‘तीन तलाक’ अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

Edited By Yaspal,Updated: 25 Mar, 2019 09:03 PM

petition challenging constitutional validity of  three divorce  ordinance

उच्चतम न्यायालय ने एक बार में तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत) के चलन को दंडनीय अपराध बनाने वाले अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायामूर्ति दीपक...

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने एक बार में तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत) के चलन को दंडनीय अपराध बनाने वाले अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायामूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने समस्त केरल जमीयतुल उलेमा नाम के संगठन की तरफ से दायर की गई याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह हस्तक्षेप नहीं करना चाहेंगे।

पीठ ने कहा, ‘‘याचिका में चुनौती क्योंकि एक अध्यादेश को दी गई है, हम इस रिट याचिका पर सुनवाई करने के इच्छुक नही हैं। हालांकि, हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि हमनें मामले के गुणदोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है। रिट याचिका इसी के मुताबिक खारिज की जाती है।’’

केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के कुछ घंटों बाद, पिछले साल 19 सितंबर को ‘मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों की सुरक्षा) अध्यादेश’ पहली बार अधिसूचित किया गया था।  एक बार में तलाक तलाक तलाक कह कर विवाह विच्छेद करने की यह प्रक्रिया तलाक ए बिद्दत कहलाती है। मुस्लिम पुरूष एक साथ तीन तलाक कह कर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। अध्यादेश में इसी प्रक्रिया को दंडनीय अपराध बनाया गया है। एक साल से भी कम समय में इस अध्यादेश को 21 फरवरी को तीसरी बार जारी किया गया।

 

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