जन्मदिन विशेष: आजादी के जिस मतवाले से अंग्रेज भी खाते थे खौफ

Edited By Anil dev,Updated: 23 Jul, 2018 01:12 PM

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23 जुलाई, 1906 को एक आदिवासी ग्राम भाबरा में जन्मे अमर शहीद पंडित चंद्रशेखर आजाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। काकोरी ट्रेन डकैती और साण्डर्स की हत्या में शामिल महान देशभक्त एवं क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद...

नई दिल्ली: 23 जुलाई, 1906 को एक आदिवासी ग्राम भाबरा में जन्मे अमर शहीद पंडित चंद्रशेखर आजाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। काकोरी ट्रेन डकैती और साण्डर्स की हत्या में शामिल महान देशभक्त एवं क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद बचपन में महात्मा गांधी से प्रभावित थे।
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14 साल की उम्र में हुए गिरफ्तार
दिसंबर 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन के दौरान मात्र चौदह वर्ष के बालक चंद्रशेखर हिस्सा लिया और अपनी गिरफ्तारी दी। 1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन के स्थगित होने पर चंद्रशेखर बहुत आहत हुए। उन्होंने देश का स्वंतत्र करवाने की मन में ठान ली। एक युवा क्रांतिकारी ने उन्हें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन क्रांतिकारी दल के संस्थापक राम प्रसाद बिस्मिल से परिचित करवाया और बिस्मिल ने उन्हें अपनी संस्था का सक्रिय सदस्य बना लिया। चंद्रशेखर आजाद अपने साथियों के साथ संस्था के लिए धन एकत्रित करते थे। इनमें से अधिकतर धन अंग्रेजी सरकार से लूट कर एकत्रित किया जाता था।
 

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चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह
1925 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की गई थी। 1925 में काकोरी कांड के फलस्वरूप अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल सहित कई अन्य मुख्य क्रांतिकारियों को मृत्यु-दंड दिया गया था। इसके बाद चंद्रशेखर ने इस संस्था का पुनर्गठन किया। भगवतीचरण वोहरा के संपर्क में आने के पश्चात चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के भी निकट आ गए। भगत सिंह के साथ मिलकर चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजी हुकूमत को भयभीत करने और भारत से खदेडऩे का हर संभव प्रयास किया।

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चंद्रशेखर आजाद का आत्म-बलिदान
फरवरी 1931 में जब चंद्रशेखर आजाद और सुखदेव राज एल्फ्रेड पार्क में आगामी योजनाओं के विषय पर विचार-विमर्श कर रहे थे। तभी पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। आजाद ने सुखदेव को तो भगा दिया, परंतु खुद अंग्रेजों का अकेले ही सामना करते रहे। दोनों ओर से गोलीबारी हुई लेकिन जब चंद्रशेखर के पास मात्र एक ही गोली शेष रह गई तो उन्हें पुलिस का सामना करना मुश्किल लगा। चंद्रशेखर आजाद ने यह प्रण लिया हुआ था कि वह कभी भी जीवित पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। इसी प्रण को निभाते हुए एल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को उन्होंने वह बची हुई गोली स्वयं पर दाग के आत्म बलिदान कर लिया।

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आजाद से खौफ खाती थी पुलिस
पुलिस के अंदर चंद्रशेखर आजाद का भय इतना था कि किसी को भी उनके मृत शरीर के के पास जाने तक की हिम्मत नहीं थी। उनके मृत शरीर पर गोलियां चलाकर पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही चंद्रशेखर की मृत्यु की पुष्टि की गई। बाद में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जिस पार्क में उनका निधन हुआ था उसका नाम परिवर्तित कर चंद्रशेखर आजाद पार्क और मध्य प्रदेश के जिस गांव में वह रहे थे उसका धिमारपुरा नाम बदलकर आजादपुरा रखा गया। 

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