हाल-ए-कश्मीर: आशा और आशंका के बीच उलझे लोग, भविष्य को लेकर बदली राय

Edited By vasudha,Updated: 17 Sep, 2019 03:44 PM

people entangled between hope and apprehension

जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए के समाप्त होने के बाद जम्मू और लद्दाख में लोगों में खुशी और आशा की भावना है लेकिन कश्मीर घाटी सहमी-सी है...

नेशनल डेस्क: जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए के समाप्त होने के बाद जम्मू और लद्दाख में लोगों में खुशी और आशा की भावना है लेकिन कश्मीर घाटी सहमी-सी है। लोगों में अजीब-सा खौफ कायम है लेकिन उसी के बीच आकांक्षाओं के अंकुर भी फूटने लगे हैं। अनुच्छेद 370 की धारा दो और तीन तथा 35 ए के समाप्त होने के एक माह बाद ज़मीनी हालात का जायजा लेने के लिए नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) के नेतृत्व में विभिन्न मीडिया संस्थानों के पत्रकारों के तीन प्रतिधिनिधिमंडलों ने जम्मू, लद्दाख एवं कश्मीर घाटी का दौरा किया।

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देश के राजनीतिक गलियारों में कश्मीर घाटी को लेकर प्रचारित बातों का ज़मीनी आकलन करने पर अनेक दिलचस्प पहलू सामने आये। प्रतिनिधिमंडल ने जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक से भी मुलाकात की और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। पूरे जम्मू कश्मीर और लद्दाख में समग्रता से देखा जाये तो ये इलाका बदलाव और उम्मीद की एक नई करवट ले रहा है। जम्मू में विकास की नई उम्मीद जागी है जबकि जम्मू कश्मीर से अलग केंद्र शासित राज्य बनने को लेकर लद्दाख में आम आदमी खुलकर खुशी जता रहे हैं पर कश्मीर घाटी में आम आदमी की जिंदगी जहां आशा और आशंका में लिपटी हुई नजर आती है। 

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घाटी में शांतिपूर्ण चुप्पी छाई है तथा अलगवादियों और आतंकवादियों की ओर से बंदूक, पत्थरबाजी भड़काऊ पोस्टरों, बयानों और हरकतों से डर का वातावरण बनाने की कोशिश की जा रही है। कश्मीर घाटी में आये इस छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने श्रीनगर सहित कश्मीर के अलग अलग क्षेत्रों में अल्पसंख्यक सिख एवं हिन्दू समुदाय, शिया समुदाय,गांव के पंच और सरपंचों, किसानों, छात्रों,शिक्षित बेरोजगार युवकों, सुरक्षा कर्मियों, पत्रकारों, वकीलों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं सहित करीब डेढ सौ लोगों से अलग अलग मुलाकातें कीं और उनके विचारों को जानने का प्रयास किया। इस संवाद में कई चौकाने वाली बातें उभर कर सामने आईं। कश्मीर में संवाद के दौरान अधिकांश लोग अपनी पहचान उजागर करने के लिए तैयार नहीं थे। जहां एक ओर लोगों में अपनी रोजी रोटी को लेकर चिन्ता नजर आई वहीं पाकिस्तान पोषित आतंकवाद और अलगाववादियों के साथ साथ कश्मीर के स्थानीय नेताओं के खिलाफ नाराजगी दिखाई दी। 

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यह भी पता चला कि कश्मीर में अधिकांश लोगों को अनुच्छेद 370 के नफे नुकसान के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। उन्हें यह भी नहीं पता कि 370 एवं 35 ए के हटने से उनका वाकई में क्या नुकसान हुआ है। अधिकांश लोग आतंकवादियों, अलगाववादियों और पाकिस्तान के मुद्दे पर कैमरे के सामने तो खुलकर बात करना नहीं चाहते लेकिन कैमरा हटते ही पाकिस्तान पोषित आतंकवाद और भय के माहौल के प्रति उनका गुस्सा फट पड़ता है। बदले माहौल में लोगों में उनके भविष्य को लेकर मिलीजुली राय देखने सुनने को मिली। श्रीनगर में लोगों में भविष्य को लेकर कई सवाल हैं और इन सवालों में भी विकास और रोजगार से जुडे सवाल अधिक हैं। शियाओं ने एक पृथक शिया वक्फ़ बोर्ड बनाने की, युवाओं ने आधुनिक उद्योग धन्धों की स्थापना और रोज़गार के बेहतर अवसर लाने की तो किसानों ने सेब एवं अन्य उपज के बेहतर दाम की मांग की। 
 

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