Edited By Monika Jamwal,Updated: 12 Nov, 2018 12:09 PM
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि कश्मीर के मुद्दे पर अगर बातचीत के प्रयासों को आगे बढ़ाना है तो उससे पहले पाकिस्तान को भारत की वाजिब चिंताओं को समझना चाहिए।
श्रीनगर : नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि कश्मीर के मुद्दे पर अगर बातचीत के प्रयासों को आगे बढ़ाना है तो उससे पहले पाकिस्तान को भारत की वाजिब चिंताओं को समझना चाहिए। उमर ने कहा कि जब तक हम अपनी चुनाव प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, मुझे लगता है कि पाकिस्तान को भारत की वाजिब चिंताओं को समझने के लिए थोड़ा सोचने करने की जरूरत है। भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों के बदलते आयाम के संबंध में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज (आईआईएसएस) की ओर से आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने गए पूर्व मुख्यमंत्री उमर ने कहा कि लश्कर-ए-तोयबा के संस्थापक हाफिज सईद को खुला घूमने की छूट देने का पाकिस्तान सरकार का फैसला दोनों देशों के बीच बेहद महत्वपूर्ण विश्वास बहाली के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है।
अब्दुल्ला ने कहा कि कश्मीर पर 20 डाक टिकटें जारी करने का इमरान खान सरकार का हालिया फैसला ऐसे में मददगार साबित नहीं होगा, क्योंकि वे विश्वास बढ़ाने के लिए कदम उठाने के बजाय विश्वास तोडऩे का काम कर रहे हैं। पाकिस्तान ने कश्मीरी आतंकवादी बुरहान वानी और अन्यों का महिमामंडन करने वाली कुछ 20 डाक टिकटें जारी कीं। यह बहुत बड़ी वजह थी जिसके चलते सितंबर में न्यूयॉर्क में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की बैठक को भारत ने स्थगित कर दिया था। उमर ने कहा कि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी है। पाकिस्तान के साथ हमारी जो भी चिंताएं होंए हमने स्वीकार किया है कि युद्ध कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में हमारे पास बातचीत ही एकमात्र विकल्प है। हमें बातचीत के जरिए अपने मतभेद सुलझाने होंगे, लेकिन उसके लिए किसी स्तर पर पाकिस्तान की चिंताओं को भी समझना होगा।
उमर ने भारत सरकार और जम्मू-कश्मीर में उनके प्रतिनिधि राज्यपाल सत्यपाल मलिक और जम्मू-कश्मीर के युवाओं के बीच संवाद की कमी की भी आलोचना की। उनका कहना है कि जितनी जल्दी संभव हो, इस खाई को पाटना जरूरी है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के युवा 1990 के दशक की शुरुआत से कहीं ज्यादा अब अलग-थलग पड़ गए हैं। पढ़े-लिखे युवा और सुरक्षित नौकरियों वाले लोग आतंकवादी खेमे में शामिल हो रहे है। यह बेहद चिंता का विषय है।