Edited By Anu Malhotra,Updated: 13 Jan, 2022 12:42 PM
हाल ही में अमेरिका के मैरीलैंड अस्पताल के डाॅक्टरों मे एक मरीज के शरीर के अंदर सूअर का हार्ट ट्रांसप्लांट किया था जिसके बाद इस एक्सपेरीमेंट की सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हुई थी वहीं अब इस बीच असम के डॉक्टर धनी राम बरुआ ने कहा है कि उन्होंने ऐसा काफी...
गुवाहाटी: हाल ही में अमेरिका के मैरीलैंड अस्पताल के डाॅक्टरों मे एक मरीज के शरीर के अंदर सूअर का हार्ट ट्रांसप्लांट किया था जिसके बाद इस एक्सपेरीमेंट की सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हुई थी वहीं अब इस बीच असम के डॉक्टर धनी राम बरुआ ने कहा है कि उन्होंने ऐसा काफी पहले कर दिया था। बरुआ ने कहा कि अमेरिका ने जो काम 2022 में किया है, उसे उन्होंने 1997 में ही कर दिया था।
सर्जरी के बाद शख्स सात दिनों तक जीवित रहा था
दरअसल, 72 साल के डॉ. बरुआ 1997 में एक विवाद में फंस गए थे जब उन्होंने एक एक्सनोट्रांसप्लांटेशन सर्जरी की थी और 32 साल के व्यक्ति पर सूअर के दिल और फेफड़ों को ट्रांसप्लांट किया। ये सर्जरी गुवाहाटी के बाहरी इलाके सोनपुर में बरुआ के एक क्लिनिक में की गई थी। सर्जरी के बाद 32 वर्षीय शख्स सात दिनों तक जीवित रहा था। हालांकि फिर उसकी कई संक्रमणों की वजह से मौत हो गई।
सर्जरी को लेकर हुआ था खूब विवाद
इस सर्जरी को लेकर तब खूब विवाद हुआ था और असम में तत्कालीन असम गण परिषद सरकार ने एक जांच शुरू कर दी थी। बाद में हांगकांग के सर्जन डॉ जोनाथन हो केई-शिंग की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया, जिन्होंने सर्जरी में सहायता की थी। साथ ही डॉ. बरुआ भी गिरफ्तार हुए। मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तहत अनैतिक प्रक्रिया और गैर इरादतन हत्या के दोषी करार हुए बरुआ और हो केई-शिंग दोनों को 40 दिनों के लिए जेल भेजा गया था।
इसमें बड़ी बात क्या
इस बीच दालिमी बरुआ जो खुद को धनी राम बरुआ की करीबी सहयोगी बताते है उन्होंने कहा कि ये उनके लिए कोई नई बात नहीं थी क्योंकि उन्होंने ऐसा 1997 में कर दिया था। अब इसमें बड़ी बात क्या है।
डॉ बरुआ को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे
दालिमी ने कहा कि कुछ साल पहले एक स्ट्रोक के बाद ब्रेन सर्जरी और ट्रेकियोस्टोमी कराने के बाद डॉ. बरुआ की साफ-साफ बोलने की क्षमता प्रभावित हुई थी। उन्होंने बार-बार कहा है कि सूअर के अंगों का इस्तेमाल मनुष्यों में किया जा सकता है, लेकिन किसी ने उन्हें नहीं सुना। जेल से छूटने के बाद उन्होंने पाया कि उनका पूरा अस्पताल जलकर खाक हो गया था। इसके साथ ही दालिमी ने कहा कि डॉ बरुआ को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे।