पर ऐसा माना जा रहा है कि यही पार्टी नए हुक्मरान के रूप में उभर रही है। इस पार्टी का दामन थामने वाले सबसे ताजा-तरीन राजनीतिज्ञ नदीम अफजल चन्न हैं जो पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पी.पी.पी.) के एक पुराने और दिग्गज नेता हैं। पी.टी.आई. के प्रमुख इमरान खान ने हर प्रकार के दल-बदलुओं के लिए अपनी पार्टी के दरवाजे खोल रखे हैं। उन्होंने तो ई.एम.एल.एन. के असंतुष्ट दिग्गज नेता निसार अली खां को भी अपनी पार्टी में शामिल होने का न्यौता दिया है। इमरान तो चाहते हैं कि मख्दूम खुसरो बख्तियार के नेतृत्व वाला ‘जनूबी सूबा महाज’ भी पी.टी.आई. का सहयोगी बन जाए लेकिन रहीम यार खान इलाके का यह दिग्गज राजनीतिज्ञ मूल रूप में व्यवस्थावादी व्यक्ति है इसलिए वह असली शासकों की मर्जी के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाएगा।

कुछ भी हो, ऐसी पृष्ठभूमि में यह कहना असंगत नहीं कि चुनाव पूर्व दौर की राजनीति न्यूनतम संभावी स्तर तक गिर गई है। हर कोई सत्ता के अंगूरों का गुच्छा हथियाना चाहता है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हर हथकंडा न्यायोचित बन गया है।

जहां तक पी.एम.एल.-एन. का संबंध है, उसने जो बोया था वही काट रही है। ये लोग सत्ता का सुख भोगने के लिए ही शरीफ बंधुओं की कतार में शामिल हुए थे और जिन लोगों के कहने पर वे सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल हुए थे, उन्हीं के प्रोत्साहन से वे अब इसे अलविदा कह रहे हैं।

नवाज शरीफ ने पूरी लोकतांत्रिक प्रणाली को पंगु बनाने का किया प्रयास
फिर भी सरकार गठित करने के लिए जो परिदृश्य संघीय स्तर पर उभर रहा है, वह एक ऐसा जूता है जो किसी भी दावेदार के पांव पर फिट नहीं बैठेगा क्योंकि अगली संसद यानी नैशनल असैंबली त्रिशंकु होगी जिसमें किसी एक पार्टी के पास निर्णायक बहुमत नहीं होगा। पाकिस्तान का असली शासक सैन्य तंत्र ऐसा मानता है कि निर्णायक बहुमत हासिल करने के बावजूद पी.एम.एल.-एन. जैसी पाॢटयों ने व्यवस्था का कबाड़ा कर दिया है।  1999 में जनरल मुशर्रफ द्वारा पदच्युत किए जाने तक शरीफ पर भी यह भूत सवार था कि उसे बहुत भारी जनादेश मिला है। इसी अहंकार में नवाज शरीफ ने पूरी लोकतांत्रिक प्रणाली को पंगु बनाने का प्रयास किया था ताकि वह खुद को ‘अमीर-उल-मोमिनीन’ (धर्मपरायण मुस्लिमों का सेनापति) घोषित कर सके। यह एक अलग बात है कि सैन्य नेतृत्व ने उनके सपनों की कोंपलें फूटने से पहले ही मसल डालीं।

अबकी बार शरीफ ने संसद को ही दरकिनार करने की हिमाकत की जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार उन्हें बहुत बे-आबरू होकर सत्ता से बाहर होना पड़ा। परिणाम यह हुआ कि अब एक दोगली व्यवस्था की युक्ति लड़ाई जा रही है। इस व्यवस्था में कोई भी निॢववाद विजेता नहीं बन पाएगा। हालांकि पी.एम.एल.-एन. अभी भी बहुत मजबूत पार्टी है और पदच्युत होने के बाद नवाज शरीफ ने अपने पत्ते बहुत होशियारी से खोले हैं और गत लगभग एक वर्ष दौरान अपनी सभी रैलियों और उप चुनावों के माध्यम से उन्होंने बहुत शानदार शक्ति प्रदर्शन किया है।

शरीफ के छोटे भाई शाहबाज शरीफ अगले चुनाव में प्रधानमंत्री के पद के दावेदार हैं। बेशक उनका राजनीतिक करियर बेदाग है और वह व्यवस्थावादी तथा नतीजे दिखने वाले राजनीतिज्ञ हैं तो भी सब कुछ उनके इरादों के अनुसार होने वाला नहीं। असली चक्र पी.टी.आई. और पी.एम.एल.-एन के बीच ही है। ऐसी रिपोर्टें मिली हैं कि पी.टी.आई. अगले चुनावों में सत्तासीन होने के लिए बहुत जबरदस्त सौदेबाजी कर रही है। लेकिन यदि चुनावी प्रक्रिया में कोई छेड़छाड़ होती है तो इसके नतीजे पाकिस्तान के लिए बहुत विनाशकारी होंगे।- पाकिस्तान की चिट्ठी आरिफ निजामी  (मंदिरा पब्लिकेशन)

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