Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Sep, 2019 06:49 AM
श्राद्ध, आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं। जिन दिवंगत आत्माओं के कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है, उनकी कुर्बानियों व योगदान को स्मरण करने के ये दिन होते हैं। इस अवधि में
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श्राद्ध, आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं। जिन दिवंगत आत्माओं के कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है, उनकी कुर्बानियों व योगदान को स्मरण करने के ये दिन होते हैं। इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों के बारे में बताएं ताकि वे कुटुंब की स्वस्थ परम्पराओं का निर्वाह करें।
किस तिथि को करें श्राद्ध
जिस तिथि को जिसका निधन हुआ हो उसी दिन श्राद्ध किया जाता है। यदि किसी की मृत्यु प्रतिपदा को हुई है तो उसी तिथि के दिन श्रद्धा से याद किया जाना चाहिए। यदि देहावसान की डेट नहीं मालूम तो फिर भी कुछ सरल नियम बनाए गए हैं। पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का नवमी पर किया जाना चाहिए। जिनकी मृत्यु दुर्घटना, आत्मघात या अचानक हुई हो, उनका चतुर्दशी का दिन नियत है। साधु-संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी पर होगा। जिनके बारे कुछ मालूम नहीं उनका श्राद्ध अंतिम दिन अमावस पर किया जाता है जिसे सर्वपितृ श्राद्ध कहते हैं।
कैसे करें श्राद्ध?
इसे ब्राह्मण या किसी सुयोग्य कर्मकांडी द्वारा करवाया जा सकता है। आप स्वयं भी कर सकते हैं।
ये सामग्री ले लें : सर्प-सर्पनी का जोड़ा, चावल, काले तिल, सफेद वस्त्र, 11 सुपारी, दूध, जल तथा माला। पूर्व या दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें। सफेद कपड़े पर सामग्री रखें। 108 बार माला से जाप करें या सुख-शांति, समृद्धि प्रदान करने तथा संकट दूर करने की क्षमा याचना सहित पितरों से प्रार्थना करें। जल में तिल डाल कर 7 बार अंजलि दें। शेष सामग्री को पोटली में बांध कर प्रवाहित कर दें। हलवा, खीर, भोजन, ब्राह्मण, निर्धन, गाय, कुत्ते, पक्षी को दें।
श्राद्ध के 5 मुख्य कर्म अवश्य करने चाहिएं
तर्पण : दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पितरों को नित्य अर्पित करें।
पिंडदान : चावल या जौ के पिंडदान, करके भूखों को भोजन दें।
वस्त्रदान : निर्धनों को वस्त्र दें।
दक्षिणा : भोजन के बाद दक्षिणा एवं चरण स्पर्श किए बिना फल नहीं मिलता।
पूर्वजों के नाम पर कोई भी सामाजिक कृत्य जैसे : शिक्षा दान, रक्तदान, भोजन दान, वृक्षारोपण, चिकित्सा संबंधी दान आदि अवश्य करना चाहिए।
—मदन गुप्ता सपाटू, ज्योर्तिविद